Hindi Essay on “Parhit Saris Dharm Nahi Bhai”, “परहित सरिस धर्म नहिं भाई” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
परहित सरिस धर्म नहिं भाई
Parhit Saris Dharm Nahi Bhai
निबंध संख्या:- 01
महाकवि तुलसीदास ने कहा है ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई. पर पीडा सम नहीं अधमाई’; अर्थात् परापकार का कोई दूसरा ‘धर्म’ नहीं है और दूसरों को पीड़ देने से बढ़कर कोई ‘पाप’ नहीं है। परोपकार या परहित दो-दो शब्दा सबन हैं—पर + उपकार, पर + हित । इनका अर्थ है दूसरों का उपकार या हित करना । जब व्यक्ति ‘स्व’ की परिधि से ऊपर उठकर दसरों के उपकार में लग जाता है, तो उसके इस कृत्य को परोपकार कहा जाता है। प्रकृति का कण-कण परहित में संलग्न हैं। महापुरुषों का जीवन भी परोपकार के लिए ही होता है। दधीचि ने अपनी अस्थियाँ स्वेच्छा से असुरों के विनाश तथा धर्म की रक्षा के लिए दे दीं। आधुनिक युग में ईसा मसीह ने मानव मात्र के कल्याण के लिए सूली पर चढ़ना स्वीकार किया। मदर टेरेसा ने अपना सारा जीवन असहायों, विकलांगों तथा दीन-दखियों के उपकार में लगा दिया। महात्मा गांधी का सारा जीवन परोपकार के लिए ही तो था। परोपकार मानव का सर्वश्रेष्ठ गण है। अपने लिए तो पशु भी जीवित रहता है पर मनुष्य केवल अपने लिए ही नहीं जीता औरों के लिए भी जीता है “यही पशु प्रवृत्ति है कि आप ही चरे, मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे!” आज मनुष्य केवल अपने लिए जी रहा है। वह अधिक से अधिक धन कमाकर अधिक से अधिक सुख एवं ऐश्वर्य प्राप्त करना चाहता है। इसी प्रवृत्ति के कारण ही आज चारों ओर अशांति, वेष, वैमनस्य आदि का बोलबाला है। हमारा कर्तव्य है कि हम केवल अपने लिए ही न जिएँ, इस दुर्लभ जीवन में ऐसा कुछ कर जाएँ कि हमारी मृत्यु के बाद भी लोग हमें याद रखें। और ऐसा कार्य है केवल ‘जीवन में दूसरों की भलाई के लिए कुछ करना।’
निबंध संख्या:- 02
परहित सरिस धर्म नहिं भाई
Parhit Saris Dharam Nahi Bhai
- मनुष्यता की कसौटी
- जीवन की सार्थकता
- निष्कर्ष
परोपकार मानव जीवन का धर्म है। परोपकार की भावना के बिना मनुष्य और पशु में किंचित अंतर नहीं है। परोपकार करने से आत्मा को जिस सच्चे आनंद की प्राप्ति होती है उसको शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता। स्वयं भूखे-प्यासे रहकर किसी की भूख-प्यास को मिटाने से असीम आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है। परोपकार में ही जीवन की सार्थकता है। अपने जीवन को सफल बनाने के लिए हमें अपनी समस्त शक्तियों का प्रयोग परोपकार के लिए करना चाहिए। हमें अपनी धन-संपदा का प्रयोग दूसरों का हित-संपादन करने के लिए, अपनी शक्ति का प्रयोग अत्याचार तथा अन्याय के निवारण के लिए तथा अपनी बुद्धि का प्रयोग संसार के अंधकार को दूर करने के लिए करना चाहिए। यदि जीवन में आप पुण्यशील बनकर पुण्य प्राप्त करने के इच्छुक हैं तो परोपकार कीजिए और यदि पापों का संचय करना चाहते हैं तो दूसरे प्राणियों को पीड़ा दीजिए। अत: हमें परोपकार की पवित्र भावना से प्रेरित होकर जहाँ तक संभव हो सके दूसरों के कष्टों का निवारण करना चाहिए, क्योंकि जीवन में आनंद की प्राप्ति का यह एक सहज मार्ग है।