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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Asian Games”, ”एशियाई खेल ” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

एशियाई खेल

Asian Games

जीवन के प्रत्येक कार्य को खेल मान कर हार-जीत की चिन्ता किए बिना महज बनते जाने में ही नश्वर जीवन की सार्थकता है, ऐसा भारतीय जीवन-दर्शन का परम्परागत मत एवं मान्यता रही है। एशियाई खेलों का समारंभ भी एक तो इस भावना से, दूसरे एशिया महाद्वीप के समस्त देशों को एक-दूसरे के निकट लाने के उद्देश्य से ओलिम्पिक खेलों की तर्ज पर एशियाई खेलों का आरम्भ सन् 1951 में किया कराया गया था। तब से लेकर आज अक्तूबर 1994 तक 12 वीं बार एशियाई खेलों या ‘एशियाड’ का आयोजन जापान में किया गया है।

ऐतिहासिक क्रम की दृष्टि से एशियाड का पहला आयोजन नई दिल्ली में सन् 1951 में किया गया था। खेल मात्र आठ दिनों तक हुए थे। इस में जापान, बर्मा, इण्डोनेशिया, ईरान, अफगानिस्तान, फिलिपींस, सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैण्ड, भारत और श्रीलंका के 489 खिलाडियों ने भाग लिया था। मुख्य खेल था-एथलेटिस्क, बास्केट बॉल, फुटबॉल, तैराकी, साइक्लिग और भारोतोलन। इस के बाद सन् 1954 में मनीला में द्वितीय एशियाड मात्र नौ दिन चला। इसमें 18 देशों के 970 खिलाड़ियों ने भाग लिया। इसमें कुश्ती, निशानेबाजी और मुक्केबाजी की नई प्रतियोगिताएँ सम्मिलित की गईं, जबकि साइक्लिंग का बहिष्कार कर दिया गया। सन् 1958 में तोक्यो में हुए तीसरे एशियाड में देशों और खिलाडियों दोनों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। इस में साइक्लिग दुबारा आई ही; हॉकी, टेबिल टेनिस और लॉन टेनिस के साथ-साथ वालीबॉल को भी स्पर्धाओं में शामिल कर लिया गया। 1962 में हुए चौथे एशियाड का समय बढ़ा कर बारह दिन कर दिया गया। इस बार मात्र 17 देशों के खिलाड़ियों ने ही भाग लिया था, इस कारण एशियाई खेल महासंघ में फुट के लक्षण स्पष्ट दीख पड़ने लगे थे। उतार-चढ़ाव तो स्पष्ट है ही।

पाँचवे एशियाड का आयोजन बैंकाक में सन् 1966 में हुआ। इसमें बैडमिंटन को भी स्थान दिया गया। खेलों की संख्या 14 हो गई और वे बारह दिन चले। ताइवान और इजराइल के खिलाड़ी भी यहाँ आमन्त्रित किए गए। अगला छठा एशियाड सन् 1970 में पुनः बैंकाक में निरन्तर बाईस दिनों तक चला। इस अवसर पर पॉल नौकायन को शामिल कर लॉन और टेबिल टेनिस के खेल बहिष्कृत कर दिए गए। सन् 1974 में सातवाँ एशियाड तेहरान में सोलह दिन चला। इसमें जिम्नास्टिक और तलवारबाजी के सम्मिलित हो जाने के कारण खेलों की संख्या 14 से बढ़कर 16 हो गई। भाग लेने वाले पच्चीस देशों के दो हजार तीन सौ सत्तावन खिलाड़ियों ने इसमें भाग लिया। इस में ताइवान के स्थान पर मुख्य चीन को भाग लेने दिया गया।

सन् 1978 का एशियाड होना तो पाकिस्तान में था, लेकिन इसके इनकार कर देने पर इस आठवे एशियाड का आयोजन एक बार फिर बैंकाक में हुआ। 12 दिन तक चले खेलों में तीरन्दाजी और गोला-फेंक को भी सम्मिलित कर लिया गया। इस अवसर पर सुरक्षा कारणों से इजराइल को सदा के लिए एशियाड से बहिष्कृत कर दिया गया। सन् 1982 में नवें एशियाड के आयोजन का सुअवसर एक बार फिर नई दिल्ली को प्राप्त । हुआ। सोलह दिनों तक चले खेलों में गोल्फ, हैंडबाल, नौकायन एवं घुडसवारी को भी अवसर दिया गया। हाँ, तलवारबाजी और गोला-फेंक का बहिष्कार भी किया गया। इस प्रकार एशियाई खेलों का यह क्रम चलता रहा। दसवें एशियगड का आयोजन सन् 1986 में सियोल में हुआ। 16 दिनों तक चले खेलों में कुल सत्ताईस देशों के 3345 खिलाड़ियों ने इनमें उत्साहपूर्वक भाग लिया। अगला ग्यारहवाँ एशियाड सन् 1990 में पेइचिंग में आयोजित किया गया। 16 दिन तक चले इस एशियाड में सर्वाधिक 37 देशों के चार हजार छ: सौ चौरासी प्रतिस्पर्धियों ने भाग लिया। इस समय खेलों की संख्या भी बढ़ कर सत्ताईस हो गई थी। भारतीय खेल कब्बडी का भी एशियाड में शामिल किया जाना इस की एक प्रमुख विशेषता स्वीकार की जाती है। इस प्रकार एशियाई खेलों का यह । क्रम अनेक उतार-चढ़ावों से गुजरता हुआ अब बारहवें आयोजन तक आ पहुँचा है, जो जापान के प्रसिद्ध नगर हिरोशिमा में खेला गया। यह लगभग 15 दिन चला और इसमें – 34 स्पर्धाओं के आयोजन की व्यवस्था की गई थी। लगभग बयालीस राष्ट्र भाग लेने के – लिए आमंत्रित किए गए थे।

खेलों का महत्त्व कई दृष्टियों से हुआ करता है-विशेष कर अन्तर्राष्ट्रीय या अन्तर्वीपीय प्रतिस्पर्धाओं का, यह सभी पर उजागर है। प्रत्येक सभ्य एवं उन्नत मन राष्ट्र के खिलाड़ी उस के राजदूत हुआ करते हैं। हार-जीत तो किसी-न-किसी की होती ही है इन से देशों, राष्ट्रों और सभ्यता-संस्कृतियों के निकट आने की सम्भावना भी बढ़ा। करती है। एक स्वस्थ प्रतियोगिता, सहकारिता एवं सहयोगिता का अहसास वृद्धि पाता है। एक-दूसरे की भाषा-संस्कृति से परिचित होकर इन के क्षेत्रों में पारस्परिक आदान-प्रदान का सुअवसर भी मिला करता है। प्रेम और भाईचारा तो बढते ही हैं। एक-दूसरे के निकट आने से शान्ति का भावना और क्षेत्र-विस्तार को भी स्वाभाविक प्रारूप पाप्त होता है। शान्ति बनी रहे, प्रेम-भाईचारा बढ़कर सुख-समृद्धि का विस्तार हो, राष्ट्र के स्तर पर इस से बढ़ कर अन्य कौन-सी उपलब्धि हो सकती है।

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