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Hindi Essay on “Apna Haath Jagannath” , ”अपना हाथ जगन्नाथ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

अपना हाथ जगन्नाथ

Apna Haath Jagannath

Best 3 Hindi Essay on “Apna Haath Jagannath”

निबन्ध नंबर:- 01

यह एक बड़ी प्रसिद्ध और भावपूर्ण कहावत है-अपना हाथ जगन्नाथ-अर्थात व्यक्ति का अपना हाथ जगत के पालन करने वाले सर्वशक्तिमान भगवान के समान हुआ करता है। इसका अर्थ हुआ कि व्यक्ति जिस प्रकार भगवान पर भरोसा करता है, उसी प्रकार उसे अपने हाथ पर भी विश्वास करना चाहिए। दूसरे शब्दों में जैसे भगवान पर विश्वास करने वाला व्यक्ति जो चाहे कर या पा सकता है, उसी प्रकार अपने हाथों या अपनी शक्तियों पर भरोसा रखकर परिश्रम करने वाले व्यक्ति के लिए भी संसार में कुछ भी करना या पाना कठिन और असंभव नहीं हुआ करता। स्वावलंबी व्यक्ति प्रयत्न करके सभी कुछ सहज ही पा सकता है।

इस प्रकार यह कहावत या लोकोक्ति वास्तव में स्वावलंबन की शिक्षा देने वाली है। वास्तव में मनुष्य में अनंत शक्ति छिपी रहती है। उसको जगाककर व्यक्ति चाहे जो कर सकता है। संसार में ओर किसी पर किया गया भरोसा गलत भी हो सकता है पर अपनी शक्ति पर हर व्यक्ति पूर्ण विश्वास कर सकता है। अत: मनुष्य को हमेशा हर काम अपने हाथों से करने की आदत डालनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति संसार में न तो कभी धोखा ही खाया करता है और न ही मार ही। कबीर जी ने भी अपने व्यापक अनुभव के आधार पर कहा है।

‘करू बहियां बल आपनी, छांड़ परायी आस।

जिसके आंगन है नदी, सो मत मरत पियास।’

जैसे जिसके आंगन में नदी बहती हो, वह व्यक्ति कभी प्याा नहीं मर सकता। उसी प्रकार अपने हाथों से काम करने वाला, अपने ही दम-खम पर जीने वाला मनुष्य कभी भूखा-प्यासा नहीं मरा करता। आवश्यकता इस बात की हुआ करती है कि प्रत्येग व्यक्ति अपने भीतर झांककर देखे। देखकर अपनी कमियां दूर करे। सोई हुई कार्य-शक्ति को जगा ले। बस, फिर सफलता ही सफलता है। जब किसी देश का प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर इस प्रकार का आत्मविश्वास का भाव जगा लिया करता है, तब उस देश औरजाति को भी आगे बढऩे, पूर्ण सफलता पाने से कोई रोक नहीं सकता। यह एक अनुभव सिद्ध बात है ओर यही इस कहावत के द्वारा कही भी गई है। इस पर चलने की प्रेरणा इसमें छिपी है।

व्यक्तियों और राष्ट्रों दोनेां के लिए स्वावलंबन जरूरी हुआ करता है। अपने हाथों की शक्ति को पहचानकर कभी जापानियों ने कहा था कि अपने हाथों की उन उंगलियों के सहारे एक दिन हम सारे संसार को जीत लेंगे। दूसरे विश्व-युद्ध में बुरी तरह क्षतिग्रस्त होकर भी आज जापान जो अमेरिका जैसे उन्नत देश का मुकाबला कर पाने में समर्थ हो सका है, उसका कारण स्वावलंबन का यह दृढ़ भाव ही है। हम भी उससे शिक्षा लेकर अपने हाथों पर विश्वास कर, उसकी शक्तियां जगाकर, व्यक्ति और राष्ट्र के स्तर पर वैसे ही उन्नत हो सकते हैं। संसार को बता सकते हैं कि वास्तव में ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ ही हुआ करता है। आवश्यकता है अपने भीतर झांक अपनी शक्तियां जगाने ओर इनके सुदृढ़ उचित प्रयोग की। तब सफलता-ही-सफलता है बस! असफलता कभी पास तक नहीं फटक पाती तब।

निबन्ध नंबर :- 02

अपना हाथ जगन्नाथ

Apna Haath Jagannath

हाथ जगन्नाथ अर्थात हर व्यक्ति अपना भगवान स्वयं हुआ करता या बन वास्तव में इस लोकोक्ति या कहावत का मल अभिप्राय आदमी के मन में और परिश्रम का महत्त्व उजागर करना है। संसार में आदमी का हित-अहित या हानि-लाभ आदि सब कुछ उसके अपने हाथ में होता है, यह स्पष्ट करना और समझाना कहावत का अभिप्राय एवं प्रयोजन है।

यह संसार उनका नहीं कि जो केवल हाथ-पर-हाथ रख कर बैठे रहते हैं। संसार का प्रत्येक काम कर पाने में वही सफल हुआ करते हैं कि जिन्हें अपने हाथों पर, हाथों की उँगलियों की चंचलता, शक्ति और कार्य क्षमता पर विश्वास हुआ करता है। संसार में सफल हुए प्रत्येक व्यक्ति का इतिहास इस बात का गवाह है। अपना हाथ और उस पर विश्वास वास्तव में आदमी के उद्यम और पुरुषार्थ का प्रतीक है। ऐसा विश्वास लेक चलने वाला व्यक्ति भाग्य के माथे में भी कील ठोकने में जरूर सफल हो जाया करता है। सन्त कबीर ने भी इस तथ्य की ओर संकेत किया है:

‘करू बाहियाँ बल आपणी, छाँड परायी आस ।

जिन के आँगन है नदी, सो कत मरत पियास।

आँगन में नदी बह रही हो और आदमी प्यासा मरे, है न अचरज की बात। तो वह नदी की धारा वास्तव में व्यक्ति के अपने हाथों के कार्य करने की शक्ति ही है। इस शक्ति को पहचान कर जगा लेने वाला व्यक्ति कभी भी भाग्य भरोसे बैठ कर असफलता का रोना नहीं रोया करता, पश्चात्ताप नहीं किया करता। वह समय और परिस्थितियों को अपनी इच्छाओं के साँचे और हाथों के ढाँचे में ढाल कर हर प्रकार की सफलता प्राप्त कर लिया करता है। एक प्रसिद्ध कहावत है कि शेर के समान पुरुषार्थी व्यक्ति को ही लक्ष्मी अपनाया करती है। सब प्रकार के पुरुषार्थ के स्रोत और आधार व्यक्ति के अपने हाथ ही हुआ करते हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं।

आपने कर्मशील व्यक्तियों, पुरुषार्थियों को देखा होगा, कोई भी प्रश्न आ खड़ा होने पर वे लोग बार-बार अपने हाथों की तरफ ही देखा करते हैं। ऐसा करके मानो वे हाथों की शक्ति को जगाया या आवाहन किया करते हैं कि यह काम करके ही दम लेना है। प्रश्न का उत्तर खोजना ही है। ऐसा न करने वालों को ही हाथ मल-मलकर पछताना पड़ता है सो आप यदि हाथ मल कर पछताना नहीं चाहते, अपने प्रत्येक कार्य में सफलता और सिद्धि चाहते हैं, तो मात्र इस मंत्र को याद रखते हुए परिश्रम पर जुट जाइये कि बस, अपना हाथ जगन्नाथ।

निबन्ध नंबर :- 03

अपना हाथ जगन्नाथ

Apna Haath Jagannath

अथवा

जीवन में श्रम का महत्त्व

Jeevan mein Shram ka Mahatva

मनुष्य का मुख्य बल क्या है ? शारीरिक बल उसका प्रधान बल नहीं कहा जा सकता क्योंकि बाहुबल की अपेक्षा बुद्धिबल की श्रेष्ठता सर्वविदित है। मक्ति से जो हो सकता है वह शारीरिक शक्ति के प्रयोग से नहीं हो सकता। अंग्रेज़ी में एक कहावत है- Thoughts are mightier than strength of hand. कर्म भूमि में कर्म करने से ही सफलता मिल सकती है। कर्म ही मनुष्य का जीवन धर्म है। उन्नति की कामना करने वाले व्यक्ति को किसी न किसी रचनात्मक कर्म में लगे रहना चाहिए । बुद्धिमान को भी सिद्ध हस्त और श्रम जीवी होना चाहिए । कोई कैसा भी भाग्यवान और उच्च विचारों का विद्वान क्यों न हो यदि वह कर्मशील नहीं है तो वह किसी काम का नहीं है। काम से ही नाम होता है। परिश्रम से ही सारे काम सिद्ध होते हैं। कर्मवीर के लिए कोई भी ऐसा कार्य नहीं जो वह न कर सके ।

