Hindi Essay on “Paryatan Udyog” , ”पयर्टन-उद्योग” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
पयर्टन-उद्योग
Paryatan Udyog
आज के युग को उचित ही उद्योग-व्यापार युग कहा जाने लगा है। क्योंकि आज के युग में प्रत्येक मानवीय कदम उद्योग बनता जा रहा है। है न विचित्र बात कि सैर-सपाटा भी उद्योग और गया है। पर्यटन यानी भ्रमण। भ्रमण भी कभी उद्योग हो सकता है? होता है। आजकल पर्यटन का विकास भी एक उद्योग की तरह हो रहा है। जैसे अन्य सभी प्रकार के उद्योग अपनी प्रसिद्धि और विकास के लिए तरह-तरह की विज्ञापनबाजी करते हैं, उसी प्रकार आज पर्यटन को बढ़ाना देने के लिए भी हरसंभव विज्ञापनबाजी की जाती है। विज्ञापनबाजी के हर माध्यम का सहारा लिया जाता है। है न विचित्र बात!
बात विचित्र हो या न हो, सत्य, सटीक एंव सचित्र। वास्तव में आज केवल भारत ही नहीं, सारे विश्व में पर्यटन को एक महत्वपूर्ण, विदेशी मुद्रा सुलभ करनो वाला, अर्थव्यवस्था को सुधारने वाला पूर्ण उद्योग ही माना जाता है। जैसे अन्य उद्योग-धंधों के निर्माण और विकास के लिए विशेष्ज्ञ प्रशिक्षण दिए जाते हैं, उसी प्रकार पर्यटन-उद्योग को चलाने के लिए भी प्रत्येक देश के विश्वविद्यालयों में प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है। यह भी एक सत्य है कि कुछ प्रांतों की अर्थव्यवस्था का बुनियादी आधार ही पयर्टन-उद्योग को समझा जाता है। जैसे विगत एक-दो वर्षों में स्थानीय अव्यवस्था, अशांति के कारण कश्मीर में उचित संख्या में पर्यटक नहीं पहुंच सके, तो वहां की सरकार को यह कहना पड़ा है कि पर्यटकों के अभाव में हमारी अर्थव्यवस्था चौपट होकर रह गई। यही बात धार्मिक महत्व वाले देशों और स्थानों के बारे में भी कही जा सकती है। यदि वहां तीर्थयात्री पहुंचना बंद हो जांए तो निश्चय ही वहां का सारा अर्थतंत्र छिन्न-भिन्न होकर रज जाएगा। इन या इस प्रकार की बातों को देखकर ही आज के युग में पर्यटन को भी एक उद्योग मान लिया गया है। इसके संरक्षण-विकास की ओर भी अन्य उद्योगों के समान, बल्कि कई बार तो उनसे भी बढक़र ध्यान दिया जाता है। इसकी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए वैसे ही उपाय किए जाते हैं, जैसे किसी नव-निर्मित वस्तु की ओर उपभोक्ता का ध्यान खींचा जा रहा हो।
पर्यटन को आय का स्त्रोत बनाने के लिए प्रांतीय एंव राष्ट्रीय सरकारें सबसे पहले प्राकृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और कलात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण एंव लोगों को आकर्षित कर पाने में समर्थ स्थानों का विकास किया करती हैं। उन्हें अधिकाधिक नयनाभिराम एंव दर्शनीय बनाती हैं। वहां खान-पान, आवास तथा अन्य प्रकार की आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था करती है। निजी तौर पर भी इस प्रकार की व्यवस्थांए होती हैं। होटल, लॉज, अतिथिगृह खुलते हैं। अन्य प्रकार के सामानों की व्यवस्था होती है। कई प्रकार के सहयोगी काम-धंधे भी पर्यटन-स्थानों पर खुल जाते हैं। ऐसा करने से निश्चित ही कई लोगों के लिए रोजगार की व्यवस्था होती है। आय के स्त्रोत और साधन प्राप्त होते हैं। परिणामस्वरूप स्वत: ही पयर्टन का महत्व उद्योगवत हो गया या हो जाया करता है।
ऐतिहासिक एंव प्राकृतिक महत्व के स्थानों का विकास अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को ध्यान में रखकर किया जाता है। अन्य राष्ट्रों के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सरकारें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी उपलब्ध माध्यमों से उन स्थानों का सचित्र, आकर्षक विज्ञापन करती हैं। इसके लिए इश्तिहार, सूचना-पत्रक, सूचना-पुस्तिकांए आकर्षक ढंग से छापकर देश-विदेश में प्रदर्शित एंव वितरित की जाती हैं। पर्यटन स्थलों पर सारी व्यवस्थांए भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर को ध्यान में रखकर की जाती हैं। पथदर्शक प्रशिक्षित किए जाते हैं। इस उद्योग से होटल उद्योग को तो निश्चय ही सर्वाधिक लाभ पहुंचता है। अन्य प्रकार की खरीदारी तथा अन्य उद्योगों को भी लाभान्वित करती है। विशेषकर किसी देश की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक महत्व को वस्तुताओं की बिक्री सर्वाधिक होती है। उनका नाम लेकर भी विदेशी पर्यटकों को विज्ञापन द्वारा आकर्षित किया जाता है। उनके आगमन से सरकार को विदेशी मुद्रा का लाभ होता है। हमारी संस्कृति, पुरातत्व और प्रकृति का प्रभाव लेकर जब विदेशी पर्यटक अपने देशों को लौटते हैं, तो निश्चित ही देश की प्रतिष्ठा भी बढ़ती है। इसे हम प्रत्यक्ष आर्थिक लाभों के अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष लाभ रेखांकित कर सकते हैं। हमारे देश के पयर्टक जब विदेशों में जाते हैं तब वहां की सरकारों और देशों को भी ठीक इस प्रकार के लाभ पहुंचा सकते हैं। यही इसका विशेष महत्व है।
पर्यटन को उद्योग के रूप में बढ़ावा और विकास मिलने से ही स्पष्ट है कि इस कार्य से कई प्रकार के लाभ होते हैं। सांस्कृतिक आदान-प्रदान का लाभ भी होता है। कई अन्य प्रकार के परोक्ष लाभ भी गिनाए जा सकते हैं। जैसे विभिन्न भाषाओं का ज्ञान, विभिन्न लोगों से परिचय, विविध प्रकार की परिस्थितियों में जीने की आदत और अभ्यास, रहन-सहन, खान-पान से प्राप्त हुई अनुभूतियां मानवता के विविध पहलुओं और स्वभावों से परिचय और इस प्रकार विश्व-शांति क्षेत्र का विस्तार आदि। ये सभी लाभ अंततोगत्वा देश और सारी मानवा के लिए उपयोगी एंव हित-साधक प्रमाणित होते हैं। पर्यटक-उद्योग एक और उसके लाभ अनेक, अत: इसके समग्र विकास की दिशा में यथासाध्य उचित ध्यान दिया जाना चाहिए। अब सरकारी तौर पर विशेष रूप से इस उद्योग के विकास की ओर पर्याप्त ध्यान दिया जाने लगा है। अत: भविष्य उज्वल कहा जा सकता है।