Hindi Essay on “Dheeraj Dharam Mitra Aru Nari” , ”धीरज धर्म मित्र अरु नारी” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
धीरज धर्म मित्र अरु नारी
Dheeraj Dharam Mitra Aru Nari
यह काव्योक्ति रामचरितमानस से उद्धृत है। इन शब्दों में बहुत बड़ा सार, गम्भीरता एवं अर्थगौरव है। वैसे तो सभी अपने बनते हैं; परन्तु वास्तव में आपत्ति के दिनों ही में धैर्य, मित्र और नारी की परीक्षा होती है। धीर तो वही हैं जो गरजती हुई आपत्ति-घटायें गिरने पर भी विचलित न हों। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को राज्य सिंहासन के स्थान पर चौदह वर्ष का वनवास हो गया। यह बात सुनने पर भी वे विचलित घय का प्रतीक है। इसी प्रकार महाराणा प्रताप, शिवाजी और धर्मराज युधिष्ठिर के चरित्रों का अध्ययन करने से पता चलता है कि घोर आपत्तियों के दिनों में वे विचलित नहीं हुए। गाधी जी विलायत गमन पर मध्य में आये तफान से नहीं डरे। गणेशशंकर विद्यार्थी ने अपने जीवन की बलि देकर धैर्य का परिचय दिया। वास्तव में यही सच्चा धैर्य है।
धर्म की कसौटी ही आपत्ति है। सत्यवादी हरिश्चन्द्र ने धर्म की परीक्षा देने के लिए कवल अपने बच्चे और पली ही को बेचा. अपित स्वयं भी डोम के घर बिके। इसी धर्म अचार हेतु ईसा मसीह ने शली को प्यार किया। भगवान राम ने पितृ आज्ञा पालन का सबसे बड़ा धर्म माना? दधीचि ने धर्म के नाम पर अपनी अस्थियों का दान देकर का रक्षा की। वीर बालक हकीकत राय और गरु गोविन्द सिंह के दोनों बेटो – प्राण त्याग दिए; परन्तु अपना धर्म न छोड़ा।
वही है जो सख-दःख में समान साथ दे। सज्जन मित्रों की मित्रता नहीं होती है। वह सुख-दुःख दोनों में मित्र का साथ देते हैं और दुःख में ॥ सहायता न कर चुप बैठे रहते हैं तथा परिचय को भुला देते हैं, वे स्वार्थी त हैं। उनकी मित्रता केवल चाय, बीड़ी, पान और सिगरेट तक ही सीमित है। इसके विपरीत सच्चे मित्र सच्चे मित्र अपने लिए कुछ नहीं चाहते और अहेतु प्रीति करते हैं। यह अकारण होने वाली प्रीति आजन्म चलती है तथा इसमें ऊँच-नीच तथा बदले की भावना नहीं होती है। ऐसे मित के नाम मात्र से हृदय प्रफुल्लित हो उठता है। कृष्ण-सुदाम और राणा प्रताप तथा झाला सरदार के उदाहरण इसी प्रकार के हैं।
नारी को अर्धागिनी और सहचरी कहा गया है। अतः साध्वी सीता जैसी नारियों सुख-दुःख दोनों में अपने पति का समान सहयोग देती हैं। सावित्री जैसी पतिव्रता ने अपने पति तक को यमराज से छुड़ाया। ऐसी नारियाँ सर्वत्र पूजनीय रही हैं।
इस स्थिति में मित्र कुमित्र बन जाते हैं। सम्पूर्ण संसार शून्य दृष्टिगोचर होता है। इन्द्रियाँ कार्य नहीं करतीं, हृदय पापहीन की ओर भागने लगता है और व्यक्ति अपने धर्म को छोड़कर कुकर्म करने लगता है। अतः वह बड़ा दुःखदायी होता है।
जहाँ पर आपत्तिकाल इतना दुःखदायी है, वहाँ वह आदमी की पहचान भी करा देता है। जिस प्रकार अग्नि में पड़कर सोना खरा बन जाता है उसी प्रकार आपत्ति एवं निर्धनता में जो व्यक्ति अपनी ईमानदारी का परिचय देता है, वह मानव क्या देवता कहलाने का अधिकारी बन जाता है। स्वतः की परीक्षा के साथ ही है यह आपत्तिकाल धीरज, धर्म, मित्र और पत्नी के परीक्षण का काल है। सुख-सम्पन्नता में प्रत्येक व्यक्ति अपना बनने का प्रयास करता है। परन्तु आपत्तिकाल में सच्चा मित्र और सच्ची पतिव्रता स्त्री ही साथ देती है। ऐसे आपत्ति के समय धैर्य का अवलम्बन कर धर्म का पालन करना बड़ा कठिन है; किन्तु यदि कोई ऐसे समय भी न डिगकर अपने सच्चे कर्तव्य का पालन करे, तो संसार में हरिश्चन्द्र, गांधी और ईसा मसीह आदि के समान अमर बन जाते हैं।
तुलसीकृत रामचरितमानस में अनेक अनुभूतियों के बहुमूल्य रत्न भरे पड़े हैं, जिन्हें ग्रहण कर प्राणीमात्र भवसागर को अनायास पार कर सकता है। उक्त चौपाई भी उन्हीं अनुभूतियों की प्रतीक है। वास्तव में धैर्य, धर्म, मित्र और पत्नी की विभूतियाँ हैं। इन्हीं को प्राप्त कर मानव गौरव का अनुभव करता है। परन्तु इनकी परीक्षा दुःख की कसौटी पर ही हो सकती है।