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Hindi Essay on “Sanch Barabar Tap Nahi” , ”साँच बराबर तप नहीं” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

साँच बराबर तप नहीं

Sanch Barabar Tap Nahi

 

प्रस्तुत काव्योक्ति में सत्य का ही महत्त्व स्वीकार किया गया है जो स्वतः में एक सर्वश्रेष्ठ कठोरतम तप है। सत्य बहमखी प्रतिभा का प्रतीक है और तप कठिनतम साधना का। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पर्ण विकास करने के लिए शिवं एवं सुन्दरम् से संयुक्त तपमय सत्य का सम्बल होना चाहिए।

सत्य’ शब्द संस्कत के ‘अस्ति’ क्रिया का अर्थ होता है ‘है’ अर्थात् भूत, वर्तमान तथा भविष्य तीनों कालों में जो स्वतः बना रहे वही ‘सत्य’ है। सत्य धर्म का प्रतीक है। तर शब्दों में सत्य ‘सत्य’ होगा. इसके अभाव में तो वह सत्य अधर्म का रूप धारण कर तकारी होगा। सत्यं शिवं सन्दरम’ वाक्य देखने में तो वह ‘अहं ब्रहास्मि’ तथा तत्वमसि’ उपनिषद् वाक्यों के समान प्रतीत होता है परन्तु वास्तव में वह यूनानी भाषा के एक सुभाषित का हिंदीकरण है. यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान अफलातून ने कहा है-द ट्रुथ,द गुड ,द ब्यूटीफुल| इस यूनानी महाकाव्य का शब्दानुवाद ब्रह्मा समाज के महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने बंगला साहित्य में किया। फिर बंगला साहित्य के प्रभाव के साथ ही इसका अनुवाद हिन्दी में हो गया। आज इस शब्द का इतना अधिक प्रचलन हिन्दी साहित्य में हो गया है कि यह हिन्दी का मौलिक शब्द-सा प्रतीत होता है। इस शब्द के भारतीय न होने पर भी भारत में इसका प्रयोग सर्वदा होता रहा है।

कविता सत्य, सौन्दर्य तथा शक्ति के लिये होने वाली वृत्ति का स्फुरण है। इन तीनों अंगों में से यदि एक अंग भी न्यून होता है, तो साहित्य श्रीहीन हो जाता है। वास्तव में ये तीनों ही काव्य की आत्मा हैं एवं एकरूप हैं। जो वस्तु सत्य, शिव होगी वह सुन्दर अवश्य होगी, भले ही उसका सौंदर्य नेत्रों द्वारा अकल्याणकारक होता है। इस प्रकार सत्य के लिए शिव एवं सुन्दर का होना परमावश्यक है।

तप का अर्थ है ‘तपना’ । तपने में महान् कष्ट होता है चाहे वह अग्नि में, धूप में, पुस्तकों में, गृह कार्यों या व्यापारों आदि किसी में तपना हो। तप एक महान् साधना है जिसमें महान् कष्ट उठाने पड़ते हैं। किसी भी क्रिया को करने के लिए मन, वाणी एवं शरीर तीनों को लगाना पड़ता है। इसीलिए तीनों की साधना को ‘तप’ ही कहेंगे।

सत्य मानव हृदय के गौरव का द्योतक है। जो व्यक्ति सत्य भाषण करता है उसका हृदय प्रबल रहता है। वह बड़े गौरव के साथ अपनी बात कह सकता है; किन्तु असत्य भाषण करने वालों की आत्मा निर्बल रहती है। वे सर्वदा संकोचमय एवं भयभीत रहते हैं। सनातन धर्म भी यही है कि हम सत्य बोलें; परन्तु वह सत्य प्रिय हो, अप्रिय सत्य भी नहीं बोलना चाहिए। मनुष्य में विनय, औदार्य, साहस, चरित्र बल आदि गुणों का विकास सत्य मार्ग पर पद रखने से होता है। सूक्तिकार ने ‘साँच बराबर तप नहीं’ सूक्ति में तप की सिद्धि को ही ‘सत्य’ कहा है। जीवन में कठिन कार्यों की सिद्धि बिना सत्य के हो ही नहीं सकती। सूक्तिकार के कथन से झूठ पाप की श्रेणी में आता है। सत्यनिष्ठ व्यक्ति संसार में अमर हो जाते हैं और स्वर्ग के अधिकारी होते हैं।

यदि समाज का प्रत्येक व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चले, तो समाज की उन्नति हो सकती है। सत्य के अभाव में हमारा नैतिक पतन हो जाता है। आत्मा की उन्नति की सुदृढ कसौटी सत्य ही है। सत्य की शक्ति से चरित्रवान् गांधी के आगे अंग्रेज झुक गए। यद्यपि यथार्थता से मुक्त सत्य बोलना बड़ा आसान है; परन्तु इसके लिए आध्यात्मिक बल परमावश्यक है। सत्य सर्वदा कठोर होता है; परन्तु हितकर अवश्य होता है। सत्य पालन ही किसी बड़े से तप की सिद्धि एवं चरित्र-निर्माण का साधन है। सत्यनिष्ठ आत्मा में ही ईश्वर का वास होता है।

सत्य पालन ही कठोरतम तप है। सन्तों का जीवन सत्य भावना से ओत-प्रोत होता है। सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य के पालन में अपना राज्य, परिवार स्त्री-पुत्र-कलत्रादि सभी को पड़ा-रघुकुल रीति सदा चलि आई. प्राण जाहिं पर वचन न जाईं. अंत में हुआ यही वचनबद्ध दो वरदान प्रदान किये और पुत्र वियोग में प्राणों को त्याग दिया. वास्तव में सत्य का पालन करना ‘असि’ की धार पर चलना है. सत्यवादियों के वचन हाथी के गत होते हैं जो बाहर निकलने के बाद पुनः अन्दर प्रवेश नहीं करते। राजा शिवि की खयाति भी सत्य के कारण ही हुई।

सत्य की महिमा अपार है। यह सदैव परिकल्पना से दृढतर होता है। असत्य बोलने वाले दण्ड के भागी होते हैं; क्यों कि तुलसी के शब्दों में असत्य के समान कोई पाप नहीं। वास्तव में सम्पूर्ण मानव-समाज सत्य की धुरी पर आश्रित है। सत्य के विरुद्ध बोलना अपनी आत्मा को धोखा देना है। असत्य भाषण क्षणिक लाभ प्रदान करता तो प्रतीत होता है; परन्तु बहुत बड़ी हानियों के लिए चरित्र के छिद्र द्वारों को खोल देता है। असत्य भाषण तो कभी-कभी जीवन को भी ले बैठता है।

स्पष्ट है कि जीवन में सत्य पर चलने वाला व्यक्ति ही सफलता के मार्ग को सुदृढ़ करता हुआ अपना तथा अपने राष्ट्र का कल्याण करता है। तप मानव के कठोर परिश्रम का प्रतीक है। तप और सत्य दोनों ही मिलकर मानव के जीवन को मुखरित करते हैं। सत्य के विषय में यह उक्ति कितनी ठीक है-सत्य ही संसार का गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त है, जिसके द्वारा यह चल रहा है। हर क्षण पर सत्य ही की विजय होती है, झूठ की कदापि नहीं। अतः सत्य की प्राप्ति ही कठोरतम तप है।

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