Hindi Essay on “Shram ka Mahatav ” , ” श्रम का महत्व” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
श्रम का महत्व
Shram ka Mahatva
निबंध नंबर : 01
संसार में आज जो भी ज्ञान-विज्ञान की उन्नति और विकास है, उसका कारण है परिश्रम – मनुष्य परिश्रम के सहारे ही जंगली अवस्था से वर्तमान विकसित अवस्था तक पहुँचा है | उसके श्रम से खेती की | अन्न उपजाया | वस्त्र बनाए | घर, मकान, भवन, बाँध, पुल, सड़कें बनाई | पहाड़ों की छाती चीरकर सड़कें बनाने, समुद्र के भीतर सुरंगें खोदने, धरती के गर्भ से खनिज-तेल निक्कालने, आकाश की ऊचाइयों में उड़ने में मनुष्य ने बहुत परिश्रम किया है |
परिश्रम करने में बुद्धि और विवेक आवश्यक – परिश्रम केवल शरीर की किर्याओं का ही नाम नहीं है | मन तथा बुद्धि से किया गया परिश्रम भी परिश्रम कहलाता है | एक निर्देशक, लेखक, विचारक, वैज्ञानिक केवल विचारों, सलाहों, और यक्तियों को खोजकर नवीन अविष्कार करता है | उसका यह बोद्धिक श्रम भी परिश्रम कहलाता है |
परिश्रम से मिलने वाले लाभ – परिश्रम का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता मिलती है | दुसरे, परिश्रम करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है | उसे मन-ही-मन प्रसन्नता रहती है कि उसने जो भी भोगा, उसके बदले उसने कुछ कर्म भी किया | महात्मा गाँधी का यह विश्वाश था कि “जो अपने हिस्से का काम किए बिना ही भोजन पाते हैं, वे चोर हैं |”
परिश्रमी व्यक्ति का जीवन स्वाभिमान से पूर्ण होता है, जबकि एय्याश दूसरों पर निर्भर तथा परजीवी होता है जबकि विलासी जन सदा भाग्य के भरोसे जीते हैं तथा दूसरों का मुँह ताकते हैं |
उपसंहार – वेदवाणी में कहा गया है – “ बैठने वाले का भाग्य भी बैठ जाता है और खड़े होने वाले का भाग्य भी खड़ा हो जाता है | इसी प्रकार सोने वैल का भाग्य भी सो जाता है और पुरुषार्थी का भाग्य भी गतिशील हो जाता है | चले चलो, चले चलो |” इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने सोई हुई भारतीय जनता को कहा था – ‘उठो’, जागो और लक्ष्य-प्राप्ति तक मत रुको |’
निबंध नंबर : 02
श्रम का महत्त्व
Shram ka Mahatva
भारत कभी सोने की चिड़िया कहलाता था। यह राष्ट्र समृद्धि और वैभव की पराकष्ठा पर था। दर्शन, विज्ञान, कला-कौशल सभी क्षेत्रों में भारत ने विश्व का मार्ग-दर्शन किया। परन्तु आज हमारी जो दशा है, यह किसी से छिपी नहीं है। जीवन के ऐश्वर्य, सौख्य और भोग विलास ही हमारे साध्य हो गये। लोग आलसी हो गये। भाग्य के भरोसे बैठे विधाता की अनुकम्पा की प्रतीक्षा करने लगे।
श्रम की उदासीन मनोवृत्ति ने हमारी राजनैतिक स्वतन्त्रता का अपहरण कर हमें पराधीन बना दिया। भगवान के भरोसे हाथ पैर हिलाना भी छोड़ दिया और श्रम से बचने लगे। श्रम का महत्व हमारी आँखों से ओझल हो गया। स्वावलम्बन का पाठ विस्मत हो गया। अतः हमारी स्थिति दिन प्रतिदिन विषम होती गई और परिश्रम करना हीनता का प्रतीक माना जाने लगा। पारस्परिक ईया-द्वेष ने आपसी फूट पैदा कर दी और प्रेम एठ सदभावना के प्रतीक भारतवासी झठे स्वाभिमान की रक्षा के लिए, दूसरे का गला का लगे। यह है हमारे अधःपतन की कहानी।
श्रम मनुष्य की उन्नति का एकमात्र साधन है। उसके द्वारा मनुष्य असम्भव को सम्भव बना सकता है। उसके सभी कार्य सध सकते हैं। यह मनुष्य की उन्नति का साधन तथा मूल द्वार है। किसी भी कार्य में निरन्तर श्रम करते रहने से कठिन कार्य भी इसके द्वारा सरल हो जाते हैं। पानी की निरन्तर बूंद पड़ने से अथवा घड़े की निरन्तर रगड से कुएँ का भारी पत्थर भी घिस जाता है। परिश्रम सफलता की कुंजी है। संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन्होंने श्रम द्वारा ही उन्नति की है। तिलक, सुभाष, गांधी और जवाहर आदि राष्ट्रीय नेताओं ने अपने अथक श्रम द्वारा सदैव राष्ट्र को नई चेतना प्रदान की है।
श्रम ही ईश्वर की सच्ची उपासना है। इसके द्वारा हम लोक और परलोक दोनों सुधार सकते हैं।
निबंध नंबर : 03
श्रम का महत्त्व
Shram ka Mahatva
‘श्रम’ ही सफलता का मूल मंत्र है। निरंतर परिश्रम ही किसी व्यक्ति, जाति या देश के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता व्यक्ति की कर्म भावना ही उसे महान अथवा क्षुद्र बना देती है। संसार में अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ मनुष्य ने अपनी श्रमशीलता के बल पर सफलता के शिखर को छुआ है। लिंकन, गाँधी, बोस, सरदार पटेल. इंदिरा गांधी, ए. पी. जे. कलाम तथा एम. एस. स्वामीनाथन आदि अनेक जाने-अनजाने नाम निरंतर लगन से श्रम करके ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाए हैं। सच ही कहा गया है—’उद्यमेन ही सिध्यंति, कार्याणि न मनोरथै’ केवल इच्छा करने मात्र से कभी लक्ष्य की पूर्ति नहीं होती। सब प्रकार से समर्थ होने पर भी अगर आप अकर्मण्य रहें, तो विजय-पताका कभी न फहरा पाएँगे। अतः यदि हम स्वयं को अपने देश को ऊपर उठाना चाहते हैं तो पुरानी बातों को भूलकर हम श्रम के महत्व को समझें। इससे भारत देश को विकसित देशों की श्रेणी में लाने में हमें देर नहीं लगेगी। श्रम के महत्त्व के कारण ही जापान आज विकसित देशों की श्रेणी में गिना जाता है।