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Hindi Essay, Paragraph or Speech on “Varsha Ritu”, “वर्षा ऋतु”Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

वर्षा ऋतु

Varsha Ritu

एक बार अकबर अपने नवरत्नों के बीच बैठे थे। अकबर ने अपने नवरत्नों से पूछा कि अगर बारह में से चार गया, तो क्या बचेगा। सभी ने कहा-आठ। लेकिन बीरबल ने उत्तर दिया-कुछ नहीं। अकबर ने आश्चर्य से पूछा-कैसे। तब बीरबल ने कहा-जहांपनाह! अगर वर्ष के बारह महीनों में से वर्षा ऋतु के चार माह-आषाढ़, सावन, भादो और आश्विन को हटा दिया जाये, तो सृष्टि में कुछ नहीं बचेगा; क्योंकि सृष्टि में पानी के बिना जीव-जन्तु की कल्पना नहीं की जा सकती है और पानी का आधार है-वर्षा। इससे स्पष्ट होता है कि वृष्टि सृष्टि का मूलाधार है। इसी भाव को गीता में इस प्रकार कहा गया है-

अन्नात् भवन्ति भूतानि प्रर्जन्यात् अन्न सम्भवः

अर्थात् सभी प्राणी अन्न में जीवन धारण करते हैं और अन्न वर्षा से उत्पन्न होता है।

वर्षा ऋतु के पूर्व गी्रष्म ऋतु होती है। गी्रष्म में सभी पेड़-पौधे, जीव-जन्तु झुलस जाते हैं। पृथ्वी तवे के समान तपती रहती है। ऐसे में जब वर्षा की फुहारें पृथ्वी पर पड़ती हैं, तब सभी जीव-जन्तुओं में नवजीवन का संचार होता है। कृषि प्रधान भारत के प्राण वर्षा ऋतु को ही माना जाता है। यहां वर्षा ही सिंचाई का मुख्य साधन है। वर्षा प्रारम्भ होते ही किसान अपने हल-बैल सहित खेतों में पहुंच जाते हैं। खेतों की जुताई कर विभिन्न प्रकार की फसलें बोई जाती हैं। यथा-धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, मडुआ इत्यादि। रिमझिम वर्षा के बीच धान रोपती एवं कजरी गाती कृषक-बालिकाओं को देख ‘दिनकर‘ का कवि-ह्नदय बोल उठता है-

‘कवि आषाढ़ की इस रिमझिम में धन खेतों में जाने दो।‘

पुनश्चः-

        आसमान की ओढ़नी ओढ़े, धानी पहने फसल घंघरिया।

        राधा बनकर धरती नाचे, नाचे हंसमुख कृषक सवंरिया।।

इसके अतिरिक्त, वर्षा से बांधों में पानी एकत्र होता है, जिससे साल-भर पन बिजली का उत्पादन किया जाता है। सूखे जलाशय पानी से भर जाते हैं। पृथ्वी के अन्दर का जल स्तर ऊपर उठ जाता है। इस प्रकार, वर्षा ऋतु से लाभ-ही-लाभ है।

 वर्षा ऋतु का सौन्दर्य अनोखा है। आकाश में काले बादल छाये रहते हैं। ठण्डी बयार चलती है। रिमझिम-रिमझिम बारिश और बिजली की चकाचैंध तो मन को मोह लेती है। इसी दृश्य का वर्णन करते हुए गोस्वामीजी लिखते हैं-

        ‘वर्षा काल मेघ नभ छाये।

        गरजत लागत परम सुहाये।।‘

ऐसे में मानव-ह्नदय ही क्यों, सभी जीव-जन्तु आनन्द से झूम उठते हैं। आकाश में उमड़ते बादल एवं रिमझिम वर्षा के बीच मोर का नाचना देख सीता के वियोग में दुुखी श्रीराम का मन भी हर्षित हो बोल पड़ता है-

        लछिमन देखहु मोर मन नाचत बारिद पेखि।

लाभ के साथ हानि का होना प्रकृति का नियम है। अतः वर्षा ऋतु से कुछ हानि भी है। अति वृष्टि के कारण सर्वत्र जल की जल दिखाई पड़ने लगता है। बाढ़ भी आ जाती है। ऐसी स्थिति में यातायात के सभी साधन प्रायः ठप्प पड़ जाते हैं। गरीबों की झोपड़ियां बह जाती हैं। मिट्टी के घर गिर जाते हैं और गरीब बेघर हो जाते हैं। बहुत दिनों तक जल जमाव से महामारी फैलने का भय बन जाता है। किसानों की लहलहाती फसलें बाढ़ के प्रकोप से नष्ट हो जाती हैं। इस प्रकार कल तक जो जल जीवन था, आज भामर सिद्ध हो जाता है।

फिर भी मेरी समझ में वर्षा ऋतुओं की रानी है। जो वर्षा ऋतु की गन्दगी से घृणा करते हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि बसन्त के सर पर ऋतुओं के राजा का जो ताज है, उसकी आधारशिला वर्षा ऋतु ही है। वर्षा ऋतु कृषि का सहारा एवं सबका प्यार है।             

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