Hindi Essay on “Nishashtrikaran” , ”निःशस्त्रीकरण” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
निःशस्त्रीकरण
Nishashtrikaran
समय परिवर्तनशील है। समय के साथ ही मानव अपने जीवन को सुखी व समृद्ध बनाने का चक्र चलाता रहता है। इस चक्र को चलाने के लिए उसने विज्ञान का सहारा शान की प्रगति के साथ-साथ उसकी युगों की छिपी दानवीय प्रवृत्ति भी जागृत गई। फलतः उसने विध्वंसकारी शस्त्रों का निर्माण आरम्भ कर दिया। इस में ऐसे आणविक शस्त्र व बम भी बने जो विश्व के शक्तिशाली राष्ट्र को क्षणभर में नष्ट कर सकते थे. इसका प्रयोग अमेरिका ने जापान के हीरोशिमा और नागासाकी नगरों में किया. मानवता त्राहि-त्राहि कर उठी। मानव हृदय फिर से शान्ति की ओर बढ़ने लगा। विश्व के प्रत्येक छोर से यही स्वर उभरने लगा कि युद्ध नहीं, शांति चाहिए।
युद्ध समाप्ति का एक मात्र उपाय निःशस्त्रीकरण ही है जिसका अर्थ है युद्धात्मक तथा हिंसात्मक अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण व प्रयोग को नियंत्रित करना जब कि बड़े-बड़े राष्ट्र इनके निर्माण में अब भी लगे हुए हैं । अतः निःशस्त्रीकरण की समस्या आज अन्तर्राष्ट्रीय जगत् की प्रमुख समस्या बन चुकी है। इसके समाधान के बिना विश्व शान्ति सम्भव नहीं है। अमेरिका और ब्रिटेन दोनों राष्ट्रों ने मिल कर आणविक शस्त्रास्त्रों के निर्माण व उपयोग पर अंकुश लगाने के लिए एक संयुक्त राष्ट्र अणुशक्ति आयोग की स्थापना पर बल दिया। फलतः सन् 1946 में अमेरिका, ब्रिटेन और सोवियत रूस के तत्कालीन विदेश मंत्रियों ने एक संयुक्त राष्ट्र अणु शक्ति आयोग गठित किया। इसी वर्ष के जून मास में ‘वरुच योजना’ के नाम से अमेरिका ने एक योजना प्रस्तुत की जिसमें आणविक क्रिया-कलापों पर नियंत्रण, अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की आज्ञा का उल्लंघन करने वाले राष्ट्रों को दण्डित करने का प्रस्ताव रखा गया। सन् 1949 में इस योजना को सदस्यों के बहुमत के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी स्वीकृति दे दी। सोवियत रूस और अन्य मित्र राष्ट्रों ने इसमें संशोधन की माँग की। फलस्वरूप ‘संयुक्त राष्ट्र अणुशक्ति आयोग’ को तोड़कर ‘निःशस्त्रीकरण आयोग’ नाम रख दिया गया। कालांतर में सोवियत रूस और अमेरिका के पारस्परिक वैमनस्य के कारण इस आयोग के सभी कार्यों की एक निष्पक्ष व मध्यस्थ उप समिति बना दी गई। इस उप समिति ने अनेक बैठकों के उपरान्त अक्टूबर 1954 में राष्ट्र संघ में यह प्रस्ताव पारित किया कि प्रमुखतः अस्त्र निर्माता पाँच महान राष्ट्रों का सम्मिलित निर्णय होगा। इनकी अनेक बैठकों में बहुत से प्रस्ताव और संशोधन रखे गए पर किसी निष्कर्ष पर न पहुँच सके।
सन् 1955 में सोवियत रूस ने सात लाख सैनिक कम करने की घोषणा की। विश्वशांति के लिए उसका यह सराहनीय कदम था। अगस्त 1957 में निःशस्त्रीकरण की समस्या पर विचार करने के लिए एक सभा का आयोजन किया गया; पर यह सुझाव व संशोधन तक ही सीमित रही। नाटो परिषद् ने भी निःशस्त्रीकरण सम्बन्धी बातों पर पूर्ण सहमति दी। फिर भी विश्व के महान् राष्ट्र निःशस्त्रीकरण के सम्बन्ध में किसी निष्कर्ष पर न पहुँच सके । यद्यपि भारत ने अपने सद्भावनापूर्ण प्रयासों से विश्व के महान् राष्ट्रों को निःशस्त्रीकरण की पवित्र दिशा की ओर ले जाना चाहा। लोकनायक जवाहर लाल नेहरू ने इस संदर्भ में विदेशों की मैत्रीपूर्ण यात्राएँ की, विचारों से इस ओर प्रेरित करने । का प्रयास किया पर परिणाम ढाक के तीन पात ही रहा।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के पन्द्रहवें अधिवेशन में सोवियत रूस के प्रतिनिधि ने एक निःशस्त्रीकरण प्रस्ताव रखा जिसके आधार पर मार्च, 1962 में 18 राष्ट्रों की एक निःशस्त्रीकरण समिति गठित की गई। तत्पश्चात् 1963 में जेनेवा में निःशस्त्रीकरण सम्मेलन हुआ जो महाशक्ति 1963 को अणु परीक्षण निशस्त्रीकरण के लिए जून 1968 ई० को परमाणु शक्ति निरोध संधि हुई जिसे जिसे 61 देशों ने स्वीकार किया और 5 मार्च 1970 को यह लागू कर दी गई. सन् 1978 तक अनेक निःशस्त्रीकरण सम्मेलन हुए पर सफलता नहीं मिली. सन् 1987 में भी अमेरिकी शासन इसके पक्ष में नहीं रहा।
इस से पूर्व स्व० श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भी निःशस्त्रीकरण की दिशा में खूब प्रयास किया. नेतृत्व में भारत सरकार विश्व शांति और विश्व बंधुत्व की भावनाओं पर आधारित भारत की सत्य, अहिंसा और प्रेम की नीति का पालन करती रही। स्व० श्रीमती गाँधी ने अपनी विदेश यात्राओं के बीच विश्व के राष्ट्रों से बारम्बार यही कहा कि निशस्त्रीकरण से ही विश्व में शांति और मानवता की रक्षा हो सकती है। पर बड़े राष्ट्र इस सिद्धान्त पर एक मत नहीं हो सके।
31 मई, 1988 से चार सप्ताह के लिए प्रारम्भ हुए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा बुलाए गए निःशस्त्रीकरण के विशेष अधिवेशन में स्व० श्री राजीव गांधी द्वारा निःशस्त्रीकरण सम्बन्धी 159 देशों को सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित करने में सफलता न मिल सकी। इसका विरोध 26 जून को अमेरिका ने किया। श्री राजीव गांधी ने इस अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए सन् 2010 तक पूर्ण विश्व निःशस्त्रीकरण सम्बन्धी कार्य योजना प्रस्तुत की थी और संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों से इस योजना को यथाशीघ्र कार्यान्वित करने के लिए अनुरोध किया था। इस प्रस्तावित समझौते के अंतिम दस्तावेज के 67 अनुच्छेदों में से 50 अनुच्छेदों पर सभी प्रतिनिधियों से सहमति हो गई थी, तभी अमेरिका ने आगे वार्ता में सम्मिलित हान से इंकार कर दिया। फलतः अधिवेशन असफल स्थिति में ही समाप्त हो गया। वस्तुतः जमारका ने नौसैनिक निःशस्त्रीकरण पर आपत्ति दर्शायी थी। इस अधिवेशन की असफलता का दुःख विश्व के सभी देशों को हुआ।
विकासशील राष्ट्र इस अधिवेशन की सफलता को लेकर आशान्वित थे; क्योंकि अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य वाशिंगटन और मास्को में मध्यम दूरी के प्रक्षेपास्त्रों स्त करने की संधियाँ हो चुकी थीं। इस अधिवेशन की असफलता पर गुटनिरपेक्ष प्रतिनिधियों ने जहाँ रोष प्रकट किया वहाँ तत्कालीन अमेरिकी राजदूत बर्न जान वाल्टर्स सफाई देते हुए अपनी राष्ट्रीय नीतियों के अव के राष्ट्रों को चाहिए कि सफाई देते हुए कहा कि केवल एक कागज के टुकड़े के लिए अमेरिका नीतियों के अहम् पहलुओं को परिवर्तित नहीं कर सकता। तीसरी दुनिया के राष्ट्रों को चाहिए कि भविष्य में समझौते की शर्तों को अधिक सही रूप प्रदान करें।