Hindi Essay on “Bhrashtachar” , ”भ्रष्टाचार” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
भ्रष्टाचार
Bhrashtachar
अथवा
भ्रष्टाचार: कारण और निवारण
भारत आज आर्थिक कठिनाईयों से ही नहीं, नैतिक संकट के दौर से भी गुजर रहा है। नैतिकता के हास का ही दूसरा नाम भ्रष्टाचार है। सभी देशों में किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार पनपता रहता है। जहाँ तक गरीब देशों का प्रश्न है वहाँ भ्रष्टाचार का जोर कुछ ज्यादा ही होता है। विकासशील देश होने के नाते भारत भी इसका अपवाद नहीं है। जहाँ चारों ओर अभाव तथा आर्थिक कठिनाईयाँ है, वहाँ लोगों के मन में धन संचय की प्रबल भावना अस्वाभाविक नहीं है। चारों ओर फैले आर्थिक अभाव के वातावरण में समाज के समर्थ जन अपने तथा अपने परिवारों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भ्रष्ट तरीके अपनाने से भी नहीं हिचकिचाते।
आजादी के बाद 62 वर्षों में हमारे राष्ट्र ने काफी प्रगति की है। हमारी पंचवर्षीय योजनाओं ने राष्ट्र के विकास में योगदान दिया मिलावट एवं जमाखोरी, रिश्वत और काला बाजार सभी एक ही परिवार सदस्य हैं। समाज के हर क्षेत्र में इनका बोलबाला है। ’सत्यमेव जयते’ का भी इन अशांति के उपकरणों ने गला घोट दिया है।
’भ्रष्टाचार’ शब्द भ्रष्ट ़ आचार शब्दों के योग से बना है। ’भ्रष्ट का अर्थ-निकृष्ट श्रेणी की विचारधारा और ’आचार’ का अर्थ आचरण के लिए उपयोग किया गया है। इसके वशीभूत होकर मानव राष्ट्र के प्रति कर्तव्य भूलकर अनुचित रूप में अपनी जेबें गरम करता है। भ्रष्टाचार रूपी वृक्ष का रूप ही अनोखा है। इसकी जड़े ऊपर की ओर तथा शाखाएँ नीचे की ओर बढ़ती हैं। इसकी विषाक्त शाखाओं पर बैठकर ही मानव, मानव का रक्त चूस रहा है। इसी घनौनी प्रकृति के कारण हमारे प्रयोग की हर वस्तु दूषित बना दी गई है। एक ओर तो आर्थिक अभाव का वातावरण भ्रष्टाचार को जन्म देता है, दूसरी ओर नैतिक मूल्यों के हास के कारण आर्थिक विकास के कार्यक्रमों को अमली रूप देने में बड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। विश्व के विकासमान राष्ट्र आज इसी दुष्चक्र में फँसे हुए हैं। यह सही है कि विश्व के समृद्व विकसित राष्ट्र भी आज मूल्य वृद्वि से परेशान हैं तथा वहाँ भी सरकारी अधिकारी, व्यापारी व उद्योगपति दूध के धुले नहीं हैं।
आज का मानव धन के लालच मंे पड़ गया है। उसके व्यवहार में आर्थिक दृष्टिकोण प्रमुख हो गया है। यही आर्थिक दृष्टिकोण भावना के स्थान पर हिसाब की महत्वपूर्ण बना देता है। मनुष्य में समाज विभाजन की भावना उत्पन्न होती है और आवश्यकता होती है किसी तीसरे व्यक्ति को जो न्याय कर सके। यही तीसरा व्यक्ति शासन है। जब स्वयं अधिक धन हथिया लेने की बात प्रमुख हो जाती है तब जीवन की प्रक्रिया भी नैतिक से आर्थिक हो जाती है। मनुष्य अपने आन्तरिक गुणों की अपेक्षा बाहरी गुणों के विषय में अधिक चिन्तित हो जाता है। आर्थिक विकास के प्रयास में मनुष्य यर्थाथवादी हो जाता है और यर्थाथ का रूप उसे पैसे में दिखाई देता है। मनुष्य पैसे के द्वारा ही वर्तमान को समृद्व बनाए रखना अपना धर्म समझता है।
स्वाधीनता के बाद भारत में बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाई गई। शासन-पद्वति को गाँधी जी के आदर्शों पर चलाने का प्रयत्न किया गया। यद्यपि आर्थिक रूप से तो हम समृद्वि की ओर बढ़ रहे हैं, किन्तु नैतिक दृष्टि से हम पतन की ओर बढ़ रहे हैं। भ्रष्टाचार का विष समाज की नाड़ियों में फैलता जा रहा है।
इस स्थिति के लिए कोई एक व्यक्ति दोषी नहीं है अपितु वह व्यवस्था दोषी है, जो धन को मानवता से अधिक महत्व देती है। फलतः हर प्रकार की बेईमानी द्वारा धन की प्रवृति को बल मिलता है।
भ्रष्टाचार से मुक्ति पाने के लिए जनता व सरकार को मिलकर ही प्रयत्न करना होगा। शासन की सर्वोच्च शक्तियाँ भ्रष्टाचार के मूल कारणों का पता लगाकर उनके समाधान ढूँढे। साथ ही जनता अपने सम्पूर्ण नैतिक बल और साहस से भ्रष्टाचार को मिटाने का प्रयत्न करे। प्रजातांत्रिक शासन-प्रणाली में जनता की आवाज शासन तक सरलता से पहुँच जाती है। भले ही कुछ लोग स्वयं घूसखोरी और लगाव-बुझाव में न फँसे हों, लेकिन उनमें फँसे हुए लोगों को जानते हुए भी उनके प्रति उदासीनता बरतते हैं, वे भी उतने ही अपराधी हैं।
भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। भ्रष्टाचारियों को, चाहे वे कितने ही उँचे पदों पर क्यों न हों, दंडित किया जाना अत्यंत आवश्यक है। उच्च पदों पर नियुक्ति और प्रोन्नति के समय उन व्यक्तियों को वरीयता मिलनी चाहिए जो भ्रष्टाचार से सर्वथा मुक्त रहे हैं। जब भ्रष्टाचारी व्यक्ति पदोन्नत हो जाता है तो ईमानदार व्यक्ति को बहुत धक्का लगता है। सरकार को ऐसे उपाय बरतनें होंगे, जिनसे जनता के विभिन्न कार्य नियत समय पर अवश्य पूरे हो जाएँ, ताकि भ्रष्टाचार की गुजांइश ही न रहे। पिछले कुछ मासों वर्तमान में सरकार का भ्रष्टाचार के अनेक आरोप लगे हैं। इनमें रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार का मामला तेजी से उछला जिसके कारण रक्षामंत्री को त्यागपत्र देना पड़ा। फिर ताबूत कांड, पैट्रोल पंप आबंटन, भूमि घोटाला तथा तहलका कांड इसके उदाहरण हैं। इनसे सरकार की विश्वसनीयता पर आँच आई है।
निष्कर्ष रूप से कहा जाता है कि भ्रष्टाचार पर काबू पाना भारत के लिए अत्यंत आवश्यक है अन्यथा प्रगति की सभी योजनाएँ धरी की धरी रह जाएँगी। यह एक सामाजिक कोढ़ है, इसे मिटाना ही होगा।