Hindi Essay on “School ke Varshik Samaroh ka Aankhon Dekho Varnan”, “विद्यालय के वार्षिक समारोह का आँखों देखा वर्णन” Complete Essay, Paragraph, Speech.
विद्यालय के वार्षिक समारोह का आँखों देखा वर्णन
School ke Varshik Samaroh ka Aankhon Dekho Varnan
विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी के लिए जितना महत्त्व विद्यालय के उत्सवों का होता है उतना घर के उत्सवों का नहीं। स्कूल के साथ विद्यार्थियों को इतना लगाव होता है कि वह स्कूल के उत्सव को अपना उत्सव समझते हैं। प्रत्येक विद्यालय में प्रतिवर्ष गणतन्त्र दिवस, स्वतन्त्रता दिवस, बाल दिवस इत्यादि बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। परन्तु विद्यार्थियों की दृष्टि में जो महत्त्व विद्यालय के वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह का होता है, उतना किसी दूसरे समारोह का नहीं, क्योंकि उस दिन उन्हें उनकी कार्यकुशलता, योग्यता, अनुशासनप्रियता का पुरस्कार जो मिलना होता है।
यह उत्सव प्रति वर्ष फरवरी मास में मनाया जाता है क्योंकि यह समय अध्यापक और विद्यार्थी दोनों के लिए फुरसत का होता है। इस समय न तो अधिक गर्मी होती है न ही अधिक सर्दी। दूसरे बोर्ड की परीक्षा देने वाले विद्यार्थी इन दिनों अन्तिम विदाई ले लेते हैं। हमारे विद्यालय में यह समारोह 24 फरवरी को मनाया गया। कई दिनों से स्कूल के कुछ विद्यार्थी, जिनमें मैं भी शामिल था, कक्षाध्यापक जी की आज्ञानुसार उत्सव की तैयारियों में ज़ोर-शोर से व्यस्त थे। संगीत के अध्यापक जी पर नाटक संचालन और संगीत के सारे कार्यक्रम का भार सौंपा गया। आर्ट एवं क्राफ्ट के अध्यापक अपने विद्यार्थियों से झण्डियां बनवाने का कार्य बड़े ही सुचारु ढंग से अपनी देख रेख में करवा रहे थे। स्कूल में कई दिनों से सफाई तथा लिपाई पुताई का काम यद्ध स्तर पर चल रहा था।
उत्सव का समय शाम चार बजे था परन्तु सभी विद्यार्थी और अध्यापकगण अपने अपने कार्यों में सबह से ही व्यस्त दिखाई दे रहे थे। विद्यालय में चारों ओर झण्डियाँ लगाई जा रही थी। विद्यालय के मेन गेट पर एक बहुत ही बड़ा स्वागत द्वार बनाया गया था। जिस हाल में उत्सव होना था उसको विभिन्न चित्रों और झण्डियों तथा रंग बिरंगे चार्टी द्वारा विशेष रूप से सजाया गया। नीचे फर्श पर सुन्दर दरियां और कालीन बिछाए गए, उनके ऊपर कुर्सियाँ लगवाई गई। विद्यार्थियों के लिए ज़मीन पर दरियों पर बैठने का प्रबन्ध किया गया। एक ओर प्रधान और उच्च व्यक्तियों के बैठने के लिए मंच बनाया गया। मंच के ठीक सामने गीत गाने वाले विद्यार्थियों के लिए दरियाँ बिछाई गई। मध्य में ड्रामा और ड्रिल करने वाले विद्यार्थियों के लिए जगह छोड़ी गई। आमन्त्रित अतिथियों. अध्यापकों तथा बच्चों के माता-पिता के लिए कुर्सियों का प्रबन्ध था। सभापति के बाईं ओर एक विशाल मेज़ पर विद्यार्थियों को पुरुस्कार में देने के लिए पुस्तकें, शील्डे तथा मुख्य अतिथि को भेंट किए जाने वाले स्मृति चिन्ह (Memento) आदि रखे हुए थे।
सभी विद्यार्थी समय से पूर्व ही आने शुरु हो गए थे। विद्यालय के मुख्य द्वार के पास बैंड वाले विद्यार्थी विद्यालय की स्काऊटिंग के विद्यार्थी, एन.सी.सी. (Infantry, Air wing और Naval) के कैडेट पंक्तियों में अपनी अपनी वर्दियों म सज कर खड़े थे क्योंकि इन्हें अपने प्रिय सभापति महोदय को सलामी देनी था। आज के उत्सव के सभापति जिलाधीश महोदय थे। थोड़ी देर में एक हल्के नीले रंग की कार आती दिखाई दी। सभी सतर्क हो गए। गाड़ी रुकी, मुस्कराते हुए जिलाधीश कार से उतरे और प्रधानाचार्य महोदय से हाथ मिलाया। सभापति महोदय को सलामी दी गई। अध्यापकों तथा बच्चों ने सभापति महोदय को पुष्य मालाएँ पहनाईं। एन. सी. सी. Naval wing के दो Cadets मुख्य अतिथि का मंच तक नेतृत्व कर रहे थे। मुख्य अतिथि के साथ प्रधानाचार्य,स्कूल प्रबन्धक कमेटी के प्रधान तथा कमेटी के सदस्य और उनके पीछे कुछ अध्यापक थे।
विद्यालय के हाल में प्रवेश करते ही मुख्य अतिथि के सम्मान में सभी छात्र तथा आमन्त्रित सज्जन अपनी अपनी जगह पर खड़े हो गए और सभापति महोदय के आसन गृहण करने पर सभी अपनी अपनी जगह पर बैठ गए। कार्यक्रम आरम्भ होने से पूर्व ‘वन्दे मातरम्’ तथा ‘सरस्वती वन्दना’ की गई। फिर प्रधानाचार्य जी ने सभापति जी का संक्षिप्त शब्दों में स्वागत किया तथा विद्यालय की वार्षिक रिपोर्ट पढ़कर सुनाई। फिर एक रंगा-रंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया जिसमें एकांकी नाटक, लोकगीत तथा पंजाब का प्रसिद्ध भंगड़ा और गिद्धा भी पेश किया गया जिसका दर्शकों ने भरपूर आनन्द लिया। सभापति महोदय भी बाल कलाकारों के अभिनय को देखकर बार बार मन्द-मन्द मुस्कराते रहे।
इसके पश्चात् प्रधानाचार्य महोदय ने जिलाधीश महोदय की धर्मपत्नी से प्रार्थना की कि वे अपने कर कमलों द्वारा विद्यार्थियों को पुरुस्कार प्रदान करने की कृपा करें। विद्यार्थियों के लिए वे क्षण बड़ी ही प्रसन्नता और उल्लास के थे। जैसे ही कोई विद्यार्थी पुरस्कार ग्रहण करता, सारा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता। पारितोषिक कई प्रकार के थे-सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का,सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी का, सर्वश्रेष्ठ अध्यापक का, विद्यालय में सबसे अधिक उपस्थित रहने वाले विद्यार्थ और पिछले वर्ष वार्षिक परीक्षा में प्रथम तथा द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के लिए आदि।
पारितोषिक वितरण के पश्चात् सभापति महोदय ने अपना संक्षिप्त किन्तु रोचक भाषण दिया। उन्होंने विद्यार्थियों के बढ़ते हुए असन्तोष पर चिन्ता प्रकट की तथा विद्यार्थियों को अनुशासन में रहने तथा चरित्रवान बनने का उपदेश दिया। न में मुख्य अतिथि को विद्यालय की ओर से एक तुच्छ भेंट के रूप में एक दर एवं आकर्षक Memento भेंट किया गया तथा सभापति की धर्मपत्नी को सुन्दर शाल भेंट किया गया। इसके पश्चात प्रधानाचार्य महोदय ने आमन्त्रित जनों तथा अभिभावकों का विद्यालय में पधारने के लिए धन्यवाद किया और अगले दिन का अवकाश घोषित कर दिया। इसके पश्चात विद्यार्थियों को घर जाने की आज्ञा दे दी गई। कुछ प्रमुख छात्रों को ग्रुप फोटो के लिए रोक लिया गया। ग्रुप फोटो के पश्चात् मुख्य अतिथि के सम्मान में जलपान का आयोजन किया गया। अन्त में सबने अपने अपने घर की राह ली।
विद्यालय ही भावी जीवन की आधार शिला है। विद्यालय के सामूहिक उत्सवों द्वारा छात्रों में आपसी सहयोग, सहानुभूति, आत्म-विश्वास, एकता की भावनाओं का उदय होता है। संगठन-शक्ति का विकास होता है तथा अपने विचारों को दूसरों के सामने प्रकट करने की क्षमता पैदा होती है। प्रत्येक विद्यालय में ऐसे उत्सवों का समय समय पर आयोजन होना चाहिए और सभी विद्यार्थियों को ऐसे उत्सवों में भाग लेकर अपने अंदर छिपी हुई अपनी क्षमताओं का विकास करना चाहिए जिससे वह अपने जीवन में एक सभ्य और सुशिक्षित नागरिक बनकर अपने समाज और अपने देश की उन्नति में अपना योगदान दे सके ।