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Hindi Essay on “Vah Lomharshak Din” , ”वह लोमहर्षक दिन” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

वह लोमहर्षक दिन

Vah Lomharshak Din

उफ! वह दिन! वह लोमहर्षक दिन! वह दिन याद आकर आज भी तन-मन में कंपकंपी ला देता है। लगने लगता हे कि हमारा जीवन भी कितना क्षणिक, कितना अस्थिर है। उफ! कई बार जीवन में ऐसी-ऐसी घटनांए घट जाती हैं, जो भुलाए नहीं भूलती औश्र याद आ-कर अक्सर रोंगटे खड़े कर दिया करती हैं। ऐसी ही एक घटना दो-तीन वर्ष पहले मेरे सामने भी घटी और लोमहर्षक बनकर मेरी स्मृतियों पर छा गई और आज भी छाई हुई हें। उसमा स्मरण आज भी पसीना ला देता है।

मैं और मेरा एक मित्र, जिसके पास अपना स्कूटर था, स्कूटर पर बैठे अपने एक रिश्तेदार की शादी के कार्ड बांटते फिर रहे थे। वर्षा ऋतु तो नहीं थी, पर उस दिन सुबह से ही आकाश पर बादल आंखमिचौली खेल रहे थे। कभी बादलों की गहरी छाया हो जाती और कभी कड़ी धूप निकलकर तन-मन को झुलसाने लगती। शादी में केवल दो-चार दिन ही बाकी थे, अत: हम सारा दिन रिश्ते-नातों में घूमकर कार्ड बांटते रहे। ऐसा करते-करते शाम हो गई। एक तो शाम का धुंधलका, उस पर बादलों का घटाटोप, सडक़ों पर लगी बत्तियां भी काफी धुंधली हो गई थीं। तभी अचानक बादल गरजे, बिजली चमकी, सडक़ों-बाजारों की बिजली गुल हो गई और इसी के साथ जोर-शोर से वर्षा शुरू हो गई। आश्रय की खोज में मित्र ने स्कूल तेज कर दिया। ळम लोगों ने एक दुकान के बारजे में जाकर शरण ली।तब कहीं जाकर सांस में सांस आई।

कुछ देन तक जमकर बरसने के बाद बादल रुके और फिर छंटने शुरू हो गए। मैंने मित्र की ओर देखा। उसने कहा ‘चलें!’ मैंने हामी भरी। उसे स्कूटर स्टार्ट किया और मैं कूदकर पीछे बैठ गया। अंधेरे और कीचड़ में ही संलकर चलते हुए हमने उस इलाके में इच्छित कार्ड बांटे और फिर एक मित्र-बंधु के चाय-पान के आग्रह को बलपूर्वक टालकर आगे चल पड़े। उस बस्ती से निकल पास वाली नहर का पुल कुशलतापूर्वक पार किया और साथ बनी पक्की सडक़ के किनारे धीरे-धीरे संभलकर चलने लगे। चारों और घुप अंधेरा था। मित्र-स्कूटर बहुत संभलकर चला रहा था। कभी-कभी कोई वाहन हॉर्न बजाता सन-सा कीचड़ उछालकर पास से गुजर जाता। हम लोग संभलते और फिर चलने लगते। आगे एक सामान्य बस्ती का फुटपाथ शुरू हो गया। जिस ओर हम चल रहे थे, उस तरफ तो शून्य था या कुछ इक्की-दुक्की झाडिय़ां और वृक्ष। परंतु दूसरी ओर बने फुटपाथ पर वर्षा रुक जाने के कारण अब तो लोग नजर आने लगे थे। कुछ मजदूर किस्म के लोग फुटपाथ पर ही चूल्हा सुलगा खाना आदि बनाने लगे थे।

हम दोनों बातें करते, किनारे-किनारे धीरे-धीरे बढ़ रहे थे। सहसा मित्र ने ब्रेक लगाई। सन-सा मैं उछल पड़ा। इससे पहले कि हम संभलें पीछे से एक धक्का हमारे स्कूटर को लगा। मैं उछलकर दांए बाजू के बल कुछ कदम दूर जा गिरा। मित्र भी गिर गया था। उस एक क्षण में मौत ने मेरी चेतना को ग्रस लिया। मेरी आंखों में शादी का मंडप और अपनी लाख एक साथ कौंध गई। पर तभ्ज्ञी अपने पीछे से किसी बच्चे का रोना, औरत की हाय-हाय, सामने वाले फुटपाथ पर भयानक घर्र-घर्र कर रुकते एक ट्रक और मर्मातक चीत्कार सुनकर मेरी चेतना लौटी। मैं कपड़े झाड़ता हुआ खड़ा हो गया। मित्र भी उठकर स्कूटर को उठा रहा था। भगवान, हम बच गए। परंतु फुटपाथ की इस तरफ!़ राम! भयानकर दृश्य उपस्थित था। ट्रक खाना बना-खा रहे पूरे परिवार पर चढ़ उसे कुचल चुका था। एक भयावह और वीभत्स दृश्य उपस्थित होकर रोंगटे खड़े कर रहा था।

हुआ यों, कि हमारे स्कूटर के सामने झाडिय़ों की ओर से निकल अचानक एक आदमी आ गया। उसे बचाने के लिए मित्र ने ब्रेक लगाई, तो पीछे हमारी सीध में चला आ रहा स्कूटर हमारे स्कूटर से टकराया। उस पर सवार स्त्री बच्चा और आदमी भी सडक़ के बीच आ गिरे। उन्हें बचाने की कोशिश में ही शायद पीछे सह आ रहा ट्रक सामने वाले फुटपाथ पर जा चढ़ा। ळम तो बच गए, पर बेचारा वह परिवार। आज भी याद आकर यह लोमहर्षक दिन मुझे अपराध-बोध से भर देता है। साथ ही जीवन की क्षण-भंगुरता का प्रबल अहसास भी करा जाता है।

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