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Bhrantiman Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | भ्रान्तिमान ( भ्रम) अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

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भ्रान्तिमान ( भ्रम) अलंकार Bhrantiman Alankar जब उपमान को देखने पर उपमेय का भ्रम हो, तो भ्रान्तिमान अलंकार होता है। भ्रांतिमान के द्वारा जो भ्रम होता है, वह क्षणिक होता है। जैसे- पायँ पहावर देन कौ, नाइन बैठी आय। फिर फिर जान महावरी ऐंड़ी मींड़त जाय। कपि करि हृदय विचारि, दीन्ह मुद्रिका डारि तब । जानि अशोक अँगार, सीय हरखि उठकर गहेउ । नारी बीच सारी है, कि सारी बीच नारी...
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Aphunti Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | अपह्नति अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

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अपह्नति अलंकार Aphunti Alankar जहाँ वास्तविक वस्तु का (उपमेय) निषेध करके अवस्तु (उपमान) की स्थापना की जाय, वहाँ अपह्नति अलंकार होगा। जैसे – मैं जो कहा रघुवीर कृपाला, बन्धु न होइ मोर यह काला । यहाँ भाई (उपमेय) का निषेध करके काल (उपमान) की स्थापना की गई है। अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी । हमको जीवित करने आई, बन स्वतंत्रता नारी थी।
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Ananvay Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | अनन्वय अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

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अनन्वय अलंकार Ananvay Alankar जहाँ उपमान और उपमेय एक ही हों, वहाँ अनन्वय अलंकार होता है। जैसे- राम से राम, सिया सी सिया, सिरमौर विरंचि विचारि संवारे । स्वामि गुसाइहिं सरिस गुसाईं, माहिं समान मैं स्वामि दुहाई ।
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Visheshokti Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | विशेषोक्ति अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

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विशेषोक्ति अलंकार Visheshokti Alankar कारण तो मौजूद रहे, फिर भी हो न सके कोई काज। विशेषोक्ति वहाँ जानिये, बनिये गुणी और सरताज । परिभाषा – जहाँ कारण के उपस्थित होने पर भी कार्य नहीं होता, वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है। नेहि न नैननि की कछु उपजी बड़ी बलाय। नीर भरे नित प्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाय । इस उदाहरण में विशेषोक्ति अलंकार है क्योंकि कारण रहने पर भी कार्य नहीं...
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Vyatirek Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | व्यतिरेक अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

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व्यतिरेक अलंकार Vyatirek Alankar जब कविता में कवि कहें, उपमेय बड़ा और लघु उपमान। गुण विशेष के कारण तब, व्यतिरेक अलंकार को पहचान। परिभाषा – जब काव्य में गुण विशेष के कारण उपमेय (जिसका वर्णन किया जा रहा हो) को ही उपमान (जिससे तुलना की जा रही हो) से बड़ा बताया जाये, तो वहाँ पर व्यतिरेक अलंकार होता है। स्वर्ग की तुलना, उचित ही है यहाँ, किंतु सुरसरिता कहाँ, सरयु कहाँ?...
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Vibhavna Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | विभावना अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

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विभावना अलंकार Vibhavna Alankar न हो कारण जहाँ और, कार्य फिर भी संपन्न हो । या दिखे विपरीत कार्य तो, विभावना ही उत्पन्न हो। परिभाषा – जहाँ कारण के बिना या कारण के विपरीत कार्य की उत्पत्ति का वर्णन किया जाये, वहाँ विभावना अलंकार होता है। बिनु पद चलै, सुने बिनु काना, कर बिनु करम करै विधि नाना। आनन-रहित सकल रस भोगी, बिनु बानी बकता बड़ जोगी ।। चलना, सुनना, करना...
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Vyanjninda Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | व्याजनिंदा अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

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व्याजनिंदा अलंकार Vyanjninda Alankar बहाना हो निंदा का, समझत में स्तुति हो । व्याजनिंदा अलंकार की, बस वहीं प्रस्तुति हो ।   परिभाषा – जब कविता में इस तरह, वर्णन किया गया हो कि वह देखने पर प्रशंसा लगे किंतु वास्तव में वह निंदा हो, तो वहाँ पर व्याजनिंदा अलंकार होता है। जैसे- तुम तो सखा श्याम सुंदर के, सकल जोग के ईस। सूर हमारे नंदनंदनु बिनु, और नहीं जगदीस। गोपियाँ...
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Vyanjstuti Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | व्याजस्तुति अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

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व्याजस्तुति अलंकार Vyanjstuti Alankar देखत की निंदा लगे, स्तुति का होय बहाना। व्याजस्तुति अलंकार वहीं, बंधु तुरंत बताना। व्याज शब्द का अर्थ है बहाना और स्तुति का अर्थ है प्रशंसा करना। परिभाषा – जब कविता में एक तरह का चित्रण हो कि देखने पर वह निंदा जैसा प्रतीत हो, परंतु निंदा के बहाने किसी की प्रशंसा की जा रही तो वहाँ पर व्याज स्तुति अलंकार होता है। निशि दिन पूजा करत...
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