Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay on “Apne liye jiye to kya jiye” , ”अपने लिए जिए तो क्या जिए” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Hindi Essay on “Apne liye jiye to kya jiye” , ”अपने लिए जिए तो क्या जिए” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

अपने लिए जिए तो क्या जिए

Apne liye jiye to kya jiye

 

                निःस्वार्थ सेवा का अर्थ है- बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की सेवा करना, इसी को परोपकार कहा जाता है। ’परोपकार’ शब्द की रचना ’पर’ ़ ’उपकार’ से हुई है। ’पर’ का अर्थ है दूसरे तथा ’उपकार’ का अर्थ है भलाई। अतः ’परोपकार’ का अर्थ है – दूसरों की भलाई। परोपकार में स्वार्थ भावना नहीं होती है। दूसरों की निःस्वार्थ सेवा ही परोपकारा अथवा परमार्थ की श्रेणी में आती है। स्वार्थनिहित कार्य अथवा सहयोग को परोपकार नहीं कहा जा सकता। प्रकृति के कण-कण में परोपकार भावना व्याप्त है। सूर्य, चंद्र तथा वायु निःस्वार्थ भावना से संसार को सेवा मंे सतत् हैं। धरती, नदियाँ, समुंद्र तथा वृक्ष क्या कोई शुल्क लेते है? प्रकृति-जनित परोपकार को स्पष्ट करते हुए भतंृहरि ने लिखा-

                                ’’पिबन्ति नद्यः स्वमेव नाभ्यः

                                स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।

                                नादन्ति शस्यं खलु वारि वाहाः

                                परोपकार सतां विभूतयः।’’

                नदियाँ अपना जल कभी नहीं पीती यद्यपि अनंत जलराशि समेट वे सारा जीवन अनवरत प्रवाहित होती हैं। वृक्ष अपने फल स्वंय नहीं खाते। आंधी और तुफान सहकर भी वे दूसरों को आश्रय देते हैं। बादल युग-युगान्तर से जल लाकर पृथ्वी के अंचल का सिंचन करते हैं परन्तु प्रतिदान अथवा प्रत्युपकर में कभी कुछ नहीं मांगते। प्रकृति परहित के लिए निंरतर अपना सर्वस्व अर्पित करती रहती है। अन्न के रूप में पृथ्वी अपने हदय का रस निचोड कर मानव की सुधा पूर्ति हेतु प्रस्तुत करती है परन्तु कभी फल नहीं चाहा। गोस्वामी जी कहते हैं-

                                ’’तुलसी संत, सु अंब तरू, फलहिं फलहिं पर होत।

                                इतते वे पाहन हनैं उतते वे फल देत ’’

                रहीम जी भी सज्जन व्यक्ति के जन्म का उद्देश्य परोपकार मानते हैं-                   

                                ’’ वृच्छ कबहु न फल भखै, नदी न संचे नीर।

                                परामारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।’’

प्रकृति की इस परहित-भावना को व्यक्त करते हुए मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा-

                                ’’निज हेतु बरसता नहीं व्योम से पानी।

                                हम हों समष्टि के लिए व्यष्टि बलिदानी।’’

                मनुष्य सांसरिक जीवो में इसीलिए श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि उसमें परोपकार की भावना होती है अन्यथा भोजन, विश्राम तथा मैथुन-क्रिया तो मनुष्य और पशु समान रूप से करते हैं। पशु पराहित की भावना से शून्य होते हैं। पशुओं के सभी कार्य केवल अपने लिए होते हैं और मनुष्य और पशु में यही भिन्नता है। गुप्तजी इस अंतर को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं-

                                ’’यही पशु प्रवृति है कि आप आप ही चरे।

                                मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे।’’

                भारतीय संस्कृति मानव मात्र की कल्याण भावना से ओतप्रोत है। ’बहुजन हिताय तथा बहुजन सुखाय’ भारतीय संस्कृति के आधार रहे हैं तथा विश्व कल्याण और उसकी भावना इस प्रकार व्यक्त की गई है-

                                ’’सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः,

                                सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा काश्चित दुखः भाग भवेत।।’’

                परोपकार व्यक्ति को दूसरों के आशीर्वाद तथा शुभ संदेश अनायास ही प्राप्त होते हैं जिससे जीवन में सुख, समृद्वि, चेतना तथा स्फूर्ति का संचार होता है। परोपकारी का परिचय क्षेत्र बढ़ता है। उसे समाज में यश, आदर, सम्मान, प्रतिष्ठा मिलती है। उसके व्यापार तथा कारोबार पर ईमानदारी की छाप लगती है जो उसके प्रचार तथा प्रसार में सहायक है। परोपकारी व्यक्ति में सदाचारी आदि गुण अनायास ही आ जाते हैं। वह इतिहास-पुरूष बन जाता हैं।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

commentscomments

  1. Anant Shukla says:

    Thanks alot sir

  2. Tausif Alam says:

    Very very nice

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *