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Hindi Essay on “Bharat ki Sanskritik Ekta”, “भारत की सांस्कृतिक एकता” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.

भारत की सांस्कृतिक एकता

Bharat ki Sanskritik Ekta

 

किसी भी देश की स्मृद्धि एवं विकास के लिए उसकी सांस्कृतिक एकता आवश्यक होती है। सांस्कृतिक एकता ही वह आधार है जिस पर उस देश में रहने वाली विभिन्न जातियाँ और सम्प्रदाय एक राष्ट्र के रूप में एकताबद्ध रहते हैं । यह एकता ही राष्ट्र प्रेम, अखण्डता और राष्ट्र के विकास के लिए चेतना जगाती है।

भारत एक विशाल देश है जो अनेक प्रकार के भौगोलिक भू-खण्डों में बंटा हुआ है जिसमें अनेक जातियाँ रहती हैं जो विभिन्न धर्मों में विश्वास रखती हैं। उनके अलग अलग सामाजिक रीतिरिवाज हैं। अलग-अलग भाषाएँ, वेश-भूषा तथा खान-पान है। इन सब भिन्नताओं के होते हुए भी भारत सदैव से एक भावात्मक एकता में आबद्ध है। इस एकता का मुख्य कारण है भिन्नता होते हुए भी सांस्कृतिक एकता। अनेकता में एकता यही तो है भारत की विशेषता ।

संस्कृति ही मनुष्य को परस्पर भावनात्मक स्तर पर जोड़ती है । भौगोलिक सीमाएँ इसमें बाधक नहीं बनती। महात्मा बुद्ध और महावीर के विचारों ने देश की एकता की जड़ों को और अधिक गहरा और मज़बूत बनाया है ।

परस्पर विरोधी बातों में एकता कराने से बढ़कर दुष्कर कार्य कोई नहीं है परन्तु फिर भी हमारे सन्तों,महात्माओं ऋषि मनियों ने ऐसे दुष्कर कार्य को अपना बुद्धिमता से सरल कर दिखाया है । चैतन्य महाप्रभ रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द यद्यपि बंगाल में पैदा हुए परन्तु सारा देश उनसे प्रभावित हुए बिना न रह सका । रामानन्द दक्षिण में पैदा हुए परन्तु उनका प्रभाव उत्तर तक फैला । अनेक तीज-त्यौहार थोड़े बहुत अन्तर से सारे देश में मनाए जाते हैं । सामाजिक आस्थाएँ और विश्वास भी भिन्न रहते हुए सारे देश में एक जैसी ही हैं ।

भारत की इस सांस्कृतिक एकता का मूल कारण है उसका दार्शनिक दृष्टिकोण और धार्मिक भावना । भारतीय दर्शन में अनेकता में एकता का समावेश है । दार्शनिक दृष्टिकोण ही धार्मिक एकता का मुख्य आधार है । देश में अनेक धार्मिक विचारधाराएँ जन्मीं और पनपी किन्तु सभी के मूल में एक ही धार्मिक भावना काम करती है । हिन्दू भगवान महावीर और बुद्ध को अवतार मानते हैं तो बौद्ध और जैन धर्म को मानने वाले भी रामकृष्ण को इसी श्रद्धा भाव से देखते हैं । सिख गुरुओं ने अपने धर्म ग्रन्थों में राम नाम की महिमा का वर्णन बहुत ही सुन्दर एवं गौरवपूर्ण ढंग से किया है । सब धर्मों में सब से बड़ी विशेषता यह है कि वे सभी एक ही ईश्वर में विश्वास रखते हैं चाहे वह राम हो, वाहेगुरू हो, अल्लाह हो या फिर God और पूजा करते समय सभी यह भी मानते हैं कि उसी के प्रकाश से यह सारा संसार प्रकाशित हो रहा है । मन्दिरों में पूजा के लिए दीपक जलाया जाता है । मजार पर भी दीपक जलाया जाता है, गुरुद्वारों में पूजा के समय उसी प्रभु की जोत जलाई जाती है जबकि गिरिजाघरों में मोमबत्ती जलाकर उसी पर ब्रह्म की पूजा की जाती है । ओइम् , एक ओंकार, अल्लाह, आमीन आदि एक ही परमात्मा की ओर इशारा करते हैं।

खान पान, वेश-भूषा, सामाजिक रीति-रिवाज, आदि सभी में एक रूपता दिखाई देती है । यहां तक कि सभी एक दूसरे के धर्म स्थानों पर पूजा अर्चना करने जाते है। मन्दिर केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं, सभी वर्ग के सभी जाति एवं सभी धर्म के मानने वालों के लिए ही खुले हैं। इसी प्रकार गुरुद्वारे केवल सिखों के लिए ही नहीं अपितु प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुले हैं ।

इस सांस्कृतिक एकता के लिए मुसलमान सूफी कवियों का भी विशेष योगदान है। अनेक सूफी कवियों जिनमें सबसे प्रसिद्ध सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसा है ने हिन्दू कथाओं को आधार बनाकर अपने काव्य ग्रन्थों की रचना की है जिसमें भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त रसखान, शेख, आलम, नज़ीर आदि अनेक मुसलमान कवियों ने कृष्ण भक्ति के सरस काव्य की रचना की है । रसखान ने यहाँ तक कह दिया कि यदि अगले जन्म में मनुष्य जन्म मिले तो मैं ब्रजभूमि में ही जन्म लूँ और गोकुल गाँव के ग्वालों के बीच में ही रहूँ । अनेक हिन्दू कवियों ने उर्दू में श्रेष्ठ काव्य की रचना की है। हिन्दू अनेक फकीरों को मानते हैं तथा मजारों की पूजा करते हैं । सामाजिक रीति रिवाज में भी समानता दिखाई पड़ती है ।

यद्यपि भारत सदियों से सांस्कृतिक रूप में एकताबद्ध रहा है, ऐसा नहीं है कि यहाँ झगड़े नहीं हुए है । झगड़े हुए अवश्य हैं परन्तु फिर भी इससे भारत की सांस्कृतिक एकता पर आँच नहीं आई और न कभी देश के विघटन का प्रश्न ही उठा । लेकिन आज देश की एकता को भयंकर खतरा पैदा हो गया है । भाषा, प्रान्त, नदी के पानी के प्रश्न, क्षेत्रीय सीमाएँ आदि अनेक प्रश्न-राष्ट्र की एकता और अखण्डता को खतरा पैदा कर रहे हैं । असम, पंजाब, काश्मीर आदि क्षेत्रों में विघटनकारी शक्तियों ने आतंक फैला रखा है और इन प्रदेशों की उन्नति और विकास में बाधाएँ उत्पन्न कर रहे हैं । इन सबसे देश की सुरक्षा और अखण्डता को भयंकर खतरा पैदा हो गया है । विदेशी शक्तियां देश की इस स्थिति का लाभ उठाने की ताक में बैठी हैं।

आज देश की सांस्कृतिक एकता को सबसे बड़ा खतरा स्वार्थी राजनीति से है जिसके कारण देश विघटन के कगार पर आ खड़ा हुआ है । सत्ता लोलुपता तथा राजनीति में बने रहने की स्वार्थपरता की भावना आज जातीय, भाषायी,धार्मिक, प्रान्तीय आदि विद्वेषों की आग फैला रहे हैं । विघटनकारी तत्वों को बढ़ावा दे रहे हैं तथा अपराधिक तत्वों को प्रोत्साहित कर रहे हैं जिससे देश की अखण्डता और स्वतन्त्रता को खतरा पैदा हो गया है ।

आज देश की एकता का प्रश्न जितना महत्वपूर्ण बन गया है उतना भारतीय इतिहास में कभी नहीं था । यदि देश की सांस्कृतिक एकता छिन्न-भिन्न होती है तो देश फिर कभी भी गुलाम बन सकता है । इसलिए देश की सांस्कृतिक एकता का प्रश्न देश की सुरक्षा, अखण्डता और आज़ादी की रक्षा का प्रश्न बन गया है । इसलिए इस देश में रहने वाले चाहे वे हिन्दू, मुसलमान,पारसी, सिख या ईसाई है, चाहे उनके मन्दिर, गुरुद्वारे या गिरिजाघर अलग अलग हैं परन्तु भारत रूपी मन्दिर सब के लिए एक है, वह सबका है । सभी धर्मों के लोग एक ईश्वर की सन्तान के रूप में भारत रूपी मन्दिर में इबादत करें, पूजा अर्चना करें क्योंकि आज देश की सांस्कृतिक एकता को बनाए रखना, उसे और मजबूत करना सभी देशवासियों का परम कर्तव्य होना चाहिए ।

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