Hindi Essay on “Mitro ki Prapti Sampatti me aur Pariksha Vipatti me ”, “मित्रों की प्राप्ति सम्पत्ति में और परीक्षा विपत्ति में ” Complete Hindi Essay
मित्रों की प्राप्ति सम्पत्ति में और परीक्षा विपत्ति में
Mitro ki Prapti Sampatti me aur Pariksha Vipatti me
इस में कोई सन्देह नहीं कि मित्रों की प्राप्ति सम्पत्ति में होती है । जिस के पास अपना ही पेट भरने को कुछ न हो उसके पास कौन आता है परन्तु जिसके पास धन सम्पत्ति हो वहां लोग अपने आप चले आते हैं । सम्पत्ति में तो बेगाने भी अपने बन जाते हैं । सम्पत्ति का अर्थ केवल धन ही नहीं समझना चाहिए अपितु किसी भी प्रकार की शक्ति या सामर्थ्य ही सम्पत्ति है। जैसे फलों की मोहक सुगन्धि और मकरन्द पर भंवरे खिंचे चले आते हैं उसी तरह जहां किसी भी प्रकार की सम्पन्नता होती है वहां अनेक लोग मित्रता का दामन भरने लगते हैं ।
बड़े-बड़े धनपतियों, व्यापारियों, अभिनेताओं-अभिनेत्रियों नेताओं और मन्त्रियों आदि के चारों ओर मित्रों,प्रशंसकों आदि की भीड लगी रहती है । वास्तव में वे लोग अपने स्वार्थ के लिए इकट्ठे होते हैं । किसी विद्यार्थी के पास खर्च करने के लिए खुले पैसे हों वह अपने मित्रों को सिनेमा आदि दिखा सके, घुमा-फिरा सके, जलपान करवा सके और समय पर सौ पचास रुपए नकद भी दे सके तो उसके चारों ओर मित्रों की भीड़ जमा हो जाएगी । ऐसे मित्रों के लिए गिरिधरकविराय ने पहले ही कह रखा है ‘जब लग पैसा गाँठ में तब लग ता को प्यार । इस तरह सम्पत्ति में मित्रों की प्राप्ति होती है किन्तु उनकी परीक्षा तो विपत्ति में ही होती है।
दूध पीने वाले मजनुं तो अनगिनत होते हैं किन्तु जब लैला के लिए खून देने का समय आता है तो नकली मजन काफूर की तरह उड़नछू हो जाते हैं । सम्पत्ति के समय में इकट्ठे होने वाले सभी लोग सच्चे मित्र ही नहीं होते । पत्थर के इन अनगिनत मनकों में से एकाध ही हीरा निकलता है जो विपत्ति पड़ने पर साथ देता है । खाने-पीने वाले साथी तो अनेक मिल जाते हैं किन्तु विपत्ति की अग्नि में पड़ कर कुन्दन की तरह चमकने पर ही मित्र की परख होती है ।। लक्ष्मण का भ्रातप्रेम मित्रता का ही सच्चा रूप है ।
एक कहानी प्रसिद्ध है कि रीछ को आते हए देख कर जो मित्र अकेला ही प्राण बचाने के लिए वृक्ष पर जा चढ़ा था, उसने दूसरे की परवाह नहीं की थी। दूसरा मित्र साँस रोक कर मृतक की तरह धरती पर चुपचाप लेट गया था और रीछ उसे सूंघ कर वापिस लौट गया था । बाद में उसने कहा था कि रीछ उसके’ कान में कह गया है कि विपत्ति में साथ छोड़ जाने वाले मित्र सच्चे मित्र नहीं होते ।
विपत्ति आने पर पत्नी और पुत्र आदि भी कई बार साथ छोड़ जाते हैं परन्तु मित्र विपत्ति में भी साथ नहीं छोडता । जिस तरह खोटे और खरे सोने की परीक्षा कसौटी पर होती है उसी तरह विपत्ति पड़ने पर ही मित्र की परीक्षा होती है, उस दशा में वही जीज़ान से सहायता करता हैं । सहायता में असमर्थ होने पर वह मित्र का साहस बँधाए रखता है तथा साथ छोड़ कर भागता नहीं ।