Hindi Essay on “Bharat ki Vartman Pramukh Samasya” , ”भारत की वर्तमान प्रमुख समस्याएँ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
भारत की वर्तमान प्रमुख समस्याएँ
Bharat ki Vartman Pramukh Samasya
एक राष्ट्र को सबल बनने के लिए दूसरे राष्ट्रों से संघर्ष करना पड़ता है। इसके विकास के लिए अनेक समस्याएँ आती हैं। 15 अगस्त, 1947 ई० को जब शिशु (स्वतंत्र भारत) ने जन्म लिया, तभी से अनेक समस्याओं रूपी रोगों ने इसे घेर लिया। इनके समाधान के लिए भारतीय कर्णधारों ने पंचवर्षीय योजनाएँ बनायीं जिन में सात पंचवर्षीय योजनाएँ पूर्ण हो चुकी हैं और आठवीं पंचवर्षीय योजना चल रही है। कुछ समस्याओं का समाधान हो चुका है और कुछ आज भी देश को जर्जर कर रही हैं।
कश्मीर की समस्याः अंग्रेजों की फूट डालो की नीति ने कश्मीर समस्या को हवा दी। फलतः इसके विलय की समस्या को लेकर भारत और पाकिस्तान में आपसी मतभेद पैदा हो गया। इस मतभेद को दूर करने के लिए दोनों राष्ट्रों के नेताओं ने शिमला में एकत्रित होकर आपस में समझौता किया; पर उसके बाद आज भी पाकिस्तान भारत के प्रति द्वेष भावना रखे हुए है। वह सैनिक बल से कश्मीर को हड़पने की योजना बनाता रहता है। इसके कुछ भाग पर उसने अधिकार कर लिया है और शेष को हड़पने का इरादा रखता है। गुटबंदियों के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ भी कश्मीर समस्या का कोई समाधान नहीं खोज सका है। उधर पाकिस्तान कश्मीर में घुसपैठियों के द्वारा आतंक फैलाए हुए है। इन आतंकवादी गतिविधियों पर नियंत्रण पाने के लिए और राज्य का बहुमुखी विकास करने की दृष्टि से सन् 1989 में कश्मीर में पुनः राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। तभी से पाक घुसपैठियों और आतंकवादियों ने कश्मीर में कहर ढा रखा है। आज वहाँ सर्वत्र अशांति व अराजकता फैली हुई है। वहाँ के अल्पसंख्यक हिन्दू अपना सब कुछ छोड़ कर शरणार्थी बन गए हैं। पाकिस्तान निरन्तर कश्मीर की सीमाओं से प्रशिक्षित आतंकवादियों को भारत में प्रवेश करा रहा है और इससे अवैध तस्करी को बढ़ावा मिल रहा है। थोड़े-थोड़े अतंराल के बाद पाकिस्तानी सैनिक भारतीय चौकियों पर गोलाबारी करते रहते हैं और भारतीय सीमा सुरक्षा बल भी उन्हें मुंहतोड़ जवाब देता रहता है। निष्कर्षतः पाकिस्तान की प्रधानमंत्री श्रीमती बेनजीर भुट्टो भी युद्धोन्माद में जी रही हैं। इस संदर्भ में विदेश सचिवों की सातवीं बार की वार्ता भी 3 जनवरी 94 को विफल हो गई है। इस पर भी हमारा देश शांति का पक्षधर है और इस समस्या का समाधान भी शांति से ही करना चाहता है।
राष्ट्रभाषा, भाषावाद, सम्प्रदायवाद और प्रांतवाद की समस्याः सम्पूर्ण राष्ट्र की । भाषा हिन्दी अथवा अंग्रेजी अथवा कोई अन्य भारतीय भाषा हो, इस प्रश्न को लेकर देश । में लोगों का आपसी मनमुटाव बहुत दिनों तक बना रहा और अब राष्ट्रभाषा हिन्दी बन . जाने पर भी कभी-कभी अन्य भाषा-भाषी क्षेत्र इस का विरोध कर बैठते हैं। आज भाषावाद राजनीति का चोला भाषा को संकीर्णता की दृष्टि से न देख कर उसे समाज की अभिव्यक्ति मान कर उसका सम्मान करें। इससे सभी क्षेत्रीय भाषाओं का एक समान सम्मान किया जा सकता है। इसी तरह जातीयता और साम्प्रदायिकता आदि भी कुछ ऐसी ही संकीर्ण भावनाएँ हैं, जो राष्ट्र की प्रगति में बाधक सिद्ध होती हैं । जातीय प्रथा के कारण एक जाति दूसरी जाति के प्रति घृणा और देष की भावना रखती है। इस से देश में साम्प्रदायिक भावना की प्रबलता पडती है। इस से धार्मिक भेदभाव बढ़ता है। इस जातीयता का ही विशाल रूप आज हमें प्रान्तीयता की भावना में परिवर्तित हुआ प्राप्त होता है। प्रान्तीयता के पचड़े में पड कर पंजाबी-पंजाबी का, मद्रासी-मद्रासी का और गुजराती-गुजराती का ही विकास चाहता है। इस से आपस में प्रान्तों में कलह पैदा होती है, किन्तु हमें संकीर्णता त्याग कर किसी महापुरुष की भावनाओं का सत्कार करना चाहिए “हम सब भारतीय हैं, एक ही देश के निवासी हैं, एक ही धरती के अन्न-जल से हमारा पोषण होता है।
