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Hindi Essay, Moral Story “Jaisa kare vaisa pave, Poot-bhatar ke aage aave” “जैसा करे वैसा पावे, पूत-भतार के आगे आवे” Story on Hindi Kahavat

जैसा करे वैसा पावे, पूत-भतार के आगे आवे

Jaisa kare vaisa pave, Poot-bhatar ke aage aave

 

एक बुढ़िया ने सोचा था कि जब मेरी बहू आएगी तो कुछ काम नहीं करना पड़ेगा। बेटा-बहू, दोनों सेवा करेंगे। पति तो युवावस्था में ही खत्म हो गया था। फिर सोचा, मैं दादी बनूंगी और घर स्वर्ग बन जाएगा।

बुढ़िया के लड़के की शादी हुई, दादी भी बनी, लेकिन उसका सोचा हुआ असली सपना साकार नहीं हुआ। बुढ़िया का लड़का सवेरे-सवेरे काम पर चला जाता था और पोता स्कूल चला जाता था। उसके बाद बहू बुढ़िया के साथ मनमाना व्यवहार करती। उससे जूठे बरतन मंजवाती। पूरे घर में पोंछा लगवाती। अब उसे फूटी थाली में भोजन दिया जाता था। जब कुछ दिन बहू ने अपने पति और बच्चे के सामने बुढ़िया को फूटी थाली में भोजन दिया, तो पति ने विरोध किया। उससे कहा-सुनी हुई। अब वह सबके सामने अपनी सास को फूटी थाली में भोजन देने लगी और अपने पति के विरोध का सामना करती रही। कुछ दिन बाद बुढ़िया के लड़के ने विरोध करना छोड़ दिया।

जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता गया, अपनी दादी के प्रति मां के बढ़ते जुल्मों को देखता रहा। समझदार होने पर जब उसका विरोध करता, तो उसको भी झिड़की खानी पड़ती, लेकिन वह अपनी दादी के प्रति आदर और सहानुभूति रखता था। वह मन से अनुभव करता था कि घर में दादी के साथ सही व्यवहार नहीं हो रहा है। कई साल इसी तरह बीतने के बाद दो-चार दिन आराम के आए। बुढ़िया के पोते की बहू आई।

जब घर में बहू आई, तो खुशी का वातावरण रहा। रिश्तेदारों के जाने के बाद बुढ़िया के फिर वही दिन आ गए। बुढ़िया से बरतन मंजवाना, बात-बात पर डांटती-डपटती और फूटी थाली में भोजन खिलाती। नई बहू यह सब छिप-छिपकर देखती रहती। समय-समय पर दादी के बारे में अपने पति से पूछती रही। कभी-कभी पतोहू को ससुर से भी जानकारी मिल जाती थी।

कुछ दिन बाद बुढ़िया की बहू अपनी पतोहू से भी लड़ने लगी। अब पतोहू को भी पूरे दिन काम में लगाए रखती। कभी-कभी पतोहू बुढ़िया के बरतन मंजवाने में सहायता करती, तो बरस पड़ती और कहती, तेरे लिए ढेरों काम हैं, अपना काम कर।” कभी-कभी पतोहू अपनी दादी-सास के आंसुओं को देखती, तो पिघल जाती और छिपकर बुढ़िया के पास बैठकर उसके दुख की कहानी सुनती।

एक बार बुढ़िया बीमार हुई, तो फिर उठी ही नहीं। आठ-दस दिन बीमार रहकर इस दुनिया से मुक्ति पा गई। अब वह पतोहू को भी पूरे दिन काम में लगाए रखती। जब पतोहू से मनमाना करने लगती, तो झगड़ा शुरू हो जाता। जब पतोहू ने देखा कि मेरी सास जैसे अपनी सास को खरी-खोटी सुनाती थी, उसी तरह मुझे भी खरी-खोटी सुनाने लगी है, तो उससे रहा न गया। वह भी लड़ने लगी और उससे उसी तरह का व्यवहार करने लगी, जैसा वह अपनी सास के साथ व्यवहार करती थी। अब पतोहू अपनी सास से झाड़ू लगवाती और बरतन मंजवाती। उसके बाद पतोहू उसी फूटी हुई थाली में खाना परोसकर देने लगी, जिसमें उसकी सास दादी-सास को खाना देती थी।

शुरू में जब पतोहू ने सास को फूटी थाली में खाना दिया, तो पतोहू के ससुर और पति ने विरोध किया। पतोहू ने जवाब देते हुए कहा, “जब वह अपनी सास को इस फूटी थाली में भोजन कराती थी, तब तो आप दोनों के मुंह सिल गए थे। कोई कुछ नहीं बोलता था। कितनी सीधी मेरी दादी-सास थी, उसके साथ इसने कैसा व्यवहार किया। उसके आगे तो यह कुछ भी नहीं है। अब क्यों आप लोग इसकी पैरवी कर रहे हैं?” कोई भी कुछ नहीं बोला। अब सास भी जानती थी कि यदि कुछ पतोहू से कहा, तो मार-पीट भी कर देगी। अब पतोहू से कोई कुछ नहीं कहता था।

ससुर का बुढ़ापा था। वह अपनी बूढ़ी पत्नी के साथ इस प्रकार का व्यवहार होते देख नहीं पाता था। उसे गुस्सा आ जाता, तो कुछ-का-कुछ बक देता था। जब पतोहू जवाब दे देती थी, तो चुप हो जाता था। जब ससुर भी ज्यादा बोलने लगा, तो उनके साथ भी सास जैसा व्यवहार होने लगा।

कभी-कभी एकांत में बैठकर सास-ससुर अपने सुख-दुख की कहानियां याद कर लेते थे और दोनों ही सोचते थे

जैसा करे वैसा पावे, पूत-भतार के आगे आवे।’

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