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Hindi Essay on “Anushasan , ”अनुशासन” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

अनुशासन

Anushasan

निबंध नंबर : 01

 

प्रस्तावना- अनुशासन से अभिप्राय है कि नियमों का पालन करना, अर्थात् जो राष्ट्र या समाज जितना अधिक अनुशासित होगा, वह उतना ही अधिक उन्नतिशील एवं धन-धान्य से परिपूर्ण होगा। अनुशासन से तात्पर्य किसी मनुष्य द्वारा अपने से श्रेष्ठ और उच्च पदस्थ व्यक्ति अथवा अधिकारी के आदेश का पालन करने से होता है अर्थात् माता-पिता, गुरूजनों, सेनापतियों तथा अधिकारियों के आदेश मानना ही अनुशासन है।

विद्यालयों द्वारा अनुशासन सम्भव- अनुशासन की शिक्षा के लिए आज का सबसे उपयोगी स्थान विद्यालय है। बच्चों को विद्यालयों मंे बचपन से ही अनुशासन की शिक्षा दी जाती है।’

पर आज प्रायः विद्यालयों में छात्रों का उद्दण्डता दिखाना, शिक्षकों का अपमान करना, परीक्षा में नकल करना और कराना, बसों तथा रेलों मंे बिना टिकट यात्रा करना यहीं बातें देश के लिए अनुशासनहीनता की एक समस्या बन गई है।

उपसंहार- अनुशासन एक ऐसा गुण है जिसकी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यकता पड़ती है। अनुशासनहीन व्यक्ति का जीवन कभी भी सफल नहीं होता जबकि अनुशासित व्यक्ति का रूब ओर सम्मान होता है और व जीवन में सफलता प्राप्त करता है। जिस देश के नागरिक जितने ही अनुशासित होते हैं, वह देश उतना ही प्रगति करता है। अनुशासन क सूत्र हैं- परिश्रम और ईमानदारी। पूरेे राष्ट्र स्तर पर अनुशासन का सूत्र है-एकता। जिन दिनों हमारा देश छोटे-छोटे राज्यों में बंटा था, राज्यों को चलाने वाले राजा हुआ करते थे। उस समय वे एकता में न बंधकर आपस में लड़ा करते थे। परिणामस्वरूप विदेशी आक्रमण होते रहे। देश गुलाम होता रहा। जब हम सभी देशवासी अनुशासित होकर एक स्वर में पुकार उठे-‘अंग्रेजों भारत छोड़ो।‘ तो गुलामी की बेड़ियों से हम आजाद हो गये। आज हमें गर्व है कि हम आजाद देश के नागरिक हैं और हमारा देश विश्व में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र है।

निबंध नंबर : 02 

अनुशासन

Discipline

                शासन के आगे ’अनु’ उपसर्ग लग जाने से अनुशासन शब्द बनता है। अनु का शब्द है-पीछे-पीछे। इस प्रकार अनुशासन का शाब्दिक का अर्थ हुआ शासन के पीछे-पीछे चलना। यहां शासन का मतलब शासकीय कानून और सामाजिक मान्यताओं से है। अतः प्रशासनिक कानून और सामाजिक मान्यताओं का पालन ही अनुशासन है। परिवार से लेकर राष्ट्र तक को व्यवस्थित रखने के लिए अनुशासन अनिवार्य है। जिस परिवार में पुत्र पिता के अनुशासन में न रहे, पुत्री माता के अनुशासन में न रहे तो वह परिवार अव्यवस्थित हो जाएगा। उसी प्रकार सरकारी कार्यालयों में अगर कर्मचारी पदाधिकारी के अनुशासन में न रहें, तो कार्यालय में अव्यवस्था फैल जाएगी। अध्यापक को प्रधानाध्यापक के, प्राध्यापक का आचार्य के एवं छात्र को शिक्षक के अनुशासन में रहना पड़ता है। सैनिक तो बिना अनुशासन  के एक पग भी नहीं चल सकते अर्थात अनुशासन मानव-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। इसीलिए महात्मा गांधी ने कहा था, ’’अनुशासन के बिना न तो परिवार चल सकता है, न संस्था या राष्ट्र ही।

                प्रत्येक व्यक्ति में बाल्यकाल से ही अनुशासन का बीज डालने की चेष्टा की जाती है। मां के प्यार, पिता की डांट में अनुशासित जीवन व्यतीत करते हुए बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होता है। बच्चों में डाला गया अनुशासन का यह बीज अंकुरित होने लगता है। बच्चे जब विद्याध्ययन के लिए जाते हैं, तब विद्यालय में भी उन्हें अनुशासन का पाठ मिलता है। विद्यालय  में विद्यार्थी शब्द का ज्ञान के साथ-साथ विद्यालय के नियमानुसार संयमित जीवन व्यतीत करते हैं। गुरूजनों के उन्कृष्ट आचरण को समीप से देखकर उसका अनुकरण करते हैं। इस प्रकार प्राथमिक विद्याालय से महाविद्यालय तक की अवधि में विद्यार्थियों मंे अनुशासन का वह अंकुरित बीज बड़ा होकर वृक्ष का रूप ले लेता है। ऐसे ही छात्र जब व्यावहारिक जीवन में पदाधिकारी बनते हैं, तब उनके मातहत कार्य करने वाले सैंकड़ों कर्मचारी अनुशासित रहते हैं। ऐसे ही छात्र जब सेना के उच्च अधिकारी बनते हैं, तब सैकड़ों सैनिक उनके एक इशारे पर मर-मिटने को तैयार रहते हैं। ऐसे ही छात्र जब देश का नेतृत्व ग्रहण करते हैं, तब उनके पीछे सम्पूर्ण राष्ट्र चल पड़़ता है।

                लेकिन आज यह गम्भीर चिन्ता का विषय है कि छात्र जो राष्ट्र के भावी कर्णधार हैं, उनमें अनुशासनहीनता व्याप्त है। अनुशासनहीनता और आज का विद्यार्थी दोनों एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं। छोटी-सी घटना को लेकर सरकारी बसों एवं कार्यालयों को जलाना, दुकानों को लूटना एक सामान्य बात हो गई है। परीक्षा की मर्यादाओं का हनन करना तो आज के विद्यार्थी जन्मसिद्ध अधिकार ही समझते हैं। परीक्षा में नकल नहीं देने पर गुरूजनों को अपमानित करना तो उनके लिए आम बात है। आज के छात्र शिक्षक की छड़ी से नहीं डरते हैं, अपितु शिक्षक ही छात्रों के छुरे से डरते हैं। इन सभी कुरीतियों के मूल में अनुशासनहीनता ही है। विद्यार्थियों में व्याप्त इस अनुशासनहीनता के अनेक कारणों मंे वर्तमान राजनीतिक प्रदुषण सर्वाधिक जिम्मेदार है। आज के राजनीतिज्ञ अपने क्षुद्र स्वार्थो की पूर्ति हेतु विद्यार्थियों को अपना हथकण्डा बनाते है। इसी का असर है कि आज समाज में सर्वत्र अराजकता व्याप्त है। अतः राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनुशासन का पालन जरूरी है। चाहे वह व्यापारी हो या मजदूर, शिक्षक हो या छात्र, पदाधिकारी हो या कर्मचारी, नेता हों या फौजी। तभी राष्ट्र का सर्वांगीण विकास सम्भव है। वस्तुतः, अनुशासन ही संगठन की कुंजी और प्रगति की सीढ़ी है।

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