Hindi Essay on “Chalo Padhe Kuch Karke Dikhaye”, “चलो पढ़ाएँ कुछ करके दिखाएँ” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
चलो पढ़ाएँ कुछ करके दिखाएँ
Chalo Padhe Kuch Karke Dikhaye
आज सारे देश में साक्षरता अभियान की होड़ लगी हुई है । सब के मन में एक ही बात बार-बार आती है जो व्यक्ति अनपढ़ हैं चलो उनको पढ़ाएँ और ऐसे लोगों के लिए कुछ कर दिखाएँ । यह अभियान और भी अधिक गतिशील तब से हो गया जब से सुदूर दक्षिण के केरल प्रान्त ने शत-प्रतिशत साक्षरता प्राप्त की है। तब से ही अनेक प्रान्तों में पूर्ण साक्षरता के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास हो रहे हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत में साक्षरता की दर केवल 19% थी। आज साक्षरता कुछ बढ़ी अवश्य है, परन्तु आज भी करोड़ों भारतीय निरक्षर है और उनके लिए काला अक्षर भैंस के बराबर है।
अंग्रेजी में एक कहावत है-“अज्ञानता में ही परमानन्द है” (Ignorance is a bliss.)। कहने का भाव यह है कि मूर्ख और अज्ञानी व्यक्ति को किसी प्रकार की चिन्ता व्याप्त नहीं होती और न ही उसे कुछ सोचने या समझने की आवश्यकता होती है जबकि समझदार और बुद्धिमान व्यक्ति के लिए संसार में पग पग पर ठोकरें हैं, चिंताएँ है, उलझने हैं । मुर्ख व्यक्ति को न तो अपने कर्तव्य तथा अकर्तव्य की चिन्ता सताती है, न समाज की चिन्ता होती है न ही अपने देश की । इसी भाव को महाकवि ने इस प्रकार व्यक्त किया है–“सब ते भले विमूढ़, जिन्हें न व्यापै जगत गति” भाव सबसे अच्छे मूर्ख होते हैं जिन्हें सांसारिक सुख दुःख या चिन्ताएँ नहीं सताती ।
निरक्षर या अनपढ़ होना मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है । निरक्षर व्यक्ति ज्ञान-विज्ञान के विशाल भण्डार से वंचित रह जाता है । निरक्षर व्यक्ति इस संसार में उस अन्धे व्यक्ति के समान जीवित रहता है जिसके मार्ग में मोती बिखरे रहते है परन्तु वह उन्हें देखने में असमर्थ रहता है क्योंकि उसकी आँखों में ज्ञान का प्रकाश नहीं होता । निरक्षर व्यक्ति का जीवन वैसा ही है जैसे पंखहीन पक्षी और जल बिना मछली का ।
हमारे यहां समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने गुणों और कर्मों के कारण शिक्षा प्राप्त करता था । समाज और शासन की ओर से उसके लिए शिक्षा की समुचित व्यवस्था थी । यही कारण था कि भारत शिक्षा के क्षेत्र में अन्य देशों का गुरु माना जाता था । परन्तु जैसे ही अंग्रेज़ों ने भारत में शासन की बागडोर सम्भाली उन्होंने सबसे प्रथम कार्य यह किया कि देश की भाषा तथा साहित्य को समाप्त करना शुरु कर दिया क्योंकि अंग्रेज़ जानते थे जितने लोग भारत में अनपढ़ होंगे उतना ही उनका शासन मज़बूत होगा और अधिक देर तक शासन चला पाएँगे । धीरे-धीरे इसका इतना असर होने लगा कि भारत में ‘अंगूठा छाप’ होने लगे और उनकी संख्या 99% तक पहुंच गई।
अशिक्षित व्यक्ति न अपने घर का वातावरण ठीक कर सकता है और न दी अपने बच्चों का भविष्य बना सकता है । वह न आत्म-कल्याण कर सकता है और न ही राष्ट्र-कल्याण । अशिक्षा के कारण न हम अपना व्यापार बढ़ा सकते हैं और न ही औद्योगिक विकास की ओर अग्रसर हो सकते हैं । निरक्षरता इस कद्र बढी कि लोग अपना नाम तक न लिख सकते थे और न पढ़ सकते थे । बेचारे अंगठा लगाकर ही अपना काम चलाते थे । इस बात का पूरा लाभ जमींदार और साहकार खब उठाते थे । वह अपनी मर्जी से जो चाहें लिख देते थे चाहे एक हज़ार
निरक्षरता एक अभिशाप है । इसे मिटाने के लिए युद्ध स्तर पर अभियान चलाने की आवश्यकता है । साक्षरता अभियान केवल सरकार के सहारे नहीं चल सकता । इस कार्य को चलाने के लिए स्वयं-सेवी संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए । इसके साथ साथ प्रौढ़ शिक्षा का भी प्रचार तथा प्रसार होना चाहिए । बडी आयु के नर-नारियों को शिक्षा देना आसान नहीं है । शिक्षित युवकों को साक्षरता अभियान अपने हाथों में लेना चाहिए । स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारे देश के महान् नेताओं ने देश के सम्मुख यह लक्ष्य रखा था-‘प्रत्येक व्यक्ति कम से कम एक अन्य व्यक्ति को शिक्षित करे-Each one teach one’ । हमें चाहिए कि हम इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसे व्यवहारिक रूप दें और अपने महान् नेताओं के स्वप्न को साकार करें ।
यदि हमने भारत को वास्तव में महान् बनाना है तो शिक्षित व्यक्तियों को आगे आना चाहिए क्योंकि विश्व के बदलते परिदृश्य में भारत का किसी भी रूप में पिछडा रहना ठीक नहीं है । शिक्षित एवं साक्षर लोग ही प्रजातन्त्र को सफल बना सकते हैं । साक्षरता अभियान एक व्यापक दृष्टिकोण है जिसकी सफलता उज्जवल भविष्य की ओर इशारा करती है । इसलिए आओ पढ़ाएँ,कुछ कर दिखाएँ और लोगों को इस अज्ञानरूपी अन्धकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले चलें । इस योजना को चलाने वाले कार्यकर्ता चाहे वे सरकारी कर्मचारी हों या किसी स्वयंसेवी संस्था के, उनको चाहिए कि मन लगाकर, सच्ची लगन और ईमानदारी से इस कार्य को सम्पन्न करें और बच्चों के मन में यह भावना पैदा हो जाए पापा के लिए ज्यादा ज़रूरी उनकी शराब नहीं है बल्कि उनके लिए किताबें लाना ज्यादा ज़रूरी है । बच्चे अपने शराबी पापा को समझाएँ-
पापा जी आप न पिएँ शराब ।
मेरे लिए लेकर आना किताब ॥