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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Aatankwad ki Samasya”, ”आतंकवाद की समस्या” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

आतंकवाद की समस्या

Aatankwad ki Samasya 

निबंध नंबर: 01 

आतंकवाद या उग्रवाद ! कहने को तो आज सारे विश्व के सामने इसकी भयावह “मुह बाए, जीभ लपलपाती हुई खड़ी है; पर भारत को तो इसने बहुत बुरी तरह लपेट में ले रखा है। इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं। ये अब्दुल निदाल और गुलबुदीन हिक्मतपार जैसे कुछ आतंकवादियों ने अपनी गति-विधियों से सारे विश्व को आतंकित कर रखा है; पर पाकिस्तानी शासनतंत्र की शह पर भारत के कई भागों में उग्रवाद का नंगा नाच हो रहा है, उसका उदाहरण कहीं अन्यत्र मिल पाना संभव नहीं है। भारत के अन्य भागों में भी कई प्रकार के आतंकवादी सक्रिय हैं, पर काश्मीर और पंजाब में जो कुछ हुआ या आज भी होता रहता है कहीं और उस सब का उदाहरण मिल पाना कतई संभव नहीं है। कभी भारत के नागा भी विदोही और आतंकवादी रहे है, असम में भी इसका प्रभाव रहा है और आज भी एक सीमा तक विद्यमान है। असम-उड़ीसा सीमांचलों पर बोडो आन्दोलन ने भी काफी उग्रता दिखाई है और दार्जिलिंग आदि इलाकों में सुभाषा घीसिंग का गोरखा–लैण्ड सम्बधी आन्दोलन के तेवर भी काफी र रहे हैं। उधर बिहार में झारखण्ड आन्दोलन भी अक्सर अपने उग्र तेवर दिखाता रहता है। ऐसा भी कहा जाता है कि पंजाब-काश्मीर के उग्रवादियों ने देश के अन्यान्य भागों में चल रहे उग्रवादियों से अपने सम्बन्ध स्थापित कर रखे हैं और सभी शास्त्र एवं आदि से एक दूसरे की सहायता करते रहते हैं।

कई बार यह भी कहा सुना गया है कि श्रीलंका में कार्यरत लिट्टे के जिन उग्रवादियों ने पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गान्धी की हत्या की या कराई है, भारतीयों-विशेषकर काश्मीर और पंजाब के उग्रवादियों के सम्बन्ध उन से भी बने हुए हैं। जो हो, आज तक हजारों लोग इन आतंकवादियों की उग्र कार्यवाहियों के शिकार हो चुके हैं। अरबों की सम्पत्ति स्वाहा हो चुकी है। हजारों घर बरबाद हो चुके हैं। जाने कितनी स्त्रियाँ विधवा, बहन-बच्चे अनाथ, निर्दोष युवतियाँ आतंकवादियों की दरिन्दगी पूर्ण वासनाओं का शिकार हो चुकी हैं। हजारों परिवार अपने घर-द्वार त्यागने को विवश होकर दर-बदर भटक और ठोकरें खा रहे हैं। ऐसा सब हो जाने के बाद भी आतंकवादियों को आखिर हासिल क्या हुआ? सोचने और विचारने की बात है। हमारे विचार में पंजाब हो या काश्मीर, सिवाए लोगों की जान लेने और आतंकित कर पाने के अतिरिक्त अपने बहुत सारे साथियों को भी मरवाने के अभी तक और कुछ भी हासिल नहीं कर सके हैं। इस का स्पष्ट संकेत यही है या हो सकता है कि वास्तव में आतंकवाद किसी समस्या का हल अभी तक बन पाया है और न भविष्य में ही बन सकता है।

अब तक के अनुभवों से यह भी स्पष्ट हो चुका है कि अन्ततोगत्वा आतकवाद का उत्तर आतंकवाद ही हुआ करता है। यों उसे ईंट का जवाब पत्थर भी कहा जा सकता है, जैसा कि पंजाब में सुरक्षा बलों को देकर आतंकवादियों को गढ़ों को ढहाकर लगभग निरस्त कर दिया है। कभी नागा उग्रवादियों के साथ भी ऐसा ही किया गया था और बोडों उग्रवादियों के साथ भी। जब आतंकवादी शान्ति और प्यार की भाषा समझने तो क्या, सुनने तक के लिए तैयार नहीं, तो फिर अन्य उपाय ही क्या हो सकता है ? भारत के सीमांचल पंजाब और काश्मीर में फैले आतंकवाद की वास्तविक धुरी और डोर वस्तुतः पाकिस्तान तक फैली हुई है। पाकिस्तान में बैठे कुछ देशद्रोही और वहाँ की खुफिया एजेन्सियों के लोग जन धन और शस्त्र बल से निरन्तर सहायता पहुँचाकर आतंकवाद का स्रोत सूखने नहीं देना चाहते। हमें लगता है कि यदि वास्तव में भारत आतंकवाद से हमेशा के लिए सचमुच मुक्ति चाहता है, तो उसे उस धुरी को ही तोड़ना होगा। वह पाकिस्तान के घुटने और कमर तोड़ने से ही सभव हो सकती है। देर-सबेर भारत सरकार को यह कड़वा घूँट भी जन-हित और देश हित के लिए पीना ही होगा।

आतंकवाद या उग्रवाद का यदि कोई मानवोचित कारण हो, किसी के अधिकरों सचमुच अपहरण एवं हनन हो रहा हो; तब तो एक सीमा तक उस प्रकार का संघर्ष ठीक भी लगता है-यद्यपि समस्या का हल निश्चय ही वह नहीं है। वह तो मात्र बातचीत और अन्य सभी प्रकार के राजनीतिक-आर्थिक कदम उठाकर ही सम्भव हुआ करता है। कहा जा सकता है कि वैसा कुछ करके लोगों और सरकारों का ध्यान तो कम-से-कम समस्याओं और प्रश्नों की ओर खींचा ही जा सकता है। परन्तु जब कोई वास्तविक कारण मौजूद न हो और कई प्रकार के व्यर्थ के कारण गढ़ लिए गए हों, तब? जैसा कि पंजाब और काश्मीर में किया गया है, वह भी एक विदेशी की शह से। ऐसे में उसे समाप्त करने का एकमात्र अन्तिम उपाय वही हो सकता है, जिसकी चर्चा हम ऊपर कर आए हैं। पंजाब में काफी कुछ वैसा ही रास्ता अपनाया गया है, फलस्वरूप समस्या का समाधान भी कर लिया गया है। अब काश्मीर में भी ठीक वैसा ही रास्ता अपनाया जा रहा है।

आतंकवाद वास्तव में एक मध्ययुगीन बर्बर प्रवृत्ति है। इसी कारण आज का सभ्य समाज इस प्रवृत्ति को कतई पसन्द नहीं करता। परन्तु पाकिस्तान जैसा देश कि जिस की अपनी कोई सभ्यता-संस्कृति हो ही नहीं और न ही सभ्य संसार से वह ऐसा कुछ सीखना ही चाहे, सोचने की बात है कि आखिर उसका क्या इलाज हो सकता है। वैसे आज वे लोग भी आतंकवाद से ऊब चुके हैं कि जो इसे पसन्द कर इसे आश्रय और बढावा दिया करते थे। वे समझ चुके हैं कि इससे जीवन सचमुच कितना दूभर हो जाया करता का दूसर यह भी जान चके हैं कि आतंकवाद वास्तव में किसी समस्या या प्रश्न का हल १हा ह इस जन-जागति ने भी आतंकवाद और उसके पोषकों की कमर तोड़ कर रख रख दी है। कुछ भी हो, इस व्यर्थ के आतंकवाद का हर संभव उपायों से अन्त होना चाहिए। ऐसा होना हमारे राष्ट्र-हित में तो है ही, सारी मानवता के हित में भी है।

निबंध नंबर: 02

आतंकवाद की समस्या

Aatankwad ki Samasya 

 

हमारा देश अनेक प्रकार की समस्याओं के चक्रव्यूह में घिरा हुआ है। एक ओर भुखमरी, दूसरी ओर बेरोज़गारी मुँह फैलाए खडी है। कहीं अकाल तो कही बाढ एवं भूकम्प का प्रकोप है। इन सबसे भी बढकर यदि कोई समस्या सर्वाधिक भयंकर रूप इस देश में धारण कर रही है तो वह है आतंकवाद की समस्या । यह इस देश की जड़ों को दीमक के समान अन्दर ही अन्दर खोखला कर रही है। यह समस्या केवल हमारे देश भारत वर्ष तक ही सीमित नहीं, आज तो इसकी जडें सारे विश्व में किसी-न-किसी रूप में फैल चुकी हैं।

‘आतंकवाद’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है आतंक और वाद। ‘आतंक’ का अर्थ है-भय, डर, दहशत और ‘वाद’ का अर्थ है-पद्धति अर्थात् जिस पद्धति से देश के भीतर लोगों के अन्दर ऐसा माहौल पैदा किया जाए जिससे समाज के लोग दहशत में रहें। इसके लिए देश के भिन्न क्षेत्रों में विभिन्न हिंसात्मक उपद्रव जैसे निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या, बम विस्फोट, हवाई जहाज़ों का अपहरण, रेल की पटरियों को उखाडना, बैंकों को लूटना, यात्रियों को मारना-आतंकवाद के नाम पर हो रहे हैं। आतंकवादियों का कोई धर्म,जाति या देश नहीं होता। ये मानवता के शत्रु हैं। कानून व्यवस्था को ताक पर रख कर ये देश में अराजकता उत्पन्न करते रहते हैं ताकि सरकार उसमें उलझकर विकास के कोई कार्य न कर सके।

लगभग पिछले तीन दशकों से भारत देश इस समस्या से जूझ रहा है। आज तो इस समस्या ने अजगर का रूप धारण कर लिया है। मनीषी विद्वानों तथा सुविज्ञ राजनीतिशास्त्रियों ने इस समस्या के मल कारणों पर विचार करने के बाद कछ निष्कर्ष निकाले हैं।

आतंकवाद का सर्वप्रमुख कारण साम्प्रदायिकता है। हमारे देश में कछ ऐसे लोगों का भी वर्ग है जो करीब 60 साल की स्वतन्त्रता के पश्चात् भी संकीर्ण एवं संकीर्ण कटटरता के शिकार बने हुए हैं। ऐसे लोग दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णु नहीं होते और असहज हो जाते हैं। ये लोग धर्म और राजनीति को मिलाने का प्रयास करते हैं और धर्म के नाम पर अलग राज्य की माँग करते हैं। यही संकीर्ण साम्प्रदायिकता को भावना आतंकवाद को जन्म देती है।

हमारे देश में अनेक प्रकार की समस्याओं के लिए बहुत सीमा तक ही दूषित राजनीति उत्तरदायी है। राजनीतिज्ञ तथा राजनैतिक पार्टियाँ धर्म एवं जाति के नाम पर लोगों को तरह-तरह से भडकाती रहती हैं। इसमें भी ज्यादा धार्मिक कट्टरता ही आतंकवाद को सबसे अधिक प्रोत्साहित कर रही है।

बेरोजगारी, गरीबी और भुखमरी भी आतंकवादी गतिविधियों का एक प्रमुख कारण है। आतंकवादी संगठन चलाने वाले लोग भोले-भाले गरीब, भूख के मारे बेरोजगारों को तरह-तरह के लालच देकर अपने जाल में फंसा लेते हैं और उनसे हिंसा पूर्ण कार्य करवाते हैं। जब कोई युवक एक बार इनके चगुल में फंस जाता है और अपराधी बन जाता है तो फिर उसके लिए आतंकवादियों के गिरोह से छुटकारा पाना मुश्किल ही नहीं असम्भव भी हो जाता है। युवा युवकों का मन पूरी तरह से विकसित नहीं होता जिस प्रकार के युवक उन्हें मिलते हैं, वे उसी प्रकार के बन जाते हैं।

आतंकवाद मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा तथा मानवता के नाम पर एक बहुत बडा कलंक है। इससे मानवता को काफी हानि हो चुकी है और हो रही है। आतंकवाद रूपी राक्षस ने न जाने कितने बच्चों को अनाथ बना दिया, कितनी माताओं एवं बहनों का सिन्दूर छीनकर उन्हें विधवा बना दिया, कितने लोगों को बेसहारा बना दिया। न जाने कितने लोग पलायन करके अन्य सुरक्षित स्थानों पर जाकर अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए कितनी कड़ी मेहनत करते हैं। लेकिन फिर भी वे रात को चैन की नींद नही सो पाते।

11 सितम्बर 2001 को उग्रवादियों ने न्यूयार्क स्थित विश्व व्यापार संगठन कार्यालय के दो टावरों एवं अमरीकी रक्षा विभाग के प्रमुख कार्यालय पेंटागन के कुछ क्षेत्र को यात्री विमानों द्वारा टक्कर मार कर गिरा दिया जिसमें हज़ारों निरीह लोगों की जानें चली गईं। 13 दिसम्बर 2001 को भारतीय संसद को निशाना बनाया गया, संसद का शरद कालीन सत्र चल रहा था। सौभाग्य वश संसद के सुरक्षा कर्मियों ने इस दुर्घटना को बचा लिया, जिनमें से कुछ सुरक्षा कर्मियों ने इसमें अपनी जानें भी गंवा दी। मुम्बई में भी लगातार सात बम धमाके रेलगाड़ियों में हुए जिससे भी सैंकडों निर्दोष लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

सभी देशों को एक साथ मिलकर इसका मुकाबला करना चाहिए और इस अपराध को देश द्रोह से कम अपराध न मानकर इसके लिए कड़ी से कडी सजा का प्रावधान करना चाहिए। सर्वप्रथम सरकार को अपनी सीमाओं को चौकसी बढ़ानी होगी। जो लोग उग्रवाद की चपेट में आ चुके हैं, उनको मुख्यधारा में लाने के लिए उनको उनकी योग्यता के अनुसार रोज़गार देना चाहिए। इसी प्रकार ऐसे लोगों में देश प्रेम की भावना उत्पन्न करनी चाहिए। कोई भी धर्म किसी की भी निर्मम हत्या करने की इजाजत नहीं देता। इसलिए समाज के सभी धार्मिक नेताओं को अपना धार्मिक संकीर्णता का त्याग कर अपने स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि सर्वार्थ (सभा क लिए) कार्य करना चाहिए। अतः अन्त में हम कह सकते हैं कि आतंकवाद का समस्या का समाधान जनता एवं सरकार दोनों के मिले जले प्रयासों से ही सम्भव ही सकता है।

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