Hindi Essay on “Sajjanta Manav ka Abhushan” , ”सज्जनता मानव का आभूषण है” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
सज्जनता मानव का आभूषण है
Sajjanta Manav ka Abhushan
भूषण का अर्थ होता है-गहना। गहने शरीर को सजाने, उसकी बाहरी सुन्दरता बढ़ाने के काम आया करते हैं। इसके लिए मनुष्य जाति हर वर्ष, बल्कि हर दिन लाखों-करोड़ों रुपया खर्च कर दिया करती है। फिर भी अपनेपन की सुन्दरता को शायद पाती, जैसा कि वह चाहती है। इस कारण तन को सजाने वाले गहने आकार, रंग-ढंग हर दिन बदलता रहता है। उस पर खर्च भी दिन-प्रतिदिन बढ़ता है। गहने घड़ाने को सोना जटाने के लिए आदमी तरह-तरह के पापड़ बेलता है, सच-झूठ और अच्छे-बुरे कार्यों का सहारा लेता है तब भी उसकी नीयत नहीं भर पाती। और-और की इच्छा हमेशा बढती ही रहती है- उसके लिए चाहे कुछ भी न करना पड़े?
मानव पास एक अन्य स्वाभाविक और जन्मजात भूषण यानी गहना भी होता है। वह उसके बिना किसी प्रकार का सच-झूठ का, अच्छे-बूरे कर्म का सहारा लिए, बिना एक भी पैसा खर्च किए अपने-आप प्राप्त हो जाया करता है। चाहे तो मनुष्य उसे बढ़ाकर नित नए रूप में उसका प्रयोग करके उसका असीमित विस्तार कर सकता है। उसके कारण खुद भी सब के गले का हार बन सकता है, लेकिन नहीं, बिना मूल्य मिलने वाले अपने इस भूषण को अक्सर मनुष्य पहचान ही नहीं पाता।
यदि पहचान भी लेता है, तो अक्सर छोटे-से स्वार्थ के लिए उसे उतारकर फेंक देने में तनिक भी लज्जा अनुभव नहीं करता। तनिक-सी भी देरी किए बिना इस अमूल्य भूषण को उतार कर फेंक देता है और फिर कहीं का भी नहीं रह जाता। जन्मजात रूप से मुफ्त में प्राप्त होने वाले इस भूषण का नाम-धाम सभी जानते हैं । हाँ ठीक, सज्जनता सज्जनता को ही सज्जनों, हर धर्म-जाति के महापुरुषों ने मानव का, मनुष्यता का सच्चा भूषण कहा और माना है। सब धर्म ग्रन्थों ने भी बिना सन्देह इस सत्य का प्रतिपादन किया है। सज्जनता यानी सत-जन होना।
इस का अर्थ है सच्चा. श्रेष्ठ और जन का अर्थ है-व्यक्ति, आदमी, मनुष्य। यानी जो सच्चा और श्रेष्ठ जन है, वही सज्जन है। स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि किस के प्रति सच्चा और किस प्रकार का श्रेष्ठ? प्रश्न का सभी धर्म, सभी धर्मग्रन्थ और सभी तरह के महापुरुष एक ही उत्तर देते हैं- मनुष्यता के प्रति सच्चा, मनुष्यता को ही सबसे बढ़ कर श्रेष्ठ मानने वाला व्यक्ति सज्जन है। सज्जन वह तभी है कि उसके पास सज्जनता है अर्थात् जिस प्रकार भूषण या गहने पहने जाकर आदमी के शरीर की सुन्दरता को बढ़ा और निखार देते हैं, उसी प्रकार अच्छे गुण-व्यवहार मनुष्य के तन-मन की ज्योति बढ़ा और उसकी मनुष्यता की भावना में निखार ला दिया करते हैं। इससे उसे जो लोकप्रियता, मान एवं यश प्राप्त हुआ करता है, वास्तव में वही सज्जनता रूपी भूषण से बढ़ने वाली उसकी शोभा और निखार है।
अब प्रश्न उठता है कि यह सज्जनता-रूपी भषण किस प्रकार के व्यक्ति को प्राप्त हुआ करता है? दूसरे शब्दों में सज्जनता के भूषण से सजा-संवार व्यक्ति कैसे और किस प्रकार का हुआ करता है? उसे कैसे पहचाना जा सकता है? उत्तर में रहीम जी का एक दोहा देख लेना उचित रहेगाः
“जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।’
अर्थात् उत्तम प्रकृति वालों का कुसंगति उसी प्रकार कुछ नहीं बिगाड़ सकती, जैसे चन्दन-वृक्ष से लिपटे रहकर भी जहरीले नाग उसकी सुगन्ध और शीतल प्रकृति को प्रभावित कर बदल नहीं पाते। हर हाल में एक बने रहना यानी अच्छे और मानवीय भाव से युक्त बने रहना ही वास्तव में सज्जनता है। आम तौर पर कहा जाता है कि:
‘जैसी संगति बैठिए,
वैसा ही फल देत‘
अर्थात् संगति का प्रभाव आदमी पर अवश्य पड़ता है। लेकिन स्वभाव सज्जन व्यक्ति और उसकी सज्जनता के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। सज्जन सागर के समान मोती भरे गहरे अन्तराल हृदय वाला, धरती के समान अच्छा-बुरा सब-कुछ सह कर भी बदले में अच्छा ही देने वाला विशाल-विस्तृत, हिमालय के समान स्थिर और उच्च भावों से भरा हुआ होता है। वह चन्दन के समान विष की जलन शान्त-शीतल करने वाला होता है, जहरीले साँप-सा मनुष्यता के लिए हानिकारक सीभलकर भी नहीं बना करता। हरेक के काम आने, नम्र होने, निःस्वार्थ और निस्पंद यानि लालसा से रहित होने का नाम सज्जनता है। हमेशा सब के काम आने के लिए तैयार रहने का नाम सज्जनता है। सबके सुख-दुःख को अपना समझने का नाम सज्जनता है। सभी के दुखते घावों के लिए मरहम का फाहा बन जाने का नाम सज्जनता है। ऐसी प्रकति यानी स्वभाव ही सज्जनता है कि जो मानवता का भूषण हुआ करती है। धरती पर मानवता टिकी हुई है, इसका अर्थ है कि सज्जनता जीवित है और हमेशा जीवित रहकर मानवता को विभूषित करती रहेगी।