Hindi Essay on “Ek Dakiye ki Aatmakatha” , ”एक डाकिये की आत्मकथा” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
एक डाकिये की आत्मकथा
Ek Dakiye ki Aatmakatha
डाकिया एक साधारण किन्तु उपयोगी लोक सेवक होता है। हर प्रकार के मौसम में वह अपना कार्य करता रहता है। वह चिट्ठियाँ, रजिस्ट्री, पार्सल तथा मनीआर्डर पहुँचाता है। वह घर-घर जाता है। कई बार वह अपने साईकिल पर तो कई बार पैदल आता है। सभी उसका इंतजार करते हैं।
डाकिया खाकी वर्दी पहनता है। वह चमड़े के बैग में डाक लेकर आता है। वह सुबह 9 बजे दफ्तर में अपने इलाके की डाक लेने जाता है। वह अपनी डाक छांटता है तथा उसे। तरतीब से लगाता है। फिर वह उन्हें बांटने के लिए निकल पड़ता है। वह गली-गली और घर-घर डाक पहुंचाता है। उसे काफी लम्बा रास्ता तय करना पड़ता है। जब वह अपने इलाके में होता है तो रास्ते में बिल्कुल भी आराम नहीं करता।
पहले समय में तो डाकिए को कोई छुट्टी भी नहीं होती थी। उसे रविवार और त्योहारों के दिन भी काम करना पड़ता था। परन्तु आजकल प्रत्येक रविवार उसे छुट्टी होती है और इसके अतिरिक्त कुछ त्योहारों पर भी छुट्टी होती है। पहले तो उसकी आमदनी भी कम थी। लेकिन अब सरकार उनकी स्थिति में सुधार करने के काफी प्रयास कर रही है। अब उसे अच्छी तनख्वाह भी मिलने लगी है और इसके अतिरिक्त उसे बोनस भी मिलता है। ।
कुछ डाकिए अपना काम ईमानदारी से नहीं करते हैं। वह अपनी चिट्ठियां ठीक ढंग से नहीं बाँटते। वह छोटे बच्चों को पत्र पकड़ाकर चले जाते हैं। कई बार लैटर बॉक्स में चिट्ठियां डालने की जगह दरवाजों के नीचे से चिट्ठियां फैंक कर चले जाते हैं। इस प्रकार कई महत्त्वपूर्ण पत्र गुम हो जाते हैं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। उन्हें एक अच्छे लोक सेवक की तरह अपना काम निष्ठापूर्वक करना चाहिए।