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Hindi Essay on “Sainik Shiksha Aur Vidyarthi” , ”सैनिक-शिक्षा और विद्यार्थी ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

सैनिक-शिक्षा और विद्यार्थी 

Compulsory Military Education

निबंध नंबर : 01

जीवन में सफलता पाने के लिए हर प्रकार की शिक्षा अनिवार्य है। ‘शिक्षा’ शब्द का व्यापक अर्थ केवल कुछ किताबें पढक़र, एक के बाद एक परीक्षांए पास करते जाना ही नहीं है, बल्कि वास्तविक अर्थ है जहां से जो कुछ भी अच्छा और उपयोगी मिल सके, वह सब कुछ सीखना और अपना लेना। इस ्रव्यापक अर्थ और संदर्भ में ही ‘सैनिक-शिक्षा और विद्यार्थी’ जैसे विषय पर विचार करना युक्तिसंगत और उपयोगी हो सकता है। यहां भी इसी अर्थ में विचार किया जा रहा है।

आज का विद्यार्थी भविष्य का सामान्य और विशेष सभी प्रकार का नागरिक, नेता, प्रशासक आदि सभी कुछ हुआ करता है। अत: शिक्षा-काल में हर दृष्टि से और सभी स्तरों पर उसे अपने एंव राष्ट्र के भविष्य की रक्षा की तैयारी करनी पड़ती है। इसी स्थिति में या इस दृष्अि से जब हम विद्यार्थियों के लिए एक प्रकार से अनिवार्य सैनिक-शिक्षा की चर्चा करते हैं तो इसका यह अर्थ नहीं कि उसे यह शिक्षा किसी पर आक्रमण करने या देशकी सीमाओं का विस्तार करने के लिए लेनी चाहि, बल्कि इसका सीध अर्थ है अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता और सीमाओं की रखा के लिए उसे सैनिक-शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। इसके अन्य कई प्रयोजन एंव उपयोग भी हो सकते हैं। सैनिक का जीवन तो कठिन होता ही है, उसे दी जाने वाली शिक्षा भी सरल न होकर अत्यंत कठिन हुआ करती है। अत: सैनिक-शिक्षा-प्राप्त विद्यार्थी वर्तमान और भविष्य में प्रत्येक कठिन परिस्थिति और वातावरण में रहना सीखने के साथ-साथ जीना और कठिनाइयों का सरलता से सामना करना भी सीख लेता है। इस सीख के बाद वह सब प्रकार से समर्थ हो सकता है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि सैनिक का जीवन एक विशेश प्रकार के अनुशासन में पलता और अनुशासित ढांचे में ढला स्वस्थ-सुंदर हुआ करता है। यदि विद्यार्थियों के लिए सैनिक शिक्षा अनिवार्य कर दी जाए, तो निश्चय ही इस प्रकार के बहुत सारे सुपरिणाम हमारे सामने आ सकते हैं। अनुशासहीनता की व्यापक समस्या का समाधान तो हो ही सकता है, हमारी भविष्य के लिए उभर रही वर्तमान पीढ़ी सभी प्रकार से स्वस्थ एंव सुंदर भी हो सकती है। इस प्रकार के और भी कईं ऐसे संदर्भ है जो सैनिक-शिक्षा के महत्व को उजागर करते हैं।

इस प्रकार की शिक्षा का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि सैनिक-शिक्षा देते समय तत्काल उचित निर्णय कर पाने की क्षमता का भी स्वाभाविक विकास किया जाता है। विद्यार्थी इस प्रकार की क्षमता प्राप्त कर बड़े होन ेपर अपने और पूरे देश-समाज के लिए निर्णायक क्षणों में उचित नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं। इन सूक्ष्म बातों के अतिरिक्त आज के संदर्भों में विद्यार्थियों और नवयुवकों को अनिवार्य सैनिक-शिक्षा देना अन्य कई दृष्टियों से भी आवश्यक एंव लाभप्रद स्वीकारा जाता है। भारत जैसे चारों ओर से विरोधी विचारधाराओं और शक्तियों से घिरे देश के लिए तो उन स्थूल बातों के संदर्भ में अनिवार्य सैनिक शिक्षा का महत्व निश्चय ही और भी बढ़ जाता है। विदेशी आक्रमण ओर संकट काल में नियमित सैनिम तो अग्रिम मोर्चो संभाले हुआ करते हैं, तब सैनिक-रूप में शिक्षित विद्यार्थी और युवा वर्ग देश की भीतरी स्थितियों को संभाल, दूसरी रक्षा-पंक्ति का काम कर सभी का मनोबल बढ़ांए एंव आस्था जगाए रख सकते हैं। भारत क्योंकि अपनी स्वतंत्रता के विगत पचास वर्षों में पड़ोसी देश के अकारण आक्रमणों का तीन-चार बार शिकार हो चुका है, अत: यहां की युवा शक्ति का हमेशा सैनिक रूप में सन्नद्ध रहना निश्चय ही आवश्यक है। उस स्थिति में तो और भी कि जब हमारी सार्वभौम राष्ट्रीय सत्ता को चुनौतियां मिलती रहती हों और अकारण आक्रमणों का भय निरंतर बना हुआ हो।

यदि विद्यार्थी और युवा वर्ग सैनिक रूप में प्रशिक्षित रहता है, तो सामान्य शांति काल में भी वह देश-हित में बहुत कुछ कर सकता है। वह राष्ट्र-निर्माण के कार्यों में सहायता पहुंचा सकता है, प्राकृतिक विपदाओं के समय देश के धन-जन की रक्षा कर सकता है। इस सबसे भी बढक़र वह देशवासियों को संगठित रख उनका मनोबल बनाए-बढृाए रख सकता है। राष्ट्र को दृढ़ आस्था और विश्वास दे सकता है। अनिवार्य सैनिक-शिक्षा के एक खतरे की ओर भी ध्यान आकर्षित किया जाता है। वह यह कि इस प्रकार धीरे-धीरे सारा देश ही सैनिक मनोवृति एंव सैनिक छावनी में बदल जाएगा। जिस हिंसा वृति का प्रयोग सैनिक के लिए शत्रु के प्रति आवश्यक हुआ करता है, वह अन्यत्र भी प्रगट होने लगेगी इत्यादि।

पर हमारे विचार में इस प्रकार के खतरे उस सैनिकवेश में हुआ करते हैं जो अनुशासित नहीं हुआ करता, या फिर जिसे अन्य कोई काम-धाम न हो और केवल बेकारी ही हो। नहीं, विद्यार्थियों और युवाओं को सैनिक-शिक्षा देने का यह अर्थ नहीं कि उनके सजह-स्वाभाविक जीवनक्रम को ीाी सैनिकत्व में ढाल दिया जाए। प्रयोजन केवल इतना और इस प्रकार की शिक्षा देना है, जो अनुशासन के साथ-साथ प्रतिरक्षा में भी सक्षम बना सके। ऐसी शिक्षा की व्यवस्था अवश्य ही व्यापक स्तर पर की जानी चाहिए। आज के संदर्भों में इसका महत्व और आवश्यकता बताने समझाने की जरूरत नहीं। सभी जानते और मानते हैं।

 

निबंध नंबर : 02 

अनिवार्य सैनिक शिक्षा 

Compulsory Military Education

 

                गीता में कहा गया है- ’चतुर्वण्यं मया सृष्टं गुण कर्म विभागशः’ अर्थात गुण और कर्म के आधार पर मैंने चार वर्णो का निमार्ण किया है।’ यह बात आज विज्ञान की कसौटी पर भी सत्य सिद्ध हो रही है कि प्रत्येक मस्तिष्क, प्रत्येक कार्य के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता। एक-दूसरे की रूचि और विचारों में भिन्नता की प्रकृति होती है। परिणामस्वरूप न तो सभी वैज्ञानिक, न तो सभी कलाकार और न तो सभी सैनिक ही हो सकते हैं। इसी आधार पर प्राचीन भारतीय सामाजिक व्यवस्था में क्षात्र-धर्म का विशेष महत्व था। बाह्म आक्रमण तथा आन्तरिक कलह से देश की सुरक्षा का भार केवल उन्हीं के कंधों पर था। सैनिक प्रशिक्षण के लिए सभी राज्यों में विविधत आश्रम और आचार्य सुनिश्चित थे एवं प्रशिक्षण की अवधि भी सुनिश्चित थी। महाभारत काल मंे द्रोणाचार्य सैनिक शिक्षा के प्रामाणिक आचार्य थे। मौर्य काल में तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालयों में भी अन्य विषयों के अतिरिक्त सैनिक शिक्षा की विशेष व्यवस्था थी।

                भारतीय मनीषियों की दृष्टि में शारीरिक शक्ति आत्मिक शक्ति के समक्ष नगण्य थी। अतः जनसाधारण सैनिक शिक्षा मंे सामान्यतः प्रवृति नहीं होता था। वह केवल राजाओं, राजपुत्रों एवं राजनयिक प्रजा तक ही सीमित थी। वे युद्ध कला में पारंगत होते थे तथा उन्हें अपने देश की आन-बान पर गर्व होता था। वे अपने देश की रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग कर देते थे। इस धर्मप्राण देश के सभी राजाओं के पास अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार सुव्यवस्थित सेना होती थी जो अपने राजा एवं राज्य की रक्षा के लिए आत्मोत्सर्ग करने को तैयार रहती थी। रामायण काल में राम-रावण की सेना के मध्य भंयकर युद्ध हुआ था। महाभारत काल में कौरव-पाण्डवों का रोमांचकारी युद्ध हुआ जिसमें कौरवों की 11 अक्षौहिणी सेना और पाण्डवों की 7 अक्षौहिणी सेना मारी गई। उस समय जनता में दया, अहिंसा तथा क्षमा-ये ही प्रधान गुण थे, फिर भी सैनिक शिक्षा की महता कभी कम नहीं हुई।

                आधुनिक आर्थिक एवं वैज्ञानिक युग के आगमन के साथ ही धार्मिक प्रवृति का भी हृास हुआ। आर्थिक साम्राज्य विस्तार की आकांक्षा से एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर बलात आर्थिक आधिपत्य व वैज्ञानिक प्रभाव जमाने का प्रयास करने लगे। एक-दूसरे को नीचा दिखाने एवं विध्वंस करने हेतू तरह-तरह की कलुषित योजनाएं एवं षड्यंत्र बनाने लगे। ऐसी ही विषम परिस्थियों मंे अपनी अनन्त साधनाओं, तपस्याओं और बलिदानों के पश्चात हम स्वाधीन हुए। हमने स्वराज्य प्राप्ति के बाद प्राचीन भारतीय शाश्वत मूल्यों जैसे-सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, क्षमा, दया, शांति आदि को पुनप्र्रतिष्ठित किया। वर्तमान विश्व के जटिल एवं संघर्षमय वातावरण में हमारी शांति भंग न होने पाए, हमारी स्वतंत्रता का अपहरण न होने पाए एवं इतिहास के पृष्ठों पर सदैव हमारा गरिमामय स्थान सुरक्षित रहे, इसके लिए उपर्युक्त शाश्वत मूल्यों के साथ-साथ वीर भोग्या वसुन्धरा के सिद्धांत पर भी अपना ध्यान देना होगा और इसके लिए हमें सैनिक शिक्षा एवं सशक्त सैनिकों की आवश्यकता होगी।

                प्रकृति का यह शाश्वत नियम है कि सबल निर्बल को, बड़े छोटे को, धनी निर्धन को अपना ग्रास बनाते हैं और बनाएंगे। इसलिए व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक सभी के लिए यह अनिवार्य आवश्यकता हो जाती हैं कि वह आज सैन्य संसाधनों का समुचित विस्तार करे। राष्ट्र की सैन्य शक्ति तभी मजबूत होगी जब प्रत्येक नागरिक सैनिक शिक्षा में दक्ष हो। वर्तमान परिस्थितियों मंे हमारे देश को सैनिक शिक्षा की नितान्त आवश्यकता है और इसकी सुव्यवस्था में ही देश का कल्याण निहित है।

                स्वस्थ शरीर मंे ही स्वस्थ मन निवास करता है। यदि देश मंे नागरिकों का स्वास्थय उŸाम होगा तभी वे देश के प्रति ठीक ढंग से अपने दायित्व का निर्वाह कर सकेंगे। सैनिक शिक्षा से युवकों का तन एवं मन पुष्ट एवं सशक्त होता है। भारतीय समाज में युवक सबल होगे तो देश सबल होगा। आज चंहु ओर अनुशासनहीनता का बोलबाला है। सैनिक अनुशासन सर्वविदित है। सबसे छोटे स्तर से लेकर उच्च पदस्थ अधिकारी तक तुरन्त आज्ञा का पालन करना अपना धर्म समझते हैं। सभी में अनुशासन और श्रम की प्रवृति देखी जाती है। सैनिक शिक्षा का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि इससे हमारे समाज में फैलती अनुशासनहीनता, मर्यादाहीनता एवं श्रमहीनतर पर अंकुश लगेगा। सैनिक शिक्षा से धैर्य, सहिष्णुता, साहस एवं स्वावलम्बन को बढ़ावा मिलता है, जिससे राष्ट्र आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर होता है। निष्कर्ष यह है कि सैनिक शिक्षा व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय हित दोनों दृष्टियों से परमावश्यक है।

                स्वाधीनता के बाद स्कूलों, काॅलेजों तथा विश्वविद्यालयों मंे वैकल्पिक तौर पर विद्यार्थियों को सैनिक प्रशिक्षण दिया जाता है। लेकिन सैनिक प्रशिक्षण की यह विकल्पता समाप्त कर जूनियर से लेकर स्नातक कक्षाओं के सभी विद्यार्थियों के लिए सैनिक-प्रशिक्षण अनिवार्य कर देना चाहिए।

                अन्त मंे देश की आन्तरिक एवं बाह्म आक्रमणांे से रक्षा, शक्तिशाली राष्ट्रों से अपनी संप्रभुता की सुरक्षा तथा देशवासियों के शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक उन्नयन के लिए सैनिक शिक्षा की परमावश्यकता है। यह शिक्षा की कार्यशीलता, श्रमशीलता एवं स्वावलम्बन का शिक्षक है जो प्रमादग्रस्त व्यक्ति एवं राष्ट्र के सारे बंद कपाटों को खोल देती है।

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