Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Adhyapak Diwas”, ”अध्यापक दिवस” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
अध्यापक दिवस
Adhyapak Diwas
डॉ. सर्वेपल्ली राधाकृष्णन भारत के ही नहीं, विश्व के अद्वितीय वक्ता एवं दार्शनिक थे। उन्होंने भारतीय दर्शन की प्रतिष्ठा विदेशों में स्थापित की थी। भारत वर्ष में उन्होंने अपना जीवन एक अध्यापक से प्रारंभ किया। अध्यापन कार्य में उन्नति करते-करते आप अनेक विश्व विद्यालयों में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर रहे। शिकागो विश्व विद्यालय में प्रोफेसर के रूप में आपने बड़ा सम्मान पाया। भारत स्वतंत्र होने पर वे उपराष्ट्रपति बने। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के पश्चात वे 1962 में राष्टपति भी बने। भारत सरकारने उनकी सेवाओं के पुरस्कार स्वरूप उन्हें भारत रत्न की उपाधि दी।
भारत में महापुरुषों के जन्म दिवस को किसी न किसी नाम से मनाए जाने की परम्परा है। चाचा नेहरू के जन्म दिन 14 नवम्बर को बालदिवस के रूप में बनाया जाने लगा, तो डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिवस 5 सितम्बर अध्यापक दिवस के रूप में मनाने की प्रथा चल पड़ी। डॉ. राधाकृष्णन एक ऐसे अध्यापक थे, जिनके कारण देश ने देश- विदेश में गौरव प्राप्त किया। अतएव इनके जन्म दिवस को अध्यापक दिवस के रूप में मनाना उनकी सेवाओं को उचित सम्मान देना है।
5 सितम्बर को अध्यापक दिवस देश भर में मनाया जाता है। यह शिक्षकों को सम्मान देने का उत्सव है। किसी भी शिक्षा व्यवस्था जलते शिक्षक की प्रमुखता सदा ही बनी रहेगी। शिक्षक दिवस के का ध्यान शिक्षक की ओर आकर्षित करके उसके महत्व रिमा को पहचान कर, उसे गौरव देने के प्रयत्न किए जाते हैं।
शिक्षकों को अपने कार्य में उत्साह बढ़ाने के लिए भारत सरकार गीय पुरस्कारों की योजना चलाई है। देश भर में प्राथमिक एवं माध्यमिक पाठशालाओं के शिक्षकों को शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए ये पुरस्कार दिए जाते हैं। इन शिक्षकों का चुनाव, इसके लिए बनाई गई समितियाँ करके, नाम भेजती हैं। चुने हुए अध्यापकों को दिल्ली में अध्यापक दिवस के दिन राष्ट्रपति द्वारा, पुरस्कार देकर उनका सम्मान किया जाता है। इसमें हर शिक्षक को एक प्रशस्ति पत्र, एक चाँदी का पदक तथा दस हजार रुपए नकद दिए जाते हैं।
शिक्षकों के लिए एक कल्याण कोश की भी स्थापना की गई है। इसके लिए स्काउट और गाइड वर्षभर धन एकत्रित करते हैं, और इस दिन कोश में जमा कराते हैं। किसी शिक्षक की परिस्थिति विषम होने पर इन्हें इस कोश से सहायता दी जाती है। अधिकतर बीमार या वृद्ध शिक्षक इस कोश का लाभ उठा सकते हैं।
समाज भी अपने शिक्षकों का सम्मान करने के लिए नगरों में शिक्षक दिवस का आयोजन करते हैं। ख्याति प्राप्त, अवकाश प्राप्त शिक्षकों को सभाएँ करके सम्मानित किया जाता है। उनकी प्रशस्ति के साथ उन्हें अंगवस्त्र उढ़ाए जाते हैं।
सभी पाठशालाओं के विद्यार्थी 5 सितम्बर को अपने-अपने विद्यालयों में शिक्षक दिवस मनाते हैं। सभाओं का आयोजन करते हैं। शिक्षक के महत्व पर भाषण दिए जाते हैं। किसी किसी पाठशाला में छात्र अपने अध्यापकों को उपहार भी देते है।
गुरुओं को सम्मान देने की भारत में प्राचीन परम्परा रही है। पूर्णिमा के दिन सभी धर्म प्रेमी अपने गुरुओं को यथाशक्ति गुरु दक्षिणा देकर गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करते रहे हैं। आज भी यह परम्परा जारी है। पाँच सितम्बर का शिक्षक दिवस आधुनिक रूप में उसी परम्परा का निर्वाह है।
यद्यपि अध्यापक दिवस के दिन अध्यापकों का गौरव किया जाता है पर प्राचीन काल के शिक्षक के समान गरिमा आज के अध्यापक में नहीं पाई जाती। इस दिन अध्यापकों को भी सोचना चाहिए कि हम अपने छात्रों का सही मार्गदर्शन कर पा रहे हैं या नहीं। यदि नहीं. तो इसके क्या कारण हैं? डॉक्टर राधाकृष्णन का कथन था कि शिक्षा द्वारा हमें छात्रों में से पशुत्व दूरकर उनमें मानवत्व का विकास करना चाहिए। यदि हम अब तक इस दिशा में प्रगति करने में असफल रहे हैं, तो कम से कम इस दिन प्रतिज्ञा लेकर उस ओर अग्रसर होने के प्रयास प्रारंभ करें।