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Hindi Essay on “Raksha Bandhan ” , ” रक्षा- बन्धन” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

रक्षा- बन्धन

निबंध नंबर :- 01

रक्षा- बन्धन हमारे देश का महान और पावन पर्व है | इसे हिन्दू लोग बड़ी श्रद्धापूर्वक मानते है | यह पर्व प्रत्येक वर्ष श्रावण मास को पूर्णिमा को सारे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है | इस पर्व को सारे राष्ट्र में अनेक नामो से पुकारा जाता है | अधिकतर यह ‘श्रावणी’ , राखी’ व ‘सलूनो’ आदि नामो से जाना जाता है | भाई बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक यह करके उनकी कलाइयो पर राखी बाधती है | भाई भी अपनी बहनों को राखी बाधने के बदले में अपनी सामर्थ्य के अनुसार धनराशी तथा अन्य प्रकार के उपहार देते है | इस दिन बहने अपने भाइयो की दीर्घ जीवन की मंगलकामना करती है तथा भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते है |

इस पर्व के अवसर पर प्रत्येक घर में अनेक प्रकार के पकवान बनाए जाते है | सभी बच्चे , स्त्री व पुरुष नए-नए वस्त्र धारण करते है | इस दिन धार्मिक लोग नदियों में स्नान करते है तत्पश्चात यज्ञ करते है तथा नया यज्ञोपवित धारण करते है | ब्राह्मण लोग भी अपने यजमानो के हाथ में राखी व धागा बाधते है तथा उनकी दीर्घायु होने की प्राथना करते है और उनसे दक्षिणा प्राप्त करते है |

इस पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्त्व भी है | ऐसा कहा जाता है कि जब सुल्तान बहादुरशाह ने चारो और से चित्तौडगड को घेर लिया था तब चितौड़ की महारानी कर्मवती ने अपनी रक्षा के लिए हुमायूँ के पास राखी भेजी थी | तब राखी के बन्धन में बंधा हुआ हुमायूँ अपने बैर-भाव को भुला कर महारानी की रक्षा के लिए दौड़ पड़ा |

इस प्रकार प्रमे, त्याग तथा पवित्रता का सन्देश देने वाला यह पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न होता है | इस पर्व पर रक्षा के धागों में बहन का प्यार और मंगल कामनाए एकत्र करके कलाइयो में बाधने की पवित्र प्रथा युगों-युगों से इस देश में चली आ रही है | आजकल रक्षा – बन्धन का यह पर्व भी अन्य सभी पर्वो की तरह एक लकीर को पिटे जाना ही प्रतीत होता है | अर्थात अब यह मात्र एक परम्परा का निर्वाह व एक औपचारिकता बन कर ही अधिक रह गया है | इसका वास्तविक महत्त्व प्राय : लुप्त सा हो गया है |

 

निबंध नंबर :- 02

 

रक्षाबंधन

भारत एक विशाल देश है। यहाँ विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों व संप्रदायों के लोग निवास करते हैं। इनसे जुड़े हुए अनेक पर्व-त्योहार समय-समय पर होते हैं जो जीवन में रसता, नवीनता एंव उत्साह का संचार करते हैं। रंक्षाबंधन हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है जो परस्पर प्रेम, सौहार्द, पवित्रता एंव उल्लास का परिचायक है। मूलतः यह त्योहार भाई-बहन के संबंधो को और भी प्रगाढ़ता प्रदान करता है।

रक्षाबंधन का त्योहार कब और कैसे आंरभ हुआ, इस संबंध मंे निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। प्राचीन कथा के अनुसार देव-दानवों के मध्य एक बार भंयकर युद्ध हुआ और देवगण पराजित होने लगे। तब देवराज इंद्र की पत्नी शचि ने पति की विजयकामना हेतू उन्हें रक्षा-सूत्र बाँधकर संग्राम में भेजा। फलस्वरूप इंद्र ने विजयश्री का वरण किया। इसी दिन से रक्षाबंधन का पर्व मनाने की प्रथा का आरंभ हुआ।
यह त्योहार हिंदू तिथि के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के हाथ में रक्षा-सूत्र अर्थात् राखी बाँधती हैं तथा उनकी दीर्घायु के लिए मंगल कामना करती हैं। वहीं भाई जीवन पर्यंत बहन की रक्षा का संकल्प लेता है। इस प्रकार यह त्योहार भाई-बहन के परस्पर संबंधांे की प्रगाढ़ता को दर्शाने वाला एक दिव्य, अनुपम एंव श्रेष्ठ त्योहार है।

इस त्योहार का एक ऐतिहासिक महत्व भी है जो मध्यकालीन भारतीय इतिहास के मुगल शासनकाल से संबंधित है। कहा जाता है कि एक बार गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। चित्तौड़ पर आई आकस्मिक विपदा से रानी कर्मवती विचलित हो गई और जब उन्हें आत्म सुरक्षा का कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया तब उन्होंने हुमायूँ को रक्षा हेतु रक्षासूत्र (राखी) भेजा। उस समय हुमायूँ स्वंय शेरशाह के साथ लड़ाई में उलझा हुआ था पंरतु राखी की मर्यादा को कायम रखने के लिए वह कर्मवती की सहायता के लिए आया पंरतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। यह ऐतिहासिक घटना निस्संदेह रक्षाबंधन की गरिमा एंव पवित्रता को दर्शाती है।

धार्मिक दृष्टि से रक्षाबंधन के त्योहार का प्रचलन अत्यंत प्राचीन है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने समय-समय पर धरती से अत्याचार व पाप का विनाश करने हेतु अनेक रूपों में जन्म लिया। विष्णुपुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने अपने वामन के अवतार में तत्कालीन अभिमानी पंरतु दानी राजा बलि के विनाश हेतु उससे धरती के तीन पग धरती को दान स्वरूप माँग लिया था। स्वीकृति मिलने पर भगवान वामन ने अपने एक पग से ही संपूर्ण धरती को नापते हुए बलि को पाताल भेज दिया। इस प्रकार बलि के अत्याचारों से लोगों को मुक्ति प्राप्त हुई। इस धार्मिक घटना की स्मृति में आज भी रक्षाबंधन के दिन ब्राह्मण अपने यजमानों से दान प्राप्त करते हैं तथा उनके हाथ मंे रक्षा-सूत्र बाँधकर नाना प्रकार के आशीर्वाद प्रदान करते हैं। रक्षा-सूत्र बाँधते समय इस प्राचीन मंत्र का उच्चारण किया जाता है –

येन बद्धो बली राजा, दानवेंद्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे ! मा चल मा चल।। 

रक्षाबंधन का त्योहार समस्त भारत में पूरे उल्लास व प्रेम के साथ मनाया जाता है। वैसे तो यह प्रमुखतः हिंदुओं का ही त्योहार है पंरतु हिदुंओं के अतिरिक्त अन्य धर्मों एंव संप्रदायों के लोग भी इसकी महत्ता को स्वीकार करते हैं। इस दिन बाजारों और दुकानों मे चहल-पहल भी देखते ही बनती है। मंदिरों में श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहा है।

रक्षाबंधन का त्योहार भारतीय संस्कृति की एक अनुपम धरोहर है जो इसकी विशालता, अपनत्व एंव पवित्रता को दर्शाती है। भावनात्मक एंव सांस्कृतिक रूप से मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने के लिए यह त्योहार अद्वितीय भूमिका अदा करती है।

निबंध नंबर :- 03

रक्षा-बन्धन

Raksha Bandhan

श्रावण की पूर्णिमा के शुभ अवसर पर इस सुन्दर त्योहार का आगमन होता है। भारत में इस पवित्र और आता पवित्र त्योहार का विशेष महत्त्व है। यह वर्षा ऋतु का संदेशवाहक बनकर है। ‘रक्षा-बन्धन’ अर्थात् रक्षा का बन्धन इन दो शब्दों में केवल भाई-बहन के पवित्र स्नेह का ही बन्धन नहीं बल्कि दो आत्माओं, दो हृदयों और दो प्राणों की एक दूसरे के प्रति घनिष्ठता का प्रतीक है। इन राखी के तारों की इतनी शान है कि इन्हीं तारों का मान रखने के लिए कई भाइयों ने अपनी जान की बाजी भी लगाने में हिचकिचाहट नहीं की।

ऐतिहासिक दृष्टि से इस त्योहार का सम्मान और भी अधिक हो गया है। मेवाड़ को अत्याचारी शेरशाह से बचाने के लिए महारानी कर्मवती ने मुगल सम्राट हुमायूँ को राखी भेजी थी। इन कच्चे धागों के तारों में सच्चे स्नेह की आभा से हुमायूँ का हृदय भी चमक उठा। उसने अपनी हिन्दू बहन की रक्षा के लिए अपना कर्तव्य निभाया और रक्षा-बन्धन के त्योहार के मूल्य को ठीक से आँका।

धार्मिक क्षेत्र में रक्षा-बन्धन का महत्त्व कई प्रकार से माना जाता है। कहते हैं, इसी पवित्र दिन भगवान् विष्णु को वामन अवतार के रूप में दानव राजा बलि को तीन पग भूमि माँगने पर सारा राज्य दान करना पड़ा। इस महान् त्याग की स्मृति बन कर यह शुभ त्योहार आता है। दान-पुण्य के कारण ब्राह्मणों के लिये यह त्योहार और भी महत्त्वपूर्ण बन जाता है। इस दिन वे भी अपने यजमानों के हाथों में पीला धागा बाँधकर आशीर्वाद दत है। ब्राह्मणों में तो यज्ञोपवीत भी इसी शुभ दिवस पर धारण किया जाता है। इस रीति को ‘श्रावणी कर्म’ कहा जाता है।

पौराणिक कथानक के अनुसार जैन ग्रन्थों में विष्णु कुमार द्वारा राजा बलि के पंजों स 700 मुनियों को छडाने का वर्णन इसी दिन का स्मरण कराता है।

‘रक्षा-बन्धन’ देश के कोने-कोने में मनाया जाता है। सारी बहिनें इस त्योहार की वष भर प्रतीक्षा करती रहती हैं। वे अपने हाथों से भाइयों को राखी बाँधकर मिठाई खिलाती है। इसी आनन्द और हँसी-खुशी के साथ यह त्योहार सम्पन्न होता है।

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