जीवन में आने वाली अनेक कठिनाइयों का मनुष्य तभी सामना कर सकता है यदि वह उद्यमी है, परिश्रमी है। यदि वह चाहे तो बडे बडे पर्वतों को काट कर सडकें निकाल सकता है, यदि वह चाहे तो बडे-बडे जंगलों को काट कर अपना मार्ग बना सकता है और कांटों से भरे हुए मार्ग को साफ़ करके अपना रास्ता बना सकता है। परिश्रमी मनुष्य के लिए कोई भी काम असम्भव नहीं होता ।

परिश्रमी व्यक्ति का सबसे बड़ा गुण यह है कि वह कभी किसी पर निर्भर नहीं करता बल्कि अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर आगे ही आगे बढ़ता रहता है। सफलता भी उसी व्यक्ति को प्राप्त होती है जो परिश्रम करता है। जीवन में असफल होना कोई मुश्किल बात नहीं है परन्तु सफलता प्राप्ति के लिए परिश्रम की आवश्यकता है। किसी विद्वान का कथन हैFailure that is easy but success is always hard. फिसलना सहज है परन्तु चढ़ाई चढ़ने के लिए मेहनत की आवश्यकता है। वही विद्यार्थी प्रथम श्रेणी में सफल होते हैं जिन्होंने परिश्रम किया होता है। सन्त कबीर ने ठीक ही कहा है-जिन ढूंढा तिन पाइया, गहरे पानि पैठ भाव जिन्होंने भी इस संसार से कुछ प्राप्त किया है उन्होंने गहरे पानी में डुबकी लगाई है, तभी तो उन्हें मोती प्राप्त हुए है। परन्तु जो डरते हुए किनारे पर ही बैठे रहते हैं उनके हाथ में तो फिर रेत के सिवाय कुछ हाथ नहीं आता ।

उद्यमी एवं परिश्रमी व्यक्ति के पास ही लक्ष्मी निवास करती है। ईश्वर और भाग्य पर वही व्यक्ति भरोसा करते हैं जो परिश्रम नहीं करना चाहते या आलसी और निकम्मे है। शायद तुलसीदास जी ने उनके लिए ठीक ही कहा है-देव दैव आलसी पूकारा । वे लोग शायद यह भूल जाते हैं कि ईश्वर भी उनकी ही सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करते हैं। जो व्यक्ति जितने कष्टों को अधिक से अधिक झेलता है, उतना ही उसके जीवन में अधिक निखार आता है जैसे सोना जब तक आग की भट्ठी में नहीं तपता तब तक उसमें चमक नहीं आती ।

परिश्रम करने का मनुष्य को सबसे बड़ा लाभ यह है कि परिश्रम से मनुष्य का आत्मिक सन्तुष्टि प्राप्त होती है, उसका हृदय गंगा जल की तरह निर्मल एवं पवित्र हो जाता है, उसे सच्चे ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। परिश्रमी व्यक्ति को कसा वस्तु का अभाव नहीं होता, वह किसी के सामने हाथ फैलाकर गिड़गिड़ाता नहीं। परिश्रम का एक और लाभ यह है कि परिश्रम से मनुष्य का स्वास्थ्य ठीक रहता है। जो लोग दिन रात मेहनत करते हैं, वे कभी बीमार नहीं होते, उन्हें कभी कोई रोग नहीं सताता । परिश्रमी व्यक्ति में एक नई शक्ति, नई स्फूर्ति पैदा होती है। वह सदा चिन्ता-मुक्त और तनावमुक्त रहता है। इसके विपरीत आलसी व्यक्ति क्रोधी और चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं।

महापुरुषों ने अपने जीवन में परिश्रम के महत्त्व को समझा था। कालिदास. शेक्सपीयर, टैगोर, प्रेमचन्द आदि परिश्रम के बल पर ही अमर हो गए । भारत के लाल-लाल बहादुर शास्त्री एक साधारण किसान परिवार से सम्बन्ध रखते हुए भी अपनी निष्ठा और परिश्रम से प्रधानमन्त्री के उच्च पद पर आसीन हुए।

यदि हम अपनी और अपने देश की उन्नति चाहते हैं तो हमें परिश्रमी बनना होगा । परन्तु आजकल देखने में यह आया है कि लोग परिश्रम को भूलकर पक्की-पकाई खाना चाहते हैं और यदि हम इस स्थिति में रहेंगे तो जो कुछ हमारे पास है, वह भी एक दिन खो बैठेंगे । हमारा और हमारे देश का कल्याण तभी हो सकता है यदि हम अपने जीवन में परिश्रम के महत्त्व को जान लें और समझ लेंश्रम ही सों सब मिलत है, विनुश्रम मिलै काहि अर्थात् इस संसार में जो कुछ भी प्राप्त होता है,वह श्रम से ही मिलता है, बिना परिश्रम कुछ नहीं प्राप्त होता ।

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