Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Bharat Arab Sambandh”, ”भारत-अरब सम्बन्ध” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
भारत-अरब सम्बन्ध
Bharat Arab Sambandh
अभी कुछ वर्षों तक भारत के अरब देशों के साथ सम्बन्ध प्राय: अच्छे ही रहे हैं। अरब देश भारत की रीति-नीतियों का प्रायः खुलकर समर्थन किया करते थे, जब कि भारत राष्ट्रीय हितों की परवाह किए बिना अरब जगत् की हर उचित-अनुचित बात समर्थन किया करता था। यहाँ तक कि कई बार यह देखकर भी किसी अरब देश के आचरण और व्यवहार भारत की नीतियों के अनुरूप नहीं है, भारत उनका बढ-चढ कर समर्थन करता रहा। इस अन्ध समर्थन का परिणाम था कि कुछ अरब देश भारत के प्रति विशिष्ट राष्ट्र जैसा व्यवहार करते रहे, जबकि अन्य राष्ट्र भी सामान्यतः अच्छे ही रहे। फिलस्तीन के नेता यासिर अराफात, मिस्र के कर्नल नासिर तो भारत को अपना दूसरा घर तक कहा करते। यासिर अराफात भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गान्धी को अपनी बहन मानते रहे। सऊदी अरब, कुवैत और इराक आदि में भी भारत का काफी मान-सम्मान रहा और कट्टरता की लहर चलने से पहले ईरान के साथ भी सब ठीक चलता रहा। मुख्य बात यह है कि सम्बन्धों की यह प्रगाढ़ता अधिकतः भारत द्वारा अपने राष्ट्रीय हितों की बलि देकर भी अरब देशों का समर्थन करते रहना ही था।
यह तथ्य भी विशेष ध्यातव्य है कि इतने वर्षों तक भारत ने इजराइल जैसे लाभ दे सकने वाले देश के साथ एक तरह की दूरी बनाए रखी, उसका प्रमुख कारण भी यही था कि उसके साथ मैत्री बनाने से कहीं अरब-जगत से दूर न हटना पड़े। हालाँकि ईदी अमीन जैसे तानाशाह और घोर विलासी अरब नेता ने किसी व्यक्तिगत कारण से नाराज होकर अपने देश में रह रहे हजारों समद्ध भारतवासियों की सम्पत्ति जब्त कर के उनके बसे-बसाये घर तो उजाड़ ही दिए उन की बरसों की मेहनत पर भी पानी फेर दिया। यहीं दम न लेकर उन बेचारों को अपने देश से निष्कासित भी कर दिया, फिर भी भारत अपनी अरब-नीति में किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं किया। उनके हितों को यहाँ तो क्या विश्वभर में कहीं किसी तरह की आँच नहीं आने दी। यह ठीक है कि या के उजड़ कर चले आने के बाद उस तानाशाह अमीन की आँखें जल्दी ही खुली और वायदा किया कि उजड़ कर आए भारतीयों के वापिस आने पर वह सब कुछ उन्हें लौटा दिया जाएगा, जो ले लिया गया था। इस प्रकार भारत को अपनी अरब-नीति के कारण नैतिक विजय तो प्राप्त विजय तो प्राप्त हुई: पर क्या भारतीयों का खोया विश्वास लौट सकता है।
यह भी ध्यातव्य है कि आरंभ में वर्षों तक अरब देश कश्मीर के प्रश्न पर भी या तो तटस्थता प्रदर्शित करते रहे या फिर भारत की स्थिति का समर्थन करते रहे, लेकिन अब वैसी स्थिति नहीं रही रह गई। इस के प्रमुख कारन दो मने जा सकते हैं। एक तो ईरान ने खुमैनीवाद के रूप में इस्लामिक कट्टरता का उदय, दूसरे पाकिस्तान का योजनाबदा तरीके से भारत-विरोधी प्रचार और यहाँ भी इस्लामिक कट्टरता को निरन्तर प्रश्रय। इस्लामी बम’ जैसी योजनाएँ, इस्लामी संगठनों का उदय, इस्लाम के सारे संसार पर राज करने के कभी भी पूर्ण न हो सकने वाले सपने, इस्लामी दृष्टि से जमीनी सच्चाइयों से उखर और पैट्रोल की बिक्री के कारण अरब देशों के अधिकाधिक समृद्ध होते जाने के कारण लगातार कट्टरता आने-जाने से पहले तक भारत के साथ अरब देशों के सम्बन्ध काफी कुछ बेहतर रहे हैं, पर अब वह बात, वह गर्मी और उत्साह कतई नहीं रह गया है। सच यह भी है कि अपने-अपने स्वार्थों के कारण आज स्वयं अरब-जगत् में आपसी एकता नहीं रह गई है। सऊदी अरब की भूमि का यदि अमेरिका द्वारा अपने हितों के लिए प्रयोग किया जा रहा है, तो ईरान-ईराक अमरीकी विरोध के कारण सऊदी अरब कुवेत जैसे देशों का अरब एवं इस्लाम-विरोधी मानने लगे हैं। मिस्र इजरायल को बहुत पहले मान्यता देने के कारण प्रायः अलग-थलग हो गया है और वहाँ भी कट्टर इस्लामी उग्रवाद का बोलबाला हो रहा है।
इस प्रकार परिस्थितियों के बदलाव और पाकिस्तानी दुश्प्रचार के कारण, दूसरे कुछ देशों के अमेरिका-समर्थन और कुछ के विरोधी हो जाने के कारण जब अरब जगत के आपसी सम्बन्ध ही अस्थिर एवं डावाँडोल हैं, तो भारत के साथ सम्बन्धों की स्वच्छता, स्वस्थता और पवित्रता भला कैसे कायम रह सकती है। फिर अब फिलस्तीन और इजराइल के बीच होने वाले समझौते को भी कई कट्टर इस्लामवादी अरब-देशों ने अच्छा नहीं माना. जबकि भारत ने अन्य अनेक देशों के साथ इसे अच्छा और उचित मान कर समर्थन तो किया ही दोनों को मान्यता भी प्रदान कर दी है। इजराइल के साथ अपना राजनयिक सम्बन्ध भी जोड़ लिया है। पाक प्रचार से प्रभावित कट्टर पंथियों ने इसे भी एक भारत-विरोध का मुद्दा बना लिया है। पाकिस्तान यों भी मात्र भारत-विरोध के लिए अरब देशों को कई संगठनों के नाम पर उकसाता रहता है।
उपर्युक्त कई तरह के तथ्यों के आलोक में यह बात स्पष्ट रूप से कही जा सकती है कि आज कुछ देशों को छोड़कर अरब जगत् के साथ भारत के सम्बन्ध मात्र औपचारिकता निभाने वाले ही रह गए हैं, आन्तरिक सौहार्द से सम्पन्न नहीं।