Home » Languages » Hindi (Sr. Secondary) » Hindi Essay, Moral Story “Ajgar kare na Chakri, Panchi kare na Kaam” “अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम” Story on Hindi Kahavat for Students

Hindi Essay, Moral Story “Ajgar kare na Chakri, Panchi kare na Kaam” “अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम” Story on Hindi Kahavat for Students

अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम

Ajgar kare na Chakri, Panchi kare na Kaam

एक दिन मलूकदास को न जाने क्या सूझा कि हठ कर बैठे कि ईश्वर सबको खिलाता है। मैं देखता हूं ईश्वर मुझे कैसे खिलाता है? ऐसा सोचकर वे एक जंगल में चले गए। जंगल में उन्हें एक छायादार वृक्ष मिला। मलूकदास उसी वृक्ष के नीचे लेटकर सुस्ताने लगे। थोड़ी देर बाद वे उसी पेड़ पर चढ़कर बैठ गए।

एक आदमी आया और उसी पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ताने लगा। थोड़ी देर बाद उस व्यक्ति ने पोटली खोली और खाना निकालकर रख लिया। उसने अंगोछा बिछाया और उसी पर रोटियां, सब्जी आदि सब अलग-अलग करके रखता गया। जैसे ही वह खाना खाने को तैयार हुआ कि उसे घोड़ों के टापों की आवाज सुनाई दी। उस व्यक्ति के पास धन भी था। उसने सोचा कि चोर हुए तो सब धन छीन लेंगे। इसलिए वह तुरंत पोटली लेकर भाग खड़ा हुआ। वह झाड़ियों में छिपता हुआ निकल गया।

थोडी ही देर में चोरों का गिरोह उस पेड़ के पास से निकला। पेड़ के नीचे खाना रखा हुआ देखकर गिरोह रुक गया। खाना खाने योग्य ताजा था। सरदार ने अपने साथियों से कहा, “लगता है, जरूर कोई जासूस यहां आस-पास छिपा है। हम लोगों को पकड़वाने के लिए आया होगा।”

चोरों ने इधर-उधर खोजा लेकिन किसी को कोई नहीं मिला। एक की नजर पेड़ के ऊपर चली गई। वह चिल्ला उठा, “सरदार, देखो, वो पेड़ पर एक आदमी बैठा है। यह निश्चित रूप से जासूस है। लगता है इस भोजन में जहर मिला है। यह भोजन नीचे रखकर पेड़ पर बैठ गया है। इसने सोचा होगा कि हम लोग इस जहर मिले भोजन को खाएंगे और मर जाएंगे या बेहोश हो जाएंगे तो यह पकड़वा देगा।”

मलूकदास को जबरन चोरों ने नीचे उतार लिया। मलूकदास ने चोरों से कहा कि मैं कोई जासूस नहीं हं। मैं यूं ही यहां आकर बैठ गया था। मैं साधु हूं। मलूकदास की बात सुनकर सरदार ठहाका मारकर हंसा और बोला, “जासूस भी इसी तरह की वेशभूषा में होते हैं और इसी तरह की बात करते हैं।”

सरदार ने मलूकदास के सीने पर भाले की नोंक रखते हुए कहा, “इस खाने में जहर नहीं मिला है तो इसे तू खा। अगर नहीं खाया तो जान से मार दूंगा।”

मरता क्या न करता। मलूकदास ने खाना खाना शुरू कर दिया। मलूकदास खाना खाते जा रहे थे, सोचते जा रहे थे- मैंने तो सोचा था कि आज खाना नहीं खाऊंगा। इसीलिए मैं जंगल में चला आया था। सोचा था कि देखते हैं ईश्वर कैसे मुझे खाना खिलाता है? मेरे न चाहने पर भी खाना पड़ रहा है। सरदार और सभी बदमाश मलूकदास को खाना खाते देखते रहे। खाना खाकर मलूकदास बोले

अजगरं करे न चाकरी, पंछी करे न काम।

दास मलूका कह गए, सबके दाता राम ॥’

मलूकदास की बात सुनकर चोरों को लगा कि यह तो वाकई में साधु लगता है। जब देखा कि खाना खाकर भी मलूकदास को कुछ नहीं हुआ, तो सभी चोर मलूकदास को प्रणाम करके चले गए।

About

The main objective of this website is to provide quality study material to all students (from 1st to 12th class of any board) irrespective of their background as our motto is “Education for Everyone”. It is also a very good platform for teachers who want to share their valuable knowledge.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *