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Hindi Essay on “Hadtal” , ”हड़ताल” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

हड़ताल

Hadtal

निबंध नंबर :-01

किसी भी संस्था के लोग जब किसी भी कारणवश सामूहिक रूप से कार्य करना बन्द कर देते है तो उसे हड़ताल कहा जाता है | यह वह प्रकिया है जो प्राय : अनाचार के विरोध से अथवा अधिकारों की मांग के लिए की जाती है | यह अधिकारों की मांग को पूरा करने का अमोघश्स्त्र है |

आज के युग में जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नही है जहाँ हम अपने अधिकारों की लिए हड़ताल का सहारा न लेते हो | ज्यो – ज्यो मानव जीवन में राजनीति का प्रवेश बढ़ता जा रहा है त्यों-त्यों अधिकार की भावना बढती जा रही है | फलस्वरूप हड़ताल भी जोर पकडती जा रही है | पहले तो ये हडताल के नारे केवल औद्दोगिक संस्थानों तक ही सीमित थे परन्तु आजकल तो शिक्षण संस्थाएँ तक भी इससे अछूती नही रही | ऐसा लगता है कि जल्दी ही इसके नारों से घर का कोना – कोना गूंजने लगेगा |

इसका ज्ञान तो नही है कि हड़ताल का जन्म कब और कहाँ हुआ था, परन्तु आज के जन – जीवन में हड़ताल इतनी घुलमिल गई है की छोटी-बड़े , शिक्षित व अशिक्षित , पुरुष व नारी सभी इससे परिचित है | ऐसा देखा जाता है कि आजकल कही-न-कही हड़ताल होती रहती है | कभी – कभी तो यह इतना भयंकर रूप धारण कर लेती है कि इसके कारण पुलिस के डंडे और गोलियाँ भी चल जाती है | पुलिस को अश्रु –गैस का सहारा भी लेना पड़ जाता है | भारतवर्ष में तो सबसे पहले गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के फलस्वरूप अंग्रेजो के शासन और अत्याचारों के विरोध में हड़ताले हुई थी |

स्वतंत्रता के बाद तो हड़ताल का प्रसार बहुत तेज गति से हो रहा है | श्रमिको तथा निर्धनों के कंठ में तो इसका वास होता है, क्योकि उन्हें अपने अधिकारों को मनवाने में तथा अत्याचारों के विरोध स्वरूप इसका सहाना लेना पड़ता है | हड़ताले प्राय : शासन के विरुद्ध , अत्याचारों के विरुद्ध , तथा वेतन , छुट्टी और मजदूरी आदि के लिए की जाती रही है | शासन के विरुद्ध हड़ताले बड़े व्यापक रूप में होती है क्योकि इनमे प्राय : जनता का समर्थन प्राप्त होता है | इनके अतिरिक्त अन्य हड़ताले वेतन तथा मजदूरी बढ़वाने , छुट्टी करवाने व  महंगाई भत्ता बढ़वाने के लिए औद्दोगिक संस्थानों में होती रहती है | सन 1942 ई. में अग्रेजो के अत्याचारों के विरोध में देश के महान नेताओ के संरक्षण में देशव्यापी हडताल हुई थी जिसके कारण अंग्रेज भारत को स्वतंत्र करने पर बाध्य हुए थे |

हड़तालो से जहाँ हमे कुछ लाभ मिलते है वहाँ इसकी हानियाँ भी कम नही है | देश के उत्पादन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है | पुरे राष्ट्र में तोड़ – फोड़ होने लगती है जिससे राष्ट्र की सम्पत्ति नष्ट हो जाती है | छात्रो में अनुशासनहीनता बढती जाती है | अत : इनको नियन्त्रित करने के लिए औद्दोगिक संस्थानों के स्वामियों को चाहिए कि वे श्रमिको के हितो का ध्यान रखे तथा आपस में बैठकर समस्या का समाधान ढूढे | समझौते की भावना से कार्य करने में श्रमिको का भी हित है |

 

निबंध नंबर :-02

हड़ताल
Hadtal

हड़ताल शब्द हमारे देश में आज अत्यधिक प्रचलित है। समाज के सभी वर्गों में हड़ताल का प्रचलन एक सामान्य बात हो गई है। हड़ताल का अर्थ है – किसी वर्ग अथवा समूह के लोगों द्वारा किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य करने से इंकार कर देना। हड़ताल का उपयोग यदि सार्थक हो तब यह समाज के लिए उपयोगी है परंतु इसका अनुचित उपयोग अथवा दुरूपयोग देश व समाज के लिए हानिकारक है।

प्राचीन काल मे हड़तालें प्रायः नहीं के बराबर होती थीं क्योंकि तत्कालीन समय में राजशाही प्रथा प्रचलित थी। मालिक की इच्छा के अनुसार ही सभी को कार्य करना पड़ता था। उसकी तानाशाही के विरोध का सीधा अर्थ नौकरी से निकाला अथवा अन्य प्रकार से हर्जाना व नुकसान अदा करना था। औद्योगिक क्रांति के पश्चात् मजदूर वर्ग की परिस्थिति में अनेक परिवर्तन आए। विभिन्न प्रकार के मजदूर संगठनांे तथा यूनियनों को गठन प्रारंभ हुआ। इसके परिणामस्वरूप अब मालिक मनमानी नहीं कर सकते थे। किसी भी अन्यायपूर्ण निर्णय के विरोध में यह मजदूर संघ अथवा यूनियन अपना सक्रिय योगदान अदा करती थी। वे अपने संघ के सदस्यों को एकत्र कर हड़ताल पर चले जाते तथा मालिकों को उनकी माँगांे के समक्ष झुकने के लिए विवश कर देेते थे।

आज हड़ताल का स्वरूप अत्यंत व्यापक हो चुका है। आज सभी वर्ग अपनी माँगों की पूर्ति के लिए हड़ताल का उपयोग करने लगे हैं। काॅलेजों व विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ का गठन होता है जो किसी भी अनुचित निर्णय के विरोध में संगठित होकर हड़ताल करते हैं तथा प्रशासन को अपनी माँगों की पूर्ति के लिए बाध्य करते हैं। सरकारी कार्यालयों में आज हड़ताल बिल्कुल ही आम बात हो गई है। आए दिन किसी न किसी विभाग में हड़ताल को देखा जा सकता है। राजनीति में अपना दबदबा बनाने अथवा जनता में स्वयं को अच्छा साबित करने के लिए विरोधी दलों द्वारा सत्ता पक्ष के विरोध में हड़ताल एक प्रमुख हथियार बन गई है। परंतु राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कई बार हड़तालें आवश्यक हो जाती हैं। इन पर प्रतिबंध लगाने से लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हो सकती हैं लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि सत्ता पक्ष निरंकुश न हो पाए।

हड़ताल यदि सकारात्मक कारणों के लिए हो तो यह लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी है। इससे तानाशाही पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाया जा सकता है। हड़ताल के प्रभाव से सामान्य जनमानस का शोषण कम होता है। इसके अतिरिक्त प्रशासन अपने निर्णयों के प्रति अधिक सजग रहता है ताकि सभी वर्गों को साथ लेकर चल सकें जो आज के वातावरण में अत्यंत आवश्यक है।

परंतु हड़ताल का दुरूपयोग समाज और देश के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। अस्पतालों के चिकित्सकों द्वारा की गई हड़ताल अनेक रोगियों के लिए जानलेवा सिद्ध होती है। निर्धन वर्ग इसमें सबसे अधिक प्रभावित होता है। छात्रों अथवा शिक्षकों द्वारा की गई हड़ताल से अध्ययनरत छात्र प्रभावित होते हैं। कर्मचारियों द्वारा की गई हड़ताल से कंपनी अथवा फैक्ट्रियों का कामकाज ठप हो जाता है जिससे मजदूर गर्व के साथ ही साथ बाजार भी बुरी तरह प्रभावित होता है। हमारे नेताओं द्वारा स्वार्थों की पूर्ति के लिए की गई हड़ताल देश की प्रगति में बाधा पहुँचती है।

अतः हम सभी का नैतिक दायित्व बनता है कि हम हड़ताल को केवल सकारात्मक परिणामों के लिए उपयोग करें। यह तभी संभव है जब हम न्यायोचित दृष्टिकोण रखें। लेकिन यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है कि मजदूरों से हड़ताल का अधिकार छीन लेने से वे आज तक जो कुछ भी हासिल कर पाए हैं, उन्हें वे गँवा देंगे। अतः हड़ताल करने अथवा न करने की पूर्ण जवाबदेही मजदूरों को ही उठानी होगी। एक ओर तो वे अनावश्यक हड़ताल से बचें तथा दूसरी ओर जब अन्य कोई उपाय शेष न बचा हो तब वे इस ब्रह्मास्त्र का प्रयोग अवश्य करें। परंतु अस्पतालों, दवा-विक्रेताओं, पुलिस, अग्निशमन सेवा तथा विद्यालयों को हड़ताल के दायरे से मुक्त रखने की आवश्यकता है। शिक्षा संस्थानों में वैसे भी बहुत छुट्टियाँ होती हैं, यहाँ हड़ताल होने से छात्र-छात्राओं की शिक्षा पर अत्यंत बुरा असर पड़ता है। लेकिन विभिन्न राज्यों में शिक्षिकों एंव प्राध्यापकों की हड़ताल आत बात हो गई है। इसी तरह चिकित्कों की सामूहिक हड़ताल से संकट में फँसे मरीजों का जीवन दाँव पर लग जाता हैं।

निबंध नंबर :-03

हड़ताल

Hadtal

 

हड़ताल का नाम सुनते ही एक ऐसी विरामावस्था की याद आती है, जिसमें सर्वत्र ठहराव नजर आता है। क्या सड़क, क्या कार्यालय, क्या बाजार, सभी वीरान नजर आते हैं। पूर्व में तो आए दिन हड़तालों का दौर-दौरा चलता रहता था। लेकिन आर्थिक सुधार लागू होने के बाद मुक्त अर्थव्यवस्था में हड़ताल की प्रासंगिकता लगभग खत्म हो गई है। फिर भी यदा-कदा हड़ताल की खबरें देखने-सूनने को मिल जाती हैं।

उत्पादन के लिए श्रम और पूंजी दोनों आवश्यक है। जब पूंजी के साथ श्रम का असहयोग हो जाता है तो इस स्थिति को हड़ताल कहा जाता है। इसका कारण मालिकों द्वारा मजदूरों का शोषण है। मालिक, मजदूरों की मेहनत की बदौलत ऐशो-आराम की जिंदगी जीते हैं। उनके कुत्ते भी निर्धन मानव से अधिक सम्मानित होते हैं। दूसरी ओर मजदूरों को भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता। राष्ट्रकवि दिनकर ने इसी स्थिति को स्पष्ट किया है-

श्वानांें को मिलता दूध-वस्त्र भूखे बच्चे अकुलाते हैं।

माँ की हड्डी में चिपक ठिठुर जाड़े की रात बिताते हैं।

सामान्यतः हड़ताल के पीछे मुख्य रूप से यही भाव है। लेकिन आज इसकी हालत किसी से छिपी नहीं है। मजदूर मजदूरी या वेतन में कमी होने पर फैक्ट्रियांे में ताले लटकाकर हड़ताल पर चले जाते हैं। विद्यार्थी कभी कठिन प्रश्न पत्र लेकर तो कभी ईमानदार प्राचार्य को हटाने को लेकर हड़ताल पर बैठ जाते हैं। कर्मचारी एवं शिक्षक वेतनवृद्धि, सेवा निवृत्ति की आयु-सीमा में वृद्धि एवं अन्य सुविधाओं के लिए महीनांे तक अपने-अपने कार्यालयों में ताले लगाए रखते हैं। बस, टेम्पो, रिक्शा, ट्रक आदि वाहनों के मालिक भी पुलिस-दमन एवं टैक्स-वृद्धि के विरोध में या डीजल-पैट्रोल की बढ़ती हुई कीमतों के विरोध में हड़ताल करते हैं। हड़ताल के द्वारा लोग किसी संगठन के बैनर के नीचे एकत्रित होकर अपने व्यवस्थापकों के विरोध में अपनी मांगों को मनवाने का प्रयास करते हैं। हड़ताल अहिंसात्मक आन्दोलन का एक हिस्सा है। हड़ताल करने का अधिकार भारतवासियों को संविधान प्रदत्त है। हड़ताल एक तरह से गांधी जी द्वारा निर्देशित असहयोग आन्दोलन का रूप है। लेकिन हड़ताली कभी-कभी हड़ताल को हथकण्डा बना लेते हैं, तब बात बिगड़ जाती है और हड़ताल की गरिमा समाप्त हो जाती है। विरोधी दल सरकार के विरूद्ध जनमत उभारने के लिए भी नागरिकोें से हड़ताल करने का आह्वान करते हैं।

हड़ताल से सम्बन्धित प्रतिष्ठानों एवं कार्यालयों में कार्य बन्द हो जाते हैं। सभी हड़ताली व्यवस्था अथवा मालिक के विरूद्ध नारे लगाते हुए सड़कों पर उतर आते हैं। उनका नारा होता है- ‘हमारी मांगे पूरी हो, चाहे जो मजबूरी हो।’ हड़ताल नारेबाजी के क्रम में कभी-कभी हिंसक भी हो जाती है। हड़ताल के दौरान सरकारी सम्पत्तियों की तोड़-फोड़ भी की जाती है। नगरपालिका की हड़ताल से शहर में सर्वत्र गन्दगी ही गन्दगी दिखलाई पड़ने लगती है एवं महामारी फैलने की संभावना बढ़ जाती है। नगर नरक में तब्दील हो जाता है। अस्पताल में कहीं बेबस रोगियों की कराह सुनाई पड़ती है तो कहीं अभिभावकों का आक्रोश उबलता दिखाई पड़ता है। फिर भी ये हड़ताली अपने काम पर, अपनी जिद पर अड़े रहते हैं। ऐसी स्थिति में हड़ताल आम जनता के लिए अभिशाप बन जाती है।

हड़ताल की सफलता बहुत कुछ हड़तालियों की एकता पर निर्भर करती है। हड़ताल में फूट पैदा होते ही हड़ताल का अन्त हो जाता है। व्यवस्था भी साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति अपनाकर हड़ताल तुड़वाने का भरसक प्रयास करती है। हड़ताल तुड़वाने के लिए व्यवस्था और हड़तालियों के बीच वार्ताएं चलती हैं। इसमें हड़ताली नेताओं की पौ-बारह होती है। वे दोनों हाथों से व्यवस्था और हड़ताली-दानों को लूटते हैं। एक ओर वे हड़तालियों के चन्दे से एकत्रित धन को भोगते हैं तो दूसरी ओर व्यवस्था से सांठ-गांठ कर बिना कुछ लिए हड़ताल तुड़वाकर सत्ता का लुत्फ उठाते हैं।

पूर्व में जब हम परतंत्र थे तब अंग्रेजी सत्ता के अत्याचारों के विरूद्ध हमने हड़ताल का सहारा लिया था। लेकिन आज बात-बात पर हड़ताल की जा रही है। हड़ताल उचित मांगों को लेने का अंतिम अहिंसक अस्त्र है जब समझौते के अन्य सभी दरवाजे बन्द हो गए हों। हड़ताल में जोर जबरदस्ती, तोड़-फोड़ आदि हिंसा सर्वथा वर्जित होनी चाहिए। हड़ताल करने के समय राष्ट्रहित की बात को नहीं भूलना चाहिए। आवश्यक सेवाओं- जैसे अस्पताल, दवा-दुकान, पेय जल, विद्युत, डाक-घर आदि को यथासंभव हड़ताल से दूर रखना चाहिए। मालिक अथवा व्यवस्था से जुड़े लोगों का भी यही कत्र्तव्य है कि वे यथासंभव हड़ताल की नौबत न आने दें।

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