Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay on “Jo Hua Acche Hua” , ”जो हुआ अच्छा हुआ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Hindi Essay on “Jo Hua Acche Hua” , ”जो हुआ अच्छा हुआ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

जो हुआ अच्छा हुआ

अक्सर लोगों को कहते सुना है कि अपना मान-सम्मान, अपना यश-अपयश, अपना सुख-दुख और आनि लाभ आदि सभी कुछ मनुष्य के अपने हाथों ही रहा करता है। एक दृष्टि से यह मान्यता काो सत्य एंव उचित भी कहा जा सकता है। वह इस प्रकार कि मनुष्य अच्छे-बुरे जैसे भी कर्म किया करता है, उसी प्रकार से उसे हानि-लाभ तो उठाने ही पड़ते हैं। उन्हें जान-सुनकर विश्व का व्यवहार भी उसके प्रति उसके लिए कर्मों जैसा ही हो जाया करता है, अर्थात अच्छे कर्म वाला सुयश और मान-सम्मान का भागी बन जाया करता है। लेकिन शीर्षक मुक्ति में कविवर तुलसीदास ने इस प्रचलित धारणा के विपरीत मत प्रकट करते हुए कहा है कि-

‘हानि-लाभ-जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ।’ अर्थात जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य आनि-लाभ, यश-अपयश जो कुछ भी अर्जित कर पाता है। उसमें उसका अपना वश या हाथ कतई नहीं रहा करता है। विधाता की जब जैसी इच्छा हुआ करती है, तब उसे उसी प्रकार की लाभ-हानि तो उठानी ही पड़ती है। मान-अपमान भी सहना पड़ता है। जीवन और मृत्यु तो एकदम असंदिज्ध रूप में मनुष्य के अपने वश में न रहकर विधाता के हाथ में रहती ही है।

जब हम गंभीरता से प्रचिलित धारणा और कतव की मान्प्यता पर विचार करते हैं, लोक के अनुभवों के आधार पर सत्य को तोलकर या परखकर देखते हैं, तो कवि की मान्यता प्राय: सत्य एंव अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होती है। एक व्यक्ति रात-दिन यह सोचकर परिश्रम करता रहता है कि उसका सुफल पाकर जीवन में सुख भेग और सफलता पा सकेगा, पर होता इसके विपरीत है। विधाता उसके किए-कराए पर पानी फेरकर सारी कल्पनांए भूमिसात कर देता है। एक उदाहरण से इस बात की वास्तविकता सहज ही समझी जा सकती है। एक किसान दिन-रात मेहनत करके फसल उगाता है। लहलहाती फसलों के रूप में अपने कर्म और परिश्रम का सुफल निहारकर मन ही मन फला नहीं समाता। किंतु अचानक रात में अतिवृष्टि होकर या बाढ़ आकर उस सबको तहस-नहस करके रख देती है। अब इसे आप क्या कहना चाहेंगे? हानि-लाभ सभी कुछ वास्तव में विधाता के ही हाथ में है। इसके सिवा और कह भी क्या सकते हैं।

इसी प्रकार मनुष्य अच्छे-बुरे तरह-तरह के कर्म करता, कई प्रकार के पापड़ बेलकर धन-संपति अर्जित एंव संचित करता रहता है।। यह सोच-विचारकर मन ही मन बड़ा प्रसन्न भी रहता करता है कि उसे भविष्य के लिए किसी प्रकार की चिंता नहीं पड़ती। तभी अचानक कोई महामारी, कोई दुर्घटना होकर उसके प्राणों को हर लेती है और उसके भावी सुखों की कल्पना का आधार सारी धन संपति उसे सुख तो क्या देना उसके प्राणों की रक्षा तक नहीं कर पाती। इसमें भी तो विधाता की इच्छा ही मानी जाती है। यह कहकर ही संतोष करना पड़ता है पीछे बच रहे लोगों की कि विधाता को ऐसा ही स्वीकार था। उसकी इच्छा को कौन टाल सकता है। सो स्पष्ट है कि विधाता की इच्छा के सामने मनुष्य एकदम लाचार एंव विवश है। जो कुछ भी हुआ, जो कुछ हो या घट रहा है, भविष्य में जो कुछ होना या घटना है। वह उसकी इच्छा का ही परिणाम था, है और होगा।

कई बार मनुष्य अच्छा कर्म इसलिए करता है कि उसका परिणाम मान-यश बढ़ाने वाला होगा। सो वह उसक कर्म को करता जाता है। पर उसके विरोधी पैदा होकर उसके सारे परिश्रम को व्यर्थ कर देते हैं। उसे मान की जगह अपमान और यश की जगह अपयश भोगने को विवश होना पड़ता है। जैसे एक व्यक्ति अपनी कार या इसी प्रकार के वाहन पर कहीं जा रहा है। राह के सूने में एक महिला सहसा सामने हाथ दे उसे रुकने का संकेत करती है। सदभावनावश वह रुक जाता है। उसकी बातें में उसे विवश एंव असहाय मान उसकी सहायता करने के लिए तत्पर हो जाता है। उसे अपने वाहन पर सवाल कर लेता है। कुछ आगे बढ़ या भीड़-भाड़ वाले स्थान पर पहुंचकर वह महिला कह उठती है कि जो कुछ भी पास है वह निकालकर मुझे दे दो। घड़ी और चेन उतारकर मेरे हवाले कर दो, नहीं तो अभी चिल्लाकर भीड़ इकट्ठी कर दूंगी। अब बताइए, इसे क्या कहेंगे? न तो उससे उगलते बनेगा न निगलते। कहां तो चले थे भ्ला करने पर गले पड़ी बुराई।

इस प्रकार यह मान्यता स्वीकार कर लेनी चाहिए कि आदमी के अपने हाथ में कुछ नहीं है। जो कुछ है, यह विधि के हाथ में ही है। वही विश्वकर्ता, भर्ता और हरता सभी कुछ है। उसी की इच्छा-अनिच्छा और लीला का परिणाम है। यह दृश्य जगत। इस का कण-कण उसी से संचालित हुआ करता है। उसी की इचछा से हवा चलती है। बादल बरसते हैं। चांद-सूर्य तारे क्रम से आते जाते हैं। वहीं, यश-अपयश, मान-सम्मान, आदि हर बात कर कर्ता और दाता है। इसी और संकेत करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा था अपना भला बुरा मेरे अर्पित कर दो। तुम केवल कर्तव्य कर्म मेरा ही आदेश मानकर करते जाओ। सो कवि का भी यहां यही आशय है कि हानि-लाभ, यश-अपयश आदि सभी को भगवान के हाथ में मानकर अपने कर्तव्यों का पालन करते जाओ बस।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *