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Hindi Essay on “Ek Rashtriyata Aur Kshetriya Dal” , ”एक राष्ट्रीयता और क्षेत्रीय दल” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

एक राष्ट्रीयता और क्षेत्रीय दलों की बाढ़

Ek Rashtriyata Aur Kshetriya Dalo ki Badh

किसी विशाल भू-भाग को देश कहा जाता है। उस देश नामक भू-भाग पर निवास करने वाले सभी प्रकार के लोग जब उसके प्रत्येक कण के साथ अपनत्व स्थापित कर लेते हैं, उसकी रक्षा एंव समृद्धि के लिए प्राण-पण की बाजी लगाने को तत्पर रहा करते हैं, तब राष्ट्र नामक सूक्ष्म तत्व का जन्म हुआ करता है। उसके साथ सभी की आतंरिक सुसंबद्धता से जो वस्तु उत्पन्न हुआ करती है, उसे राष्ट्रीयता कहा जाता। इस प्रकार एक भू-भाग के समान धर्मा, समान गुण-कर्मा लोग ही एक राष्ट्र कहे या माने जाते हैं। उन्हें एकत्व के सूत्र में बांधे रखने वाला तत्व एक राष्ट्रीययता के रूप में विकास पाया करता है। इसी से किसी विशेष भू-भाग निवासी की पहचान भी बना करती है। यों व्यापक रूप से, मनुष्यता के नाते से सारी धरती पर निवास कर रही मनुष्यता एक ही है।

किसी राष्ट्र या देश के अनेक क्षेत्र हुआ करते या हो सकते हैं, जिन्हें राजनीति की भाषा में प्रांत कहा जाता है। हर प्रांत स्वायत हुआ करता है। उसकी अनेक प्रकार की प्राकृतिक, भौगोलिक, भाषायी विशेषतांए भी हो सकती हैं और हुआ भी करती हैं। इन्हीं से उसकी एक देश एंव राष्ट्र के अंतर्गत पहचान भी बना करती है। लेकिन ये सारी बातें उसकी विलगता देखाते ुए भी आंतरिक स्तर पर एक देश एंव राष्ट्र का महत्व ही उजाकर किया करती हैं। यही बात राजनीति और उससे संबंध रखने वाले भिन्न दलों की भी हुआ करती है। लेकिन बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज की राजनीति, उसे करने वाले दलों और राजनेताओं की मानसिकता इतनी घटिया, इतने अधिक निहित स्वार्थों से भर चुकी है कि राष्ट्रीयता का अंत तो सन्निकट दिखाई देने ही लगा है। इस बात का भी खतरा पैदा हो गया है कि कहीं देश भी छिन्न-भिन्न होकर न रह जाए। आज क्षेत्रीयता एंव क्षेत्रीय स्वार्थों को निरंतर बढ़ावा मिला रहा है। छोटे-छोटे स्वार्थों को, आर्थिक लाभों को लेकर तथाकथित नेतागण देश एंव एक राष्ट्रीयता की भावना को तोडक़र रख देना चाहते हैं। कोई भी व्यक्ति आठ-दस पिच्छलगुओं को लेकर पहले तो नेता बन बैठता है, फिर अपना एक क्षेत्रीय दल बना एंव घोषित कर अपनी खिचड़ी अलग पकाने लगता है। उसे यह चिंता भी रहती है कि उसके इस तरह के व्यवहार से व्यापक स्तर पर देश एंव एकराष्ट्रीयता की भावना को तो हानि पहुंच ही रही है, उसका अपना क्षेत्र या प्रांत भी उनसे बच नहीं पा रहा।

क्षेत्रीय दल अक्सर क्षेत्र के हितों की रक्षा के नाम पर तो बना ही करते हैं, परंतु अधिकतर उनमें ऐसे नेता रहते हैं जो बड़े या राष्ट्रीय दलों से टूटकर आए होते हें। जब वे राष्ट्रीय दलों में अपनी निहित स्वार्थी दाल गलती नहीं देखते, तब सौदेबाजी करने के लिए वे क्षेत्रीय दल गठित करके तरह-तरह की धमकियों एं विकटता से से भरे आंदोलन चलाने लगते हैं। कम-से-कम भारत में तो ऐसा ही सब हो रहा है। भारत में एक ओर जहां अपने आपको राष्ट्रीय दल कहने-मानने वाले दलों की बाढ़ सी आ रही है, वहां दूसरी ओर क्षेत्रीय दलों की संख्या और स्थिति भी बाढ़ से कम नहीं है। तथाकथित राष्ट्रीय दल भी एकत्व से टूटकर अनेकत्व में बदल रहे हें। उसी प्रकार एक क्षेत्र में भी एक दल से अनेक बनने में कोई देर नहीं लगती। अर्थात जहां जितने छोटे-बड़े नेता टाइप के लोग रहते हैं, वहां उनके उतने ही दल बन जाते हैं। सभी अपने-अपने स्वरूप की व्यापकता का ढिंढोरा पीट आम-जनता को बरगलाने की चेष्टा करते हैं। फलस्वरूप जनता के लिए गलत सही का निर्णय कर पाना अत्यंत कठित कार्य हो जाता है।

आजकल राष्ट्र के वास्तविक हित की चिंता किए बिना एक नई परंपरा का आरंभ हुआ है। इस परंपरा का निर्वाह राष्ट्रीय एंव क्षेत्रीय दोनों प्रकार के दल कर रहे हैं। वह है, अभिनेताओं और समाज-जीवन के खलनायकों अर्थात गुंडा एंव अराजक तत्वों को सामने लाकर दल की शक्ति बढ़ाना एंव चुनाव आदि लडऩा-लड़ाना। इस प्रकार के कारनामें निश्चय ही जन एंव राष्ट्रहित को पीछे धकेलकर मात्र सत्ता की कुर्सी हथियाने के लिए ही अंजाम दिए जाते हैं, इस बात में रत्ती भर भी संदेह नहीं। फलस्वरूप भ्रष्टाचार अनेक नाम-रूप धारण करके निरंतर प्रगति एंव विकास कर रहा है। उसका सभी प्रकार का दुष्परिणाम बेचारी आम जनता को भोगना पड़ रहा है। इतना ही नहीं कि लोगों के मनों से राजनीति और राजनेताओं के प्रति विश्वास उठता जा रहा है, बल्कि राष्ट्र और राष्ट्रीयता का भाव भी एक प्रकार का विद्रूप, एक प्रार की राष्ट्रीयता भावना बनती जा रही है। इसे बनाने में यद्यपि राष्ट्रीय दलों के नेताओं का कम हाथ नहीं पर क्षेत्रीय दल और नेताओं, क्षेत्रीयता की निरंतर बढ़ रही भावना का हाथ उससे कहीं अधिक है।

हर क्षेत्रीय दल क्षेत्र के नाम पर ही केंद्रीय सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने को आतुर दिखाई देता है। इसके लिए तरह-तरह के बहाने तराशे-खराशे जाते हैं। कभी क्षेत्रीय असंतुलन का नारा लगाया जाता है तो कभी पिछड़ेपन का। कभी आरक्षण की आवाज उठाई जाती है तो कभी रॉयल्टी आदि की। इस प्रकार के गलत-शलत एंव बेकार के नारे लगाकर क्षेत्रीय नेता वास्तव में अपना-अपना दाम लगावाना और बढ़वाना चाहते हैं। ऊंचे दामों पर बिकते-बिकते हैं-जैसा कि अभी कुछ ही दिन पहले या सन 1991 में संपन्न आम चुनावों के बाद एक दल विशेष के नेताओं ने किया। उनका किया तो किसी प्रकार सामने आ गया। पर कितने ही अन्य क्षेत्रीय नेता अपने को बचेकर आज भी छुपे रुस्तम बनकर आम जनता के बीच दनदनाते फिरते हैं। इससे एकराष्ट्रीयता की भावना तो कितनी हानि पहुंच रही है, उन्हें पता ही नहीं। शायद वे सब इसे जानने का कभी प्रयास ही नहीं करते। इसे बड़ी ही खतरनाक प्रवृति कहा जा सकता है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्रीय एंव क्षेत्रीय सभी दलों के छोटे-बड़े नेता मिल-बैठकर राष्ट्र एंव राष्ट्रीयता की बात सोचें। सब प्रांतों-यानी सारे देश और उसमें प्रत्येक जन की प्रगति से ही राष्ट्र का स्वरूप एक ओर स्थिर रहकर प्रगति एंव विकास कर सकता है। तभी उनके दल, दलगत स्वार्थ एंव वे क्षेत्र भी सुरक्षित रह सकते हैं कि जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं। स्मरण रहे, जन का ध्यान किए बिना, उसके हितों को आगे बढ़ाए बिना कुछ भी न तो स्थिर रह सकाता है और न आगे ही बढ़ सकता है। क्षेत्रीयता की प्रगति एंव विकास, यहां तक कि पहचान भी तभी बची रह सकती है, जब राष्ट्र एंव उसका अस्तित्व-गौरव सुरक्षित रहे।

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