Hindi Essay on “Aids” , ”एड्स ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
एड्स
AIDS
एड्स एक जानलेवा बीमारी है जो धीरे-धीरे समूचे विश्व को अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है। दुनियाभर के चिकित्सक व वैज्ञानिक वर्षों से इसकी रोकथाम के लिए औषधि की खोज में लगे हैं परंतु अभी तक उन्हें सफलता नहीं मिल सकी है। पूरे विश्व में एड्स को लेकर तरह-तरह की चर्चाएँ हैं सभी बेसब्री से उस दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब वैज्ञानिक इसकी औषधि की खोज में सफल हो सकेंगे।
एड्स का पूरा नाम ऐक्वायर्ड इन्यूनों डेफिशिएंसी सिन्ड्रोम है। वैज्ञानिक सन् 1977 ई0 में ही इसके प्रति सचेत हो गए थे जब विश्व भर के 200 से भी अधिक वैज्ञानिकों का एक सम्मलेन अमेरिका में हुआ था। परंतु वास्तिवक रूप में उसे मान्यता सन् 1988 में मिली। तभी से 1 दिसंबर को हम एड्स विरोधी दिवस के रूप में जानते हैं।
वे सभी व्यक्ति जो एड्स से ग्रसित हैं उनमें एच0आई0वी0 वायरस अर्थात विषाणु पाए जाते हैं। आज विश्वभर मंे एड्स से प्रभावित लोगों की संख्या चार करोड़ से भी ऊपर पहुँच गई है। अकेले दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशिया में ही लगभग एक करोड़ लोग एच0आई0वी0 से संक्रमित हैं। अकेले थाईलैंड में ही हर वर्ष लगभग 3 से 4 हजार लोग एड्स के कारण काल का ग्रास बन रहे हैं। अधिक गहन अवलोकन करें तो हम पाते हैं कि विश्व भर मंे प्रति मिनट लगभग 25 लोग एड्स के कारण मरते हैं।
एड्स प्रमुखतः निम्नलिखित कारणों से फैलता है –
1. किसी स्त्री या पुरूष द्वारा एच0आई0वी0 संक्रमित स्त्री या पुरूष के साथ संभोग से।
2. दूषित सूई के प्रयोग से।
3. दूषित रक्त संचरण से।
4. एच0आई0वी0 संक्रमित महिला के गर्भ से।
उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त किसी भी अन्य कारण से एड्स नहीं फैलता है। जो व्यक्ति एड्स से पीड़ित हो गए हैं उनके अंदर धीरे-धीरे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त होती चली जाती है। एड्स हाथ मिलाने अथवा छूने से नहीं फैलता है। एड्स से ग्रसित लोग हमारी तरह सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते है हैं। अतः हमें उनके प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
भारत में भी रोग अपने पैर जमा चुका है। हम सब की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि हम पूरी सावधानी बरतें तथा इसके प्रति सभी को जागरूक बनाने का प्रयास करें। भारत सरकार भी इसे काफी प्रमुखता दे रही है। दूरदर्शन, समाचार-पत्रों तथा अन्य संचार माध्यमों के द्वारा एक साथ अभियान छेड़ा गया है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसके बारे में सही जानकारी प्राप्त कर सकें। जगह-जगह एड्स सलाहाकर केंद्र स्थापित किए गए हैं जहाँ से लोग अपने प्रश्नों का उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। अस्पतालों में केवल डिस्पोजेबल सूई का प्रयोग किया जा रहा है। एड्स का फैलाव चूँकि मुख्य रूप से महानगरीय संस्कृति के कारण अधिक हो रहा है, अतः महानगरों में स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। देह-व्यापार के कंेद्रों पर जाकर काम करना, वहाँ चेतना फैलाना हमारे समाज के उत्थान के लिए तथा इस रोग से बचाव के लिए अपरिहार्य बन गया है।
आशा है कि शीघ्र ही वैज्ञानिक इस जानलेवा बीमारी का निदान ढूँढ़ लेगें जिससे जल्द ही विश्व को एड्स मुक्त किया जा सकेगा। हाल ही में भारत की कुछ कंपनियों ने एड्स की कुछ ऐसी दवाईयाँ विकसित की हैं जिनसे रोगियांे की पीड़ा काफी कम हो सकती है। भारतीय कंपनियांे द्वारा निर्मित दवाईयाँ सस्ती और कारगर भी हैं जिन्हें विश्व भर में मान्यता मिल रही है। कुछ भारतीय औषधियों की इसी कारण विश्व में माँग बढ़ती जा रही है। परंतु इस क्षेत्र में अभी बहुत अनुसंधान की आवश्यकता है।