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Hindi Essay on “Bhavnatmak Ekta” , ”भावनात्मक एकता ” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

भावनात्मक एकता 

Bhavnatmak Ekta 

भावना के  स्तर पर एक देश या राष्ट्र के सभी जनों में एकता का भाव रहना अत्यावध्यक हुआ करता है। ऐसा भाव ही भावनात्मक एकता कहलाता है। संस्कृत की एक कहावत है ‘संघे शक्ति: कलियुगे।’ अर्थात कलयुग में संघ, संगठन या संगठन में ही वास्तविक शकित छिपी रहा करती है। संगठन या संगठन का मूल अर्थ और भाव है-एकता। छोटे स्तर पर घर-परिवार में सुरक्षित जीवन जीने के लिए जिस प्रकार एकता या एकत्व का भाव आवश्यक है। विशाल या व्यापक स्तर पर किसी जाति, देश और राष्ट्र के जीवित, प्राणवान और सुरक्षित बने रहने के लिए एकता रहना पहली या बुनियादी शर्त है। उसके भाव में स्वल्प या विस्तृत प्रत्येक स्तर पर विघटन और बिखराव राष्ट्रों की एक आवश्यक नियति बन जाया करती है। इसी कारण समझदार और अनुभवी लोग प्रत्येक स्तर पर एकता बनाए रखने की बात कहा करते हैं। केवल कहते ही नहीं, आचरण-व्यवहार में भी ढाला करते हैं।

हमारा देश भारत एक विशाल और विविधताओं वाला देश है। यहां की विविधता प्रकृति और भूगोल में तो दिखाई देती ही है। सभ्याचारों, सामाजिक व्यवहारों, सहज मानवीय धारणाओं, आस्थाओं, धर्मों और संस्कृतियों में भी देखी जा सकती है। इसी प्रकार खान-पान, रहन-सहन और भाषाई वैविध्य भी इस देश की एक बहुत बड़ी और प्रमुख विशेषता है। जिसे हम भारतीयता कहते हैंख् वह विविधताओं का भावनात्मक संगम है। जिसे हम भारतीय धर्म और भारतीय संस्कृति कहकर गर्व से फूले नहीं समाते, वह सब वस्तुत: विविध धर्मों और संस्कृतियों के समन्वित तत्वों का सारा स्वरूप है और इस विविधता तथा अनेकता में एकता के कारण ही वह सब महान भी है। इस प्रकार सभी स्तरों पर विविधताओं और अनेकताओं के रहते हुए भी जिस चीज ने बहुरंगी मणि-माला के समान इस देश को एक सूत्र में पिरो रखा है, उसका सूक्ष्म-अमूर्त नाम है-भावनात्मक एकता। अर्थात भावना के स्तर पर छोटे बड़े, हर धर्म-जाति के सभी एक हैं।

भारतीय संविधान वस्तुत: भावनात्मक एकता की गारंटी है। व्यवहार के स्तर पर प्रत्येक भारतवासी स्वतंत्र है कि चाहे जिस भी धर्म और संप्रदाय को माने, जिस किसी भी रूप में अपने अल्ला-ईश्वर की उपासना करे, कोई भी भाषा-बोली बोले और पढ़े-लिखे, कुछ भी पहने-ओढ़े तथा खाए-पिए, किसी भी भाग में रहे और रोजी-रोटी कमाए, कहीं कोई निषेध या पाबंदी नहीं। संविधान तक ने इन सब बातों को स्वतंत्रता की गारंटी प्रत्येक जाति-वर्ग के व्यक्ति को प्रदान कर रखी है। पर जहां तक देश और राष्ट्रीयता का प्रश्न है, भारतीयता और उसके सामूहिक हितों का प्रश्न है, भावना के स्तर पर हम अखंड और एक हैं। इस व्यापक भावना या वैविध्यपूर्ण स्वरूप को ही भावनात्मक एकता कहा जाता है। यही भारत की प्राणशक्ति है।

भारत जैसे वैविध्य-संपन्न देश के अस्तित्व की सुरक्षा और स्थायित्व की गांरटी यह भावनात्मक एकता ही है या हो सकती है। इसके अभाव में भारत का कोई जन, कोई धर्म, कोई संप्रदाय, पंथ या वर्ग अपना अस्तित्व नहीं बनाए रख सकता। यह एक निभ्र्रान्त तथ्य या सत्य है। यही भारतीयता की अंतर्वाही सूक्ष्म प्राणधारा और जीवन-शक्ति है। इसी ने आज अनेकविध भीषण संघातों और संकटों में भी इसे जीवित रखा है, आगे भी बनाए रखेगा। पर खेद के साथ स्वीकारना पड़ता है कि इस बुनियादी सत्य को जानते हुए भी कई बार कुछ भ्रमित लोग वास्तविकता से आंखें मूंद निहित स्वार्थों, सत्ता की भूख या बाहरी तत्वों के हत्थे चढ़ कुछ उग्र या अतिवादी किस्म के आचरण करने लगते हैं। ऐसे आचरण देर-सवेर एकत्व भाव का विघटन कर देश और जाति के विघटन का भी कारण बन जाया करता है। इस प्रकार की अवांछित तत्वों से सावधान रह और उन्हें निर्ममता से कुचलकर ही हमारी भावनात्मक एकता सुरक्षित रह सकती है। अपना अस्तित्व निभ्र्रान्त बनाए रखने के लिए यह परामावध्यक भी है।

हमें गर्व है कि हमने महात्मा बुद्ध, कबीर, तुलसी, नानक और गांधी के देश में जन्म लिया है। इन लोगों ने समय के रुख और भविष्य की नाड़ी को पहचानकर ही हमें सब प्रकार के भेद-भावों से ऊपर उठकर सहज मानवीयता का भाव उजागर कर भावना के स्तर पर एक रहने का अमर संदेश दिया था। उस संदेश को किसी भी दशा में हमें भुलाना नहीं है। भुलाना आत्महत्या के समान होगा। अपनी राष्ट्रीय और जातीय अस्मिता को युग-युगों तक जीवित, प्राणवान और प्रवाहमयी बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम अपने उपर्युक्त महापुरुषों के संदेश को याद रख हमेशा भावनात्मक एकता बनाए रखें। दबाव का अन्य कोई उपाय नहीं। महापुरुषों, आदर्शों, मूल्यों की रक्षा भी इसके बने रहने पर ही संभव हो सकती है। ऐसा सभी समझदार लोग मुक्तभाव से मानते हैं। इसी कारण इस प्रकार की एकता की बात बल देकर कहा भी करते हैं।

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