Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay on “Dal-Badal” , ”दल-बदल” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Hindi Essay on “Dal-Badal” , ”दल-बदल” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

दल-बदल : समस्या और समाधान

Dal-Badal : Samasya Aur Samadhan

‘दल-बदल’ वाक्य-खंड का सामान्य अर्थ है, एक समूह को छोडक़र दूसरे में जा मिलना। परंतु इस खंड वाक्य का एक विशेष निहितार्थ भी है। वह है निष्ठा का बदलना। अर्थात वैचारिक एंव भावनात्मक स्तर पर पहली निष्ठा का समाप्त होकर नहीं निष्ठा का आ जाना। यह समूह या निष्टा परिवर्तन का सूचक खंड-वाक्यय मुख्य रूप से राजनीति-क्षेत्र की देन है, अत: उसी के संदर्भ में इसकी व्याख्या करने और समझने की आवश्यकता है। जब किसी राजनीतिक संस्था या दल को त्यागर किसी दूसरी संस्था या दल में शामिल हो जाया जाए, तो बदलाव की इस प्रक्रिया को ‘दल-बदल’ कहा जाता है। जो नेता या व्यक्ति ऐसा करता है, उसे ‘दल-बदलू’ कहते हैं। ध्यान रहे, समूह या निष्ठा बदलने की यह प्रक्रिया किसी एक व्यक्ति द्वारा भी होती है और कई बार पूरे समूह या बहुत सारे व्यक्तियों द्वारा एक साथ भी हुआ करती है। सामान्य तौर पर दोनों प्रकार भी प्रक्रिया वास्तव में दल-बदल ही है। पर स्वार्थी राजनीतिज्ञ अपने हर कार्य को विशेष गरिमा से मंडित देखना चाहते हैं, इस कारण सामूहिक दल-बदल को वे लोग ‘नए दल का गठन’ कह दिया करते हैं, जबकि एक व्यक्ति के बदलाव को गरिमा-पंडित नहीं कर पाते, इस कारण ‘दल-बदल’ ही कहते हैं। ध्यान रहे, व्यक्ति और समूह दोनों स्तरों पर दल-बदल की प्रक्रिया का प्रवर्तक हरियाणा राज्य को माना जाता है। वहां पहले एक व्यक्ति ने दल बदला था, जबकि मुख्यमंत्री बनने के लिए श्री भजनलाल पूरे दल समेत बदल गए थे।

‘दल-बदल’ खंड-वाक्य की व्युत्पत्ति व्याख्या और परिभाषा करने के बाद अब उसके कारणों पर भी विचार कर लेना चाहिए। तभी इस समरूा का उचित समाधान भी खोजा जा सकता है। दल-बदल की प्रक्रिया का मुख्य कारण माना जाता है-असंतोष एंव सत्ता की कुर्सी पाने की लिप्सा। प्राय: देखा गया हे कि एक या अनेक दल-बदलुओं ने पहले असंतुष्ट रहना और कहना-कहलवाना शुरू किया और फिर इसी असंतोष की दुहाई देकर दल बदल लिया। फिर तत्काल या कुछ दिन दूसरे दल में जा मिलता है। कहने को तो सिद्धांत के कारण पहले दल को त्यागने और दूसरे में बिना शर्मा शामिल होने की बातें कहता है, पर होता वास्तव में कुछ और एंव निहित स्वार्थ ही है। जो हो, राजनीति के क्षेत्र के इस बदलाव को समाचार-पत्रों वाले ‘दल-बदल’ की संज्ञा ही दिया करते हैं।

ऊपर ‘दल-बदल’ के कारण खोजने की प्रक्रिया में हमने वस्तुत: एक ही मुख्य कारण असंतोष और उसके विविध रूपों की चर्चा की है। अब इस असंतोष के स्तर पर भी विचार कर लेना चाहिए। स्तर की दृष्टि से असंतोष के दो ही मुख्य रूप हो सकते हैं। एक वास्तविक यानी सच्चा असंतोष और ूदसरा अवास्तविक यानी झूठा एंव निहित स्वार्थों से प्रेरित असंतोष। चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य, डॉ. राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण आदि भी व्यवस्था ओर सत्तारूढ़ दल को त्यागकर नए दलों का गठन करने वाले व्यक्ति थे। परंतु इन्हें ‘दल-बदलू’ कोई नहीं कहता। कारण स्पष्ट है। वह यह कि इन सभी का असंतोष सच्चा यानी नीतिगत और सिद्धांत पर आधारित था। आज भी भारतीय राजनीति के इतिहास में इन लोगों का नाम पूरे सम्मान कि साथ लिया जाता है। असंतोष का दूसरा रूप है अवास्तविक यानी झूठा और निहित स्वार्थों से प्रेरित स्वरूप। 1989-90 में जो कुछ भी भारतीय राजनीति में घटित हुआ है, वह घटिया प्रकार के असंतोष और घटिया श्रेणी के असंतुष्टों  के दल-बदल का एक निकृष्टतम उदाहरण है। सो कुल मिलाकर हम जो यहां कहना चाहते हैं, वह यह है कि भारतीय राजनीति का वह स्वर्ण युग अतीत की कहानी बन चुका है कि जब असंतोष के कारण राष्ट्रीय या जन-जीवन संबंधी मुद्दे हुआ करते थे। अब तो निहित स्वार्थों वाले असंतोष का युग है, जिसके भिन्न और विविध रूपों, क्रिया-प्रक्रियाओं का उल्लेख हम ऊपर कर आए हैं। सो कहा जा सकता है कि अपने स्वार्थों की पूर्ति को ही सामने रखने के कारण भारतीय राजनीति का खेल खेलने वाला हर राजनीतिज्ञ आज असंतुष्ट है और इस कारण ‘दल-बदलू’ मानसिकता का शिकार हर क्षण बना रहता है और हो सकता है। च्यारहवीं लोक सभा चुनावों की चर्चा जब से चलनी शुरू हुई है, तब से वर्तमान सभी दलों से कितने नेता दल-बदल चुके हैं और अनवरत कर रहे हैं, यह बताने की आवश्यकता नहीं।

अब तनिक कृत्रिम असंतोष के कारण होने वाले दल-बदल के इतिहास पर भी विचार कर लिया जाए। ऊपर हमने स्वर्गीय श्यामाप्रसाद मुखर्जी और चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य जैसे लोगों के नाम लिए हैं। इनके नाम लेने का तात्पर्य दल-बदल की नीतिगत उचितप्रक्रिया को सांकेतिक करना ही था। वास्तव में झूठे असंतोष और निहित स्वार्थों की पूर्ति के अभाव में दल-बदल की प्रक्रिया हरियण राज्य बनने के तत्काल बाद हरियाणा के विधायकों द्वारा ही आरंभ की गई थी। तब कुछ विधायकों के तो नाम ही ‘आयाराम-गयाराम’ हो गए थे। क्योंकी उनकी निष्ठांए दिन में कई-कई बार बदलती रही। अत: यह नामकरण उचित ही था और अखबारेह्वां नने भी ऐसे बेपेंदे के लोटों को खूब धिक्कार से भरकर उछाला, यह बात हम ऊपर पहले भी कह आए हैं। फिर यह प्रक्रिया अन्य राज्यों में आरंभ हो गई। पिछले एक-डेढ़ वर्ष में उस पुराने इतिहास को पिुर कई बार दोहराया जा चुका है और आगे भी दोहराया जाता रहेगा। आंध्र, कर्नाटक, बंबई, तमिलनाडु, नागालैंड आदि अन्य प्रांतों में दल-बदलुओं के कारण सरकारें गिर चुकी हैं। गोवा और मिजोरम में भी ऐसा हो चुका है। जब और जहां भी ऐसा हुआ है, उसका कारण व्यक्तिगत स्वार्थ ही प्रमुख रहा है, जबकि दुहाई नीतियों-सिद्धांतों की दी गई। दल-बदलू ऐसी मछलियां हैं कि जो अपने अकेलेपन में ही सारे तालाब को तो गंदा करती ही हैं, सड़ांध पैदा कर अनेक प्रकार के असाध्य रोगों को भी जन्म देती हैं। आज जो लोगों को विगत कई वर्षों से केंद्र और प्रांतों में कोई सरकार नहीं नजर आ रही, इसका मूल कारण राजनीतिक अनैतिकता और स्वाथ्रवश किया गया दल-बदल ही है, कोई शासन नहीं। परिणामस्वरूप हर प्रकार की अंधेरगर्दी बढ़ रही है। जनता अशांत और विवश है।

दल-बदल विरोधी कानून तो बना पर उसमें इतनी खामियां हैं कि वह पहले तो लागू हो ही नहीं सका, यदि हुआ तो छिद्रान्वेषी आज भी उसकी धज्जियां उड़ा दल-बदल रहे हैं। प्रश्न उठता है कि आखिर कौन से तरीके अपनाकर भारतीय राजनीति को इस कोढ़ से मुक्ति दिलाई जा सकती है? हमारे विचार में उसका प्रभावी एक ही उपाय हो सकता है। वह यह कि कोई दल का व्यक्ति जिस क्षण दल बदले, उसी क्षण से उसकी सदस्यता स्वत: ही समाप्त हो जानी चाहिए। दूसरे सामान्य उपाय भी हैं।  जैसे सच्चरित्र, निष्ठावान और समर्पित लोगों को ही विधान सभाओं और संसद में भेजा जाना चाहिए। राजनति में लोग सेवा के लिए आने की बातें कहते हैं, सो विधायकों-सांसदों को ऐसी सुविधांए कतई नहीं या कम से कम मिलनी चाहिए, जो आम आदमी को, या फिर बाहर रहने वाले राजनेता को सुलभ नहीं हैं। शिक्षित, समर्पित और निष्ठावान व्यक्ति ही सरकारी-गैरसरकारी विशेष पदों पर नियुक्त किए जाने चाहिए। हमारे विचार में यदि हम इस प्रकार की कोई आचार-संहिता सख्ती से लागू कर सकें। तो काफी हर तक इस राजनीतिक कोढ़ से छुटकारा पाया जा सकता है।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *