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Bhrantiman Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | भ्रान्तिमान ( भ्रम) अलंकार की परिभाषा और उदाहरण
भ्रान्तिमान ( भ्रम) अलंकार
Bhrantiman Alankar
जब उपमान को देखने पर उपमेय का भ्रम हो, तो भ्रान्तिमान अलंकार होता है। भ्रांतिमान के द्वारा जो भ्रम होता है, वह क्षणिक होता है। जैसे-
पायँ पहावर देन कौ, नाइन बैठी आय।
फिर फिर जान महावरी ऐंड़ी मींड़त जाय।
कपि करि हृदय विचारि, दीन्ह मुद्रिका डारि तब ।
जानि अशोक अँगार, सीय हरखि उठकर गहेउ ।
नारी बीच सारी है, कि सारी बीच नारी है।
कि सारी है कि नारी है, कि सारी ही की नारी है।
कुछ लोग उक्त उद्धरण को सन्देह अलंकार का उदाहरण बताते हैं, किन्तु यह गलत है, क्योंकि यहाँ भ्रम है, सन्देह नहीं बना रहता।