अस्पृश्यता की समस्याः यह हमारे देश की प्रमुख समस्या है। यह हिन्दू समाज का सब से बड़ा कलंक है। पुरातन युग में धर्म की दुहाई देकर धर्म के ठेकेदारों ने समाज के एक आवश्यक अंग को समाज से दूर कर, इनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया। इन्हें शूद्र कह कर छूत-छात की प्रथा को जन्म दिया। संतोष का विषय है कि वर्तमान भारत में इस ओर ध्यान दिया गया है। भारतीय संविधान ने हरिजनों को समानता का अधिकार प्रदान किया है। इनके लिए सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत स्थान सुरक्षित किए हैं। इन्हें छात्रवृत्तियों भी दी जा रही हैं। अब हरिजनों की स्थिति में धीरे-धीरे काफी सुधार आ रहा है। इन की प्रगति के लिए मंडल आयोग की सिफारिशें मान ली गई हैं।
जनसंख्या एवं बेकारी की समस्याः जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में सरा स्थान है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बढ़ते-बढते अब 90 करोड़ से अधिक जनसंख्या पहुँच गई है. प्रो० माल्थस के मतानुसार “मानव में संतान पैदा करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है. इसी इच्छा और प्रवृति के कारण जनसंख्या की वृद्धि होती है। हमारे देश में इस जनसँख्या की वृद्धि के अनुपात से उद्योग-धंधों का विकास नहीं हो पा रहा है। अतः देश में बेकारी ने जन्म लिया है। आज भूमि की कमी से कृषक और पदों के अभाव से शिक्षित लोग बेकार बैठे हैं। खाली मस्तिष्क शैतान का घर होता है। आज बेकारी के कारन वाही हो रहा है जो स्वामी रामतीर्थ ने कहा था “जब किसी देश में जनसंख्या इतनी कि आवश्यकतानुसार सभी को सामग्री प्राप्त नहीं होती है, तब देश में भ्रष्टाचार का जन्म होता है. भारत सरकार जनसँख्या वृद्धि को रोकने और बेकारी की समस्या को हल करने का प्रयास कर रही है.
स्त्री शिक्षा की समस्याः समाज रूपी गाड़ी को चलाने के लिए नर और नारी दो पहिए है। एक के अभाव और कमजोर होने पर समाज का संतुलन बिगड़ सकता है। अस्तु, समाज में पुरुष के समान स्त्री का भी शिक्षित, समर्थ और योग्य होना परमावश्यक है। पुरातन युग में समुचित शिक्षा के कारण स्त्रियाँ विदुषी हुआ करती थीं। मध्य युग में मुस्लिम आक्रमण काल में पर्दा प्रथा का जन्म हुआ। फलतः स्त्रियाँ विवेकहीन और अंधविश्वासी बन गई। अब भारत सरकार इस ओर विशेष ध्यान दे रही है। हमारे संविधान में स्त्रियों की समस्या सुलझाने के लिए विभिन्न नियमों का समावेश किया गया है। उन्हें पुरुषों के समान स्वतंत्रता दी गई। उनके लिए किसी प्रकार के काम पर कोई रोक नहीं रखी गई है। काम और वेतन की समानता के विषय में संविधान में स्पष्ट निर्देश है।
बाल-विवाह एवं दहेज प्रथाः पुरातन युग में बाल-विवाह का प्रचलन था। आज भी अशिक्षित समाज में बहुत ही छोटी अवस्था में विवाहों का प्रचलन है। इसमें वर-वधू दोनों ही अपना हित नहीं सोच पाते हैं और बड़े होने पर किसी न किसी कारणवश एक-दूसरे का परित्याग कर देते हैं। आयु पर भी बाल-विवाह का प्रभाव पड़ता है। आजकल इन विवाहों में पर्याप्त धन की माँग वर पक्ष की ओर से की जाती है जिससे समाज लड़की होने को बड़ा ही बुरा समझता है। मध्ययुग में तो कन्या का जन्म अभिशाप ही माना जाता था और कुछ क्षेत्रों में जन्म लेते ही उसे मार दिया जाता था। अब इस दहेज प्रथा का उन्मूलन करना चाहिए, क्योंकि दहेज लेकर वर का पिता केवल शान शौकत में ही इसका अपव्यय करता है। इसके लिए दहेज लेने व देने वाले को कानून के अन्तर्गत दण्डित किया जाना चाहिए। इसके अलावा बाल-विवाह व दहेज प्रथा के समापन के लिए शिक्षा को और अधिक प्रभावी बनाना चाहिए।
मूल्य वृद्धि एवं भ्रष्टाचार की समस्याः आज कमरतोड़ महँगाई अपना प्रभाव सम्पूर्ण समाज पर जमाए हुए है। आज का मानव अपनी आय से भरपेट भोजन नहीं जुटा पाता है। फलतः वह भ्रष्ट साधनों को अपनाता है। रिश्वत, काला बाजार, सिफारिश और अनुचित साधनों की प्रवृत्ति, सभी इस भ्रष्टाचार के अनेक रूप हैं। बड़े-बड़े नेता, मंत्री, अधिकारी, व्यापारी और सरकारी कर्मचारी सभी इससे प्रभावित हैं। आजकल भ्रष्टाचारी की प्रवृत्ति के कारण तस्करी की नई-नई योजनाएँ बन रही हैं। भारत सरकार इन्हें रोकने के लिए काफी प्रयास कर रही है। हम भारतीय भी मिल कर इन समस्याओं का निराकरण करें और देश के फिर से एक बार सोने की चिड़िया बना दें।
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