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Bharat mein Bal Shram ki Samasiya “भारत में बाल श्रम की समस्या ” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Students.

भारत में बाल श्रम की समस्या 

Bharat mein Bal Shram ki Samasiya

 

करोड़ों बच्चे बाल श्रम के निकृष्टतम रूपों को झेल रहे हैं जो ऐसे दुःस्वप्न की भांति है जिसका कभी भी अंत होता दिखाई नहीं पड़ता। बाल दासता, बाल वेश्यावृति, बच्चों का अवैध व्यापार, बच्चों का सैनिक के रूप में कार्य करना, इसकी एक अंतहीन फेहरिस्त है। ये मात्र शब्द ही नहीं है अपितु ये आज हमारे विश्व की वास्तविकता के भाग हैं। यह खेदजनक है कि इस प्रकार के अत्यधिक भौतिकवादी और प्रौद्योगिकीगत विकास के इस युग में लगभग सभी देशों में बच्चों का निर्ममतापूर्वक शोषण किया जा रहा है। भारत का नाम एक ऐसे संदेहास्पद देश के रूप में रहा है जहां विश्व में सर्वाधिक बाल श्रमिक हैं। दिनांक 17 जून, 1999 को अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सदस्य राष्ट्रों ने बाल श्रम के निकृष्टतम रूपों से संबंधित कन्वेंशन 182 को अंगीकार करने के लिए इसे सर्वसम्मति से पारित किया और विश्व समुदाय ने करोड़ों बच्चों की समस्याओं का उन्मुलन करने के लिए प्रतिबद्धता की। इस बात को मान्यता दी गई कि बच्चों का व्यावसायिक शोषण रोकना ही मनुष्यों की उच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इसे एक ऐसे उद्देश्य के रूप में स्वीकार किया गया था जिस पर शीघ्र ध्यान देना और तत्काल कार्रवाई करना अपेक्षित था।

बाल श्रम के निकृष्टतम रूपों संबंधी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशन 182 में बाल श्रमिकों की विभिन्न श्रेणियों को परिभाषित किया गया है। वे पूर्ण बाल श्रमिक, बाल श्रम के निकृष्टतम रूपों में संलग्न पूर्ण बालश्रमिक, बाल दासता, बच्चों का अवैध व्यापार, बाल वेश्वावृति, अपराध के कार्य में लगाए जा रहे बच्चे, सशस्त्र संघर्ष में प्रयुक्त बच्चे, घरेलू बाल नौकर तथा खतरनाक कार्यों में संलग्न बाल श्रमिक हैं।

“बाल श्रम” का अर्थ ऐसा कार्य है जिसका स्वरूप अथवा नियोजन दशा बच्चे के शारीरिक, मानसिक, नैतिक, सामाजिक अथवा भावनात्मक विकास के लिए खतरनाक है। बाल श्रमिकों को 18 वर्ष की आयु से कम के किसी व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है। बच्चों के अवैध व्यापार का अभिप्राय “किसी ऐसे कार्य अथवा कारोबार से है जिसके अंतर्गत किसी बच्चे को किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह को पारिश्रमिक अथवा किसी अन्य विचार के लिए अंतरित किया जाता है।” यह बच्चों को व्यावसायिक शोषण की स्थिति में ला देता है। उनमें से अनेक दासों, वेश्याओं, सैनिकों इत्यादि के रूप में जीवनपर्यंत कार्य करते रहते हैं।

बाल वेश्यावृति की परिभाषा “पारिश्रमिक अथवा किसी अन्य विचार से यौन कार्यकलापों में बच्चों का प्रयोग” के रूप में होती है। बाल पोर्नोग्राफी का अर्थ वास्तविक अथवा उत्तेजित प्रत्यक्ष यौन कार्यकलापों में संलिप्त किसी बच्चे के निरूपण से है, चाहे वे किसी भी तरीके से हों, अथवा किसी बालक के यौन अंगों के प्रदर्शन से है, जिसका प्रमुख अभिलक्षण यौन प्रयोजनार्थ चित्रण किया जाना है।

अवैध कार्यकलापों विशेषकर सम्बद्ध अंतराष्ट्रीय संधियों में यथा परिभाषित औषधों के उत्पादन तथा अवैध व्यापार के लिए किसी बच्चे का प्रयोग, उनका प्रापण अथवा उसकी सपुर्दगी भी बाल श्रम का ही एक रूप है।” तथापि, इसमें औषधों की बिक्री करने वाले बच्चों के लगभग सभी मामलों को शामिल किए जाने पर विचार किया जा सकता है क्योंकि उन्हें प्रायः बड़े व्यावसायिक श्रृंखला के वितरण संबंधी प्रयोजन के रूप प्रयुक्त किया जा रहा है।

सशस्त्र संघर्ष में प्रयुक्त बच्चों का अभिप्राय बच्चों की सशस्त्र संघर्ष में लड़ाकों अथवा सहायक कर्मियों के रूप में सहभागिता है, चाहे वह सरकारी बलों या विद्रोही दलों द्वारा हो और चाहे उन्हें जबरदस्ती भर्ती किया गया हो या वे स्वैच्छिक रूप से भर्ती हुए हो। इसमें विशेषतया “सशस्त्र संघर्ष में बच्चों को इस्तेमाल करने के लिए उन्हें जबरदस्ती अथवा अनिवार्य रूप से भर्ती करने संबंधी मामला सम्मिलित है” और इसमें ऐसा “कार्य भी शामिल है जिसे करने की प्रकृति अथवा परिस्थितियां ऐसी होती है जिनसे बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा अथवा नैतिकता को नुकसान पहुंचने की संभावना होती है।” स्रोतों का ऐसा दावा है कि अफगानिस्तान में 11 वर्ष की आयु के बच्चे विभिन्न सशस्त्र समूहों के सदस्थ थे।

घरेलू बाल नौकर से अभिप्राय बच्चों के ऐसे वर्ग से हैं जो किसी मालिक के घर पर लम्बे समय तक घरेलू कार्यों में कार्यरत रहता है। इनमें से अनेक बच्चे दासता अथवा दासों जैसी परिस्थितियों में कार्य करते हैं, अनेकों को उनकी वर्तमान बदहाल स्थिति में अवैध रूप से धकेला जाता है और अधिकतर पूर्णकालिक घरेलू बाल नौकर ऐसी स्थितियों में कार्य कर रहे हैं जिनसे उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा और नैतिकता को खतरा है। मानवाधिकार रिपोर्ट के अनुसार घरेलू सेवाओं में कार्यरत बच्चे ऐसी परिस्थितियों में कार्य करते हैं जो दासता और वेश्यावृति की परिस्थितियों के समान है।

जोखिमपूर्ण बाल श्रम का अर्थ “ऐसे कार्य से है जिनके स्वरूप अथवा परिस्थितियों से बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा अथवा नैतिकता की क्षति होने की संभावना हो।” बर्मा तथा कई अन्य देशों में बच्चों को अवसंरचनात्मक विकास परियोजनाओं तथा सैन्य सहायता अभियानों में बलात् श्रमिकों के रूप में बच्चों को लगाया जा रहा है।

बाल श्रमिकों के सरकारी आंकड़े 13 मिलियन हैं। परन्तु वास्तविक संख्या और भी अधिक है। आर्थिक रूप से सक्रिय 5 से 14 वर्ष की आयु वाले अनुमानित 250 मिलियन बच्चों में से लगभग 50 से 60 मिलियन बच्चे, जिनकी आयु 5 से 11 वर्ष के बीच होती है, श्रम के असहनीय रूपों में कार्यरत है। 10 से 14 वर्ष की आयु वाले बच्चों में काम करने वाले बच्चों की दर केन्या में 41.3 प्रतिशत, सेनेगल में 31.4 प्रतिशत, , बांग्लादेश में 30.1 प्रतिशत, नाइजीरिया में 25.8 प्रतिशत, तुर्की में 24 प्रतिशत, पाकिस्तान में 17.7 प्रतिशत, ब्राजील में 16.1 प्रतिशत, भारत में 14.4 प्रतिशत, चीन में 11.6 प्रतिशत है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि 5 से 14 वर्ष की आयु वाले बच्चों में से 250 मिलियन बच्चों ने जीविकोपार्जन के लिए कार्य किया तथा 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों में से 50 मिलियन से अधिक बच्चों ने जोखिमपूर्ण परिस्थितियों में कार्य किया। संयुक्त राष्ट्र संघ का अनुमान है कि विश्व भर में 20 मिलियन बंधवा बाल श्रमिक थे। विश्वसनीय अनुमानों के आधार पर प्रत्येक वर्ष कम से कम 700000 से 2 मिलियन व्यक्तियों, विशेषकर लड़कियों तथा बच्चों का अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के बाहर अवैध रूप से व्यापार किया जाता है। अनुसंधान से पता चलता है कि इन व्यापारों में शामिल बच्चों की आयु गिरती जा रही है। अधिकांश बच्चे 13 से 18 वर्ष की आयु के बीच के गरीब बच्चे हैं, हालांकि ऐसा साक्ष्य मौजूद है कि काफी कम उम्र के बच्चों, यहां तक कि शिशुओं, को भी इस भयंकर व्यापार में शामिल कर लिया गया है। वे संसार के सभी भागों के रहने वाले होते हैं। करीब एक मिलियन बच्चे व्यक्तियों अथवा परिस्थितियों से शोषित होने पर यौन व्यापार में शामिल होने के लिए विवश हो जाते हैं। किसी भी समय 18 वर्ष से कम उम्र के 300,000 से अधिक बच्चे-लड़के तथा लड़कियां विश्व भर के 30 से अधिक देशों में सरकार के सशस्त्र बलों और सशस्त्र विद्रोही दलों के रूप में लड़ रहे होते हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का यह अनुमान है कि विश्व में घरेलू काम-काज ही ऐसा सबसे बड़ा रोजगार है जिसमें 16 वर्ष की आयु से कम की लड़कियां लगी हुई हैं।

बाल श्रमिक दयनीय और कठिनाई भरा जीवन झेलते हैं। वे थोड़ा कमाते हैं और खुद का तथा अपने परिवारों का पर्याप्त रूप से पेट भरने के लिए संघर्ष करते हैं। वे स्कूल नहीं जाते हैं, उनमें से आधे से ज्यादा बच्चों ने कभी भी साक्षरता की कम से कम दक्षताओं को नहीं सीखा होगा।

ऐसे अनेक कारण हैं जिनकी वजह से बच्चे या तो श्रमिकों के रूप में कार्यरत है अथवा कार्य करने को विवश हैं। विश्व भर में इस तथ्य के पीछे मुख्य कारणों में से एक कारण गरीबी है। यह निष्ठुर गरीबी ही माता पिता को अपने जवान बच्चों को सभी प्रकार के जोखिम भरे व्यवसायों में धकेलने के लिए मजबूर कर देती है। गरीब परिवारों के लिए बाल श्रमिक आय के स्रोत होते हैं। उनसे घरेलू काम काज अथवा घरेलू कार्य में सहायता देने की आशा की जाती है ताकि घर के अन्य वयस्क सदस्य अन्यत्र आर्थिक कार्यकलापों में जुटने हेतु स्वतंत्र रहे। कतिपय मामलों में अध्ययन में यह पाया गया कि बच्चों की आय कुल घरेलू आय के 34 और 37 प्रतिशत के बीच होती है।

भारत में कृषि क्षेत्रों में असंपोषणीय काश्तकारी प्रथा और ग्रामीण क्षेत्रों में जाति प्रथा की वेदनाओं से बाल श्रम के आविर्भाव को बल मिला है। गरीबी और सामाजिक सुरक्षा के नेटवर्क के अभाव का सम्मिलन बंधुआ मजदूर का आधार तैयार करने में सहायक है। यह ऐसे बच्चों का संदर्भ देता है जो गुलामी की दशाओं में इसलिए कार्य कर रहे हैं ताकि वे अपना ऋण चुका सकें। यह ऋण जो उन्हें अपने मालिक के प्रति कार्य करने हेतु बाध्य करता है यह उन बच्चों द्वारा नहीं लिया जाता है अपितु उनके रिश्तेदारों अथवा संरक्षकों द्वारा लिया जाता है और प्रायः उनके माता-पिता द्वारा लिया जाता है। यह ऋण जो बच्चे की दक्षता पर निर्भर करता है, आमतौर पर साधारण औसतन 500 रू. से लेकर कुछ हजार रूपए तक होता है। साहूकार और मालिक निस्सहाय माता पिता को ये ऋण देते हैं और इन बच्चों को श्रमिकों के रूप में जकड़ने का प्रयास करते हैं। माता पिता और अनुबंध करने वाले एजेंट के मध्य ये समझौते प्रायः अनौपचारिक और अलिखित होते हैं। ऐसे ऋण चुकाने के लिए अपेक्षित वर्षों की संख्या अनिश्चित होती है। दलितों और जनजातीय जैसी निचली जाति उन्हें शोषण के लिए संवेदनशील समूह बनाती है। भारत में 10 मिलियन बाल बंधुआ मजदूर हैं। कम्बोडिया जेसे अन्य देशों में भी बच्चों का बंधुआ मजदुरी के विभिन्न रूपों के लिए, जिनमें सड़क पर भीख मांगना भी शामिल है, अंतरराष्ट्रीय रूप से अवैध व्यापार, मुख्यतः थाइलैण्ड को, किया जाता है।

इसके अन्य कारक भी हैं। पर्यावरणिक हास और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का अभाव भी लोगों के बड़े शहरों में प्रव्रजन में सहायक है। भीड़-भाड़ भरे शहरों में पहुंचने पर एल्कोहल के सेवन, बेरोजगारी अथवा बेहतर जीवन का मोह भंग होने इत्यादि से पारिवारिक इकाइयां विघटित हो जाती हैं। इसके कारण गली में घूमने वाले आवारा बच्चों और ऐसे बाल श्रमिकों का अविर्भाव होता है जो अपनी परिस्थितियों के कारण अपनी अल्पायु से ही काम करने के लिए विवश होते हैं।

गली में घूमने वाले आवारा बच्चों संबंधी घटनाएं बढ़ रही हैं जिनमें से बहुसंख्यक ऐसे बच्चे हैं जो बंधुआ मजदुरी के विभिन्न रूपों में संलिप्त हैं। जवान लड़कियों को उनके माता-पिता द्वारा या तो यौन कर्मियों के रूप में कार्य करने के लिए विवश किया जाता है अथवा उन्हें बेच दिया जाता है। कनाडा जैसे औद्योगिकीकृत देश में लगभग 12, 16-30 वर्ष की आयु की एशियाई लड़कियों और महिलाओं का आगन्तुक अनुज्ञा (Permit) पत्रों पर अवैध व्यापार किया जाता है और इन्हें वेश्यावृति कराने के लिए बेच दिया जाता है। बम्बई में 10 वर्ष से 14 वर्ष के बीच की आयु की 100,000 महिला वेश्याओं में से आधी नेपाल की रहने वाली हैं और उन्हें उनकी इच्छा के विरूद्ध वेश्यालयों में रखा जाता है। बड़ी संख्या में लड़कियों की जीवनलीला कम मजदूरी पर घरेलू नौकरानियों के रूप में कार्य करते-करते ही समाप्त हो जाती हैं। बांग्लादेश में घरेलू नौकरानियों की अनुमानित संख्या 189,000 है। मध्य पूर्व और पाकिस्तान में जवान लड़कियों की बड़ी तादाद है जिन्हें ऐसी घरेलू नौकरानियों के रूप में रोजगार देने के लालच में भगाया गया है।

कभी-कभी माता-पिता द्वारा या तो अपने बच्चों का परित्याग कर दिया जाता है अथवा उन्हें फैक्टरी के मालिक को बेच दिया जाता है। दक्षिण अमेरीकी देशों में, बच्चों का इक्वाडोर से वेनेजुएला में अवैध रूप से व्यापार किया जा रहा है। बच्चे प्रतीयमान दासता भरी परिस्थितियों में गली में सामान बेचने वाले, घरेलू नौकर और वेश्याओं के रूप में काम करते हैं।

विगत दो दशकों के दौरान निर्यात आधारित उद्योगों और अल्प तकनीक का प्रयोग करने वाली व्यापक उत्पादक फैक्टरियों में अत्यधिक वृद्धि देखी गई है। ये फैक्टरियां थोड़ी मजदूरी और कम श्रम मानदण्डों के जरिए प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति बनाए रखने का प्रयत्न करती हैं। बाल श्रम तथ्यतः उनकी आवश्यकताओं के अनुकूल है। वे बच्चों को शिक्षा और बेहतर रहन-सहन मुहैय्या कराने के बहाने से उनक माता-पिता को सभी प्रकार के प्रलोभन देते हैं जिससे कि वे अपने बच्चों को उन्हें सुपुर्द कर दें। भारत में अधिकांश बच्चे उद्योगों में कार्यरत हैं जिनमें से कुछ पटाखे बनाना, हीरे की पालिश करना, ग्लास, पीतल के बर्तन, कालीन बुनाई, चूड़िया बनाना, ताले बनाना और अभ्रक काटना आदि हैं। कुल 100,000 बच्चों में से 15 प्रतिशत उत्तर प्रदेश के कालीन उद्योग में कार्यरत है। 8,000 से 50,000 बच्चों में से 70-80% बच्चे फैजाबाद में ग्लास उद्योग में कार्यरत हैं। असंगठित क्षेत्र में बाल श्रमिकों को पीस-बाई-पीस दरों के अनुसार ही मजदूरी दी जाती है जिसके परिणामस्वरूप वे कई घंटों तक बहुत ही कम मजदूरी पर कार्य करते हैं। अपर्याप्त स्कूल, स्कूलों के अभाव और स्कूल संबंधी होने वाले अत्यधिक खर्चों के कारण कुछ बच्चे काम करने को विवश हो जाते हैं। माता-पिता के दृष्टिकोण से भी बाल श्रम को बढ़ावा मिलता है, कुछ माता-पिता यह महसूस करते हैं कि बच्चों को औपचारिक शिक्षा का प्राप्त करने के बजाए ऐसी दक्षताओं को विकसित करने के लिए काम करना चाहिए जो रोजगारी दुनिया में लाभदायक हो।

उपलब्ध सांख्यिकीय से यह संकेत मिलता है कि लड़कियों की अपेक्षा लड़के बाल श्रम में अधिक संलिप्त हैं। प्रायः लड़कियों की संख्या वास्तविकता से कम आंकी जाती है क्योंकि वे अपने द्वारा किए गए पूर्णकालिक घरेलू कार्य में संलग्न नहीं होती हैं जिससे कि वे अपने माता पिता के साथ काम में सहायता कर सकें। लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की प्रवृत्ति कई घंटों तक कार्य करने की होती है। मुख्यतः यह उन लड़कियों के लिए एक वास्तविकता है जो घरेलू नौकरानियों के रूप में कार्यरत हैं। कुछ देशों में बच्चों को परोक्ष गुलामों की तरह बेचा जाता है। पश्चिम एशिया खाड़ी के देशों में अनेक बच्चों की, जिनमें से कुछ 4 की आयु के ही होते हैं, ऊँट दौड़ में, सवारों के रूप में, मुख्यतः संयुक्त अरब अमीरात में, या हज के दौरान भीख मांगते हुए जीवन लीला समाप्त हो जाती है। लड़कियां और महिलाएं या तो घरेलू नौकरानियों अथवा यौन कