Bhayanak Rasa Ki Paribhasha, Bhed, Kitne Prakar ke hote hai aur Udahran | भयानक रस की परिभाषा, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण
भयानक रस
Bhayanak Rasa
परिभाषा – सहृदय के हृदय में स्थित भय नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तब वहाँ पर भयानक रस की निष्पत्ति होती है।
स्थायी भाव – भय ।
आलम्बन विषय – भय-प्रद व्यक्ति, वस्तु, घटना या परिस्थिति ।
आश्रय – भयभीत व्यक्ति।
उद्दीपन विभाव – रात्रि, नीरवता, अँधेरा, असहाय अवस्था आदि ।
अनुभाव – शरीर में कँपकँपी, मूर्छा, पलायन आदि।
संचारी भाव – आवेग, भ्रम, चिंता, शंका, त्रास, जड़ता आदि।
उदाहरण –
पड़ी थी बिजली सी विकराल,
लपेटे थे घन-जैसे काले बाल!
कौन छोड़े ये काले साँप ?
अवनिपति उठे अचानक काँप!
यहाँ स्थायी भाव – भय। आश्रय – राजा दशरथ, विषय – कैकेयी। उद्दीपन – कैकेयी की विकरालता, काले साँप जैसे बाल। अनुभाव – दशरथ के शरीर में कम्पन। संचारी भाव – शंका, अकुलता, जड़ता आदि ।
एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही, परयो मूरछा खाय।
यहाँ स्थायी भाव भय। आश्रय – शिकारी, विषय – भयानक जंगल। उद्दीपन – अजगर और सिंह की उपस्थिति। अनुभाव = मूर्छित हो जाना। संचारी भाव – आकुलता, जड़ता।
नभ ने झपहत बाज लखि, भूल्यो सकल प्रपंचा
कंपित तन व्याकुल नयन, लावक हिल्यौ न रंच।
आकाश में झपटते हुए बाज को देखकर बेचारा लावा पक्षी सुध-बुध खो बैठा। उसका शरीर कांपने लगा और आँखों की ज्योति मंद पड़ गई।
यहाँ भय स्थायी भाव है। लावा पक्षी आश्रय तथा बाज आलंबन है। बाज का झपटना उद्दीपन विभाव है, तथा लावा का काँपना, अचेत होना संचारी भाव है।