Hindi Essay on “Hindi Bhasha”, “हिन्दी भाषा” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
हिन्दी भाषा
Hindi Bhasha
प्रत्येक उन्नत राष्ट्र की कोई न कोई भाषा होती है जिस में उस देश के लोग अपने विचार प्रकट करते हैं, जिसमें उस देश का सरकारी काम-काज चलता है । इस भाषा को संविधान द्वारा राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया गया होता है ।
स्वाधीनता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया गया था और निश्चय किया गया कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के 15 वर्ष के भीतर इसे सरकारी दफ़तरों में अनिवार्य कर दिया जाएगा । परन्तु स्वतन्त्र भारत में हिन्दी आज भी वह स्थान प्राप्त नहीं कर सकी जिसकी वह अधिकारिणी है । आखिर ऐसा क्यों हुआ? आज हम सभी क्षेत्रों में संसार के अन्य देशों के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर चल रहे है । परन्तु जब भाषा की बात आती है तो उनकी तरह अपनी भाषा के महत्व को क्यों नहीं पहचानते! हमें नहीं मालूम कि हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है हम अंग्रेज़ी के मोह में जकड़े हुए हैं । स्वतन्त्रता के बाद से आज तक हम अपनी राष्ट्रीय भाषा हिन्दी को बोलने से हिचकिचाते हैं ।
दूसरे देशों के लोग हमसे बहुत आगे निकल चुके हैं । आज किसी देश काकोई नेता जब हमारे देश में आता है तो वह अपने देश की भाषा में बात करता है इससे उसके देश का तथा उसकी भाषा का सम्मान बढ़ता है । परन्तु हमारी स्थिति कैसी है ? हमारे नेता विदेशों में जाकर हिन्दी को भूल कर उन्हीं की भाषा में बा करने में गौरव मानते हैं । हम क्यों भूल जाते हैं कि हमारे पास हमारी अपनी भाषा है वह हिन्दी है,न कि अंग्रेजी । क्या हमें अपनी भाषा से प्रेम नहीं, लगाव नहीं ? क्या हमारी हिन्दी भाषा विश्व की अन्य भाषाओं विशेषकर अंग्रेज़ी से किसी प्रकार से कम है ?
हिन्दी मनौवैज्ञानिक भाषा है-इसके अपने अलग स्वर है, व्यंजन है, स्यंयुक्ताक्षर है जब कि अन्य किसी भाषा में ऐसी वर्णिक व्यवस्था नहीं है । उसकी लिपि देवनागरी है । इसके शब्द विस्तृत हैं, जो मैडीकल और इंजिन्यरिंग की परीक्षाओं के लिए पर्याप्त है । इसे पढ़ना तथा सीखना आसान है । तो फिर इसके प्रति वितृयण क्यों ।
आज हम स्वतन्त्र भारत के निवासी है-राजनीतिक तौर पर यह कहना तो ठीक है परन्तु व्यावहारिक रूप से बिल्कुल गल्त है क्योंकि जिस देश के लोगों पर विदेशी भाषा का नशा छाया हो वहां के लोग मानसिक रूप से स्वतन्त्र कैसे हो सकते हैं? हमारी हिन्दी अंग्रेज़ी भाषा के साए में जी रही है । बड़े दुःख की बात है कि अंग्रेज़ चले गए, अंग्रेज़ी नहीं गई।
शिक्षा के क्षेत्र में देखें तो आज देश के सभी विश्वविद्यालयों ने अंग्रेज़ी को अपना शिक्षा का माध्यम बनाया हुआ है या फिर प्रादेशिक भाषाएं अपनाई जाती हैं, लेकिन हिन्दी का नाम नहीं लिया जाता । यह हमारे लिए कितनी लज्जाजनक परिस्थिति है कि आज भी हमारे देश में कुछ राज्य ऐसे है जहां पर अपनी स्रष्ट्रीय भाषा हिन्दी बोलने से हिचकिचाते हैं जैसे उड़ीसा, तामिलनाडू, नागालैंड । आप हिन्दी में उनसे बात करें तो वह आप को ऐसे देखेंगें जैसे आपने उन्हें “अपशब्द” कह दिए हों ।
यह स्थिति हमारे नेताओं ने पैदा की है। अपने स्वार्थों के लिए उन्होंने कुछ प्रदेशों में अंग्रेज़ी को महत्त्व दे दिया ताकि देश को भाषा द्वारा एक सूत्र में न बांधा जा सके और अपना प्रभुत्व स्थापित रखा जाए।
स्वतन्त्र भारत में हिन्दी अपना उचित स्थान नहीं प्राप्त कर सकी तो इसमें हम साधारण जनता का भी बहुत बड़ा हाथ है । कम से कम नागरिक तो हिन्दी का प्रयोग कर सकते हैं । साधारण से साधारण मिल-मालिक से लेकर बडे बड़े उच्च पदवियों वाले लोग भी अपने विज्ञापन अंग्रेज़ी में न देकर यदि हिन्दी में दें तो हिन्दी का महत्त्व बढ जाएगा । सरकारी कार्यालयों में अंग्रेज़ी के स्थान पर हिन्दी में काम किया जाए । हिन्दी की महत्ता से लोगों को परिचित कराया जाए ताकि लोग हिन्दी का व्यवहार अधिक से अधिक अपने दैनिक जीवन में करें । अपने घर में किसी भी उत्सव पर छपने वाले निमन्त्रण पत्र अंग्रेज़ी में न छपवा कर हिन्दी में छपवाए जाएं । यहीं से हिन्दी एक एक कदम आगे बढ़ेगी और सम्मानीय पद पा सकेगी।
हिन्दी में सारे देश को एक सूत्रता में बांधने की क्षमता है । यह अपने बल पर आगे बढ़ रही है । एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जब हम सब इस बात के लिए प्रयत्न करेंगे कि हिन्दी को राष्ट्रीय मंच पर कैसे लाया जाए । इस दिन सभी उसका सम्मान करेंगे और स्वतन्त्र भारत में हिन्दी अपना सम्माननीय स्थान पा सकेगी।