Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Aaj ka Yuvak aur Mansik Tanav”, “आज का युवा और मानसिक तनाव” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
आज का युवा और मानसिक तनाव
Aaj ka Yuvak aur Mansik Tanav
वर्तमान समय में युवा अनेक प्रकार के मानसिक तनावों से घिरा हुआ है। इस वर्ग में ‘छात्र वर्ग’ और शिक्षित बेरोजगार वर्ग प्रमुख रूप से आता है। उसका मानसिक तनाव स्कूली जीवन में ही प्रारंभ हो जाता है। हमें इन तनावों के कारणों की खोज करनी होगी। सबसे पहले इन छात्रों की पारिवारिक परिस्थितियों पर एक खोजी दृष्टि डालनी चाहिए। समाज के आर्थिक समुदायों से आये इन छात्रों में कुछ तो संपन्न घराने के होते हैं जिनके सामने जीविकोपार्जन की कोई समस्या नहीं होती। वे प्रायः मौज-मस्ती के लिए या समय बिताने के लिए विद्यालय में आते हैं। छात्रों का यह वर्ग आर्थिक दृष्टि से पिछड़े छात्रों में अनेक कुंठाएँ और असंतोष उत्पन्न करता है। कुछ मध्य वर्ग से आते हैं, जिनकी महत्त्वाकांक्षाएँ बहुत होती हैं। महंगी शिक्षा वे ले नहीं सकते, लेते भी हैं तो बड़े तनाव-पूर्ण वातावरण मंे, परिवार में उनकी शिक्षा पर होने वाले खर्च के कारण बड़ी आर्थिक कसमसाहट होती रहती है जिसका प्रभाव सीधे उसके मन पर पड़ता है। विपरीत आर्थिक परिस्थिति और महत्त्वाकांक्षाओं के द्वंद्व में फँसकर छात्रों का यह वर्ग दिशाहीन सा हो जाता है और भावनाओं में बहकर भटक जाता है। समाज के निम्न वर्ग से आए छात्र-समुदाय के सामने सरकारी विद्यालय अनुदान और छात्र-वृत्ति का एकमात्र मार्ग रह जाता है। उनके सामने कपड़ों, किताबों, पढ़ाई की सुविधाओं की समस्या रहती है। घर और विद्यालय दोनों जगह पर उन्हें असंतोष की छाया में रहना पड़ता है। घर का आर्थिक संघर्ष और विद्यालय में उपेक्षा तथा अभाव का निरंतर सामना करते हरने से उनके मन में क्रोध की गाँठें पनपने लगती हैं।
शिक्षा का संबंध जीविका से बहुत अधिक जुड़ा है। अधिकतर छात्र जीविका पाने के उद्देश्य से शिक्षा प्राप्त करते हैं, इसलिए जब उन्हें अनुकूल शिक्षा नहीं मिल पाती या उचित शिक्षा नहीं मिल पाती तो उनमें आक्रोश पनपने लगता है जिसे वह जिस-तिस रूप में व्यक्त करने लगते हैं। प्राचीन काल में शिक्षा व्यवसाय से जुड़ी हुई थी। अपने-अपने रूचि के अनुसार सभी को शिक्षा दी जाती थी, पर आज अधिकांश विद्यार्थी बिना सोचे-समझे शिक्षा लेकर महाविद्यालय से बाहर आकर बेरोजगारों की पंक्ति में आ खड़े होते हैं। उनको देखकर छात्रों को अपने अनिश्चित भविष्य का भय घेरने लगता है।
आज के व्यस्त आपाधापी वाले और स्वार्थी समाज में नैतिक गिरावट भी छात्र असंतोष को बढ़ाने में सहायक है। जीवन और समाज सभी क्षेत्रों में अनैतिकता और भ्रष्टाचार का बोल-बाला साफ दिखाई दे रहा है। छात्र देख रहे हैं कि अयोग्य और अपात्र व्यक्ति अन्य स्थानों से प्रवेश पा रहे हंै। शिक्षा संस्थाओं में राजनीति के प्रवेश ने बड़ी अराजक स्थिति उत्पन्न कर दी है। छात्र संघों के चुनाव छात्रों के एक वर्ग को अनुशासनहीनता का पाठ पढ़ाते हैं, वे अपनी दादागीरी से प्रशासन, प्राध्यापक और छात्र वर्ग पर अपना रौब बनाये रखना चाहते हैं। रही-सही कसर चुनाव-प्रणाली ने पूरी कर दी है। जब से मतदाता की आयु घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है, छात्रों में राष्ट्रीय राजनीति के प्रति जागरूकता बढ़ती जा रही है। सभी राजनैतिक दल छात्र-शक्ति को वश में करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। इसका कोई परिणाम सफल हुआ हो या न हुआ हो, लेकिन एक दुष्परिणाम यह हुआ है कि छात्र अपना समय विद्योपार्जन में लगाने के बदले राजनीति मंे बिताने लगे हैं। जिन छात्रों को भविष्य में सक्रिय राजनीति में आना है उनके लिए ऐसी गतिविधियाँ लाभकारी रहती हैं, परंतु अधिकांश छात्रों की रूचि न तो राजनीति में होती है, न उनमंे राजनीति के दाँव-पेंच समझ पाने की क्षमता होती है।
छात्र-असंतोष को बढ़ाने वाले प्रमुख तत्त्व और हैं। एक है, प्रतिभाशाली छात्रों की शिक्षा में आर्थिक कारणों से व्यवधान उत्पन्न होना और दूसरा है- आरक्षण की व्यवस्था। बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित होकर छात्र डाॅक्टरी, इंजीनियरी या अन्य ऐसी कोई पढ़ाई करना चाहते हैं, पर अच्छे अंक लेने पर भी उनका प्रवेश नहीं होता, इससे असंतोष आरंभ होता है। यह असंतोष तब और भड़क उठता है जब उनसे अयोग्य छात्र आरक्षण की सहायता से प्रत्येक पाठ्यक्रम में सफलतापूर्वक प्रवेश पा लेते हैं। यदि वे निजी (प्राइवेट) संस्थाओं में प्रवेश लेने जाते हैं, तो ‘कैपीटेशन फीस’ का राक्षस उन्हें निगलने के लिए खड़ा मिलता है। अपने कैरियर के प्रति जागरूक छात्र इन स्थितियांे मंे घुटकर रह जाता है।
इस समस्या को सुलझाने के लिए सरकार की ओर से गंभीर प्रयत्न किए जाने की आवश्यकता है। उसका पहला काम यह होगा कि वह शिक्षा के क्षेत्र में व्यावसायियों को हटा दे। शिक्षा के क्षेत्र में पब्लिक और सरकारी विद्यालायों का भेदभाव मिटाना आवश्यक है। समाजवादी वयवस्था में ऐसी भेदभाव वाली बातें सहन नहीं की जा सकतीं। देश के छात्रों को ऐसे खेमों मंे बाँटना उचित नहीं है। दूसरा काम ‘कैपीटेशन फीस’ जैसे भद्र नाम के पीछे निहित रिश्वतखोरी को समाप्त करने का है। तीसरा काम, शिक्षा और रोजगार के मामले मंे अयोग्य व्यक्तियों को आरक्षण के कवच द्वारा आगे बढ़ने से रोकना होगा। आरक्षण केवल योग्य व्यक्तियों के लिए होना चहिए। चैथा काम, चुनावांे में छात्र।
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