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Hindi Essay on “TV vardan ya abhishap ” , ” टी.वी. वरदान या अभिशाप” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and other classes.

टी.वी. वरदान या अभिशाप

निबंध नंबर:- 01

विवाद का विषय

दूरदर्शन विद्यार्थी के लिए लाभदायक है या हानिकारक ; यह प्रशन विवाद का विषय है | दूरदर्शन के लाभ तथा हानियों को हम इस प्रकार समझ सकते हैं |

 

ज्ञान-वृद्धि

दूरदर्शन समूची मनुष्य-जाति के लिए वरदान है | दूरदर्शन में दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों में देश-विदेश की, जल-थल-नभ की, पहाड़ों और नदियों की, समुंद्र और रेगिस्तान की, नगर और ग्राम की, इतिहास और वर्तमान की कितनी ही झाँकियाँ दिखलाई जाति हैं | ये सब झाँकियाँ विद्यार्थी का ज्ञानवर्द्धन करती हैं | दूरदर्शन में जीती-जागती वास्तु हमारे सामने साकार रख दी जाती हैं | इसलिए उसका प्रभाव अधिक होता है |

 

पाठ्यक्रम-संबंदी कार्यक्रम

आजकल दूरदर्शन के माध्यम से छात्रों के पाठ्यक्रम संबंदी कार्यक्रम भी प्रसारित किए जाते हैं | दूरदर्शन के सहारे पाठ्यक्रम दूर-दराज के गाँवों तक भी पहुँच सकता है | इससे दूरस्थ शिक्षा के नए द्वार खुल गए हैं |

 

हानियाँ

व्यवहार में एक बात देखने में आती है कि दूरदर्शन छात्रों के लिए सहायक न बनकर बाधा के रूप में सामने आता है | अधिकतर छात्र दूरदर्शन के रोचक, सरस कार्यक्रमों में रूचि लेते हैं, जिनका संबंद पाठ्यक्रम या ज्ञान से ण होकर मनोरंजन से होता है | फिल्में, खेल, सीरियल आदि उनका मन मोहे रहते हैं | ऐसी स्थिति में वे पढ़ाई में रूचि नहीं ले पाते; या अधिक समय मनोरंजन में खर्च कर देते हैं | दुसरे, दूरदर्शन से चार्टों को छल, फरेब झूठ, बेईमानी के सरे तरीके पता चल जाते हैं | वे चालाकी, शरारत और उद्दंडता का पाठ सीखते हैं |

 

निष्कर्ष

दूरदर्शन के विरोध में दिए जाने वाले तर्क आधारहीन हैं | ये तर्क दूरदर्शन के विरोध में नहीं, उन कार्यक्रमों के विरोध में हैं जो छात्रों को आकर्षण के जाल में फँसाते हैं | इस बारे में यही कहा जा सकता है कि छात्रों को दूरदर्शन का सही उपयोग करना चाहिए | उन्हें पढ़ाई को ध्यान में राखते हुए स्वयं पर संयम रखना चाहिए | दूरदर्शन के गलत उपयोग को रोककर उसके लाभ लिए जा सकते हैं | किंतु उसे नकार देने से उसके सभी लाभ समाप्त हो जाएँगे |

 

टी. वी. एक वरदान या अभिशाप

TV ek Vardan ya Abhishap

निबंध नंबर:- 02

प्रस्तावना

आज विज्ञान का युग है। विज्ञान ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आश्चर्यजनक क्रांति की है। विज्ञान ने जीवन को अधिक सुविधामय, समृद्ध और व्यवस्थित बनाने में भरपूर सहयोग दिया है।

 

उपयोगिता

इसी विज्ञान की एक देन है टेलीविजन यानि टी.वी.। आजकल टी.वी. घर-घर में पाया जाता है। टी.वी. शुरू से सब यही कहकर खरीदते हैं कि बिना टी.वी. घर सुना। अरे, इससे तो हमें रोज घटित होने वाली घटनाएँ. समाचार व खेलकूद और न जाने क्या-क्या देखने मिलेगा।

सच तो है, टी.वी. में नियमित आने वाले समाचार या फिर विज्ञान, अर्थशास्त्र व दूसरे विषयों के कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं। पर इन्हें देखने वालों की संख्या मुश्किल से 20 प्रतिशत है।

 

अभिशाप

आजकल घर-घर में टीवी सिर्फ चित्रहार, हिंदी सिनेमा और सीरियल के लिए ही खुलता है। अब तो नन्हा बच्चा भी टी.वी. के कारण ऋतिक. धोनी, सचिन, शाहरुख, अमिताभ को पहचानने लगता है। आजकल के बच्चे सुबह उठते ही हैं, सिर्फ कार्टून चित्र कथाओं के समय। फिर क्या दिन-भर वही बातें। वह सीरियल अच्छा था, वह विज्ञापन देखा। वह लड़कों की कलाबाजियों वाला विज्ञापन।

शाला से लौटे, फिर सब उस चौखटे के पास आकर बैठ गये। रात 12 बजे तक टीवी के सामने ही खाना खाकर सो गये। अब बोलिये, कौन उठेगा, अगले दिन जल्दी ।

ये टी.वी. हमारे जीवन मूल्यों को दीमक की तरह खोखला किये दे रहा है। अनेक चैनलों की अश्लीलता भारतीय जनमानस को पथ भ्रष्ट कर रही है।

 

वरदान

यह सही नहीं है कि टी.वी. सिर्फ नुकसान ही करता है। मगर कोई उन कार्यक्रमों को देखे जैसे सुबह-सवेरे, विज्ञान कक्षायें, तरंग, समाचार, सुरभि, डिस्कवरी और इनके जैसे ही अन्य कार्यक्रम जो ज्ञानवर्धक हैं।

मनोरंजन मनोरंजन की जगह होना चाहिये। आधा एक घंटे का मनोरंजन कभी भी खराब नहीं होता। मगर पढ़ाई व काम की कीमत पर मनोरंजन नहीं होना चाहिये। तभी इस विज्ञान की देन टी.वी. की सार्थकता है।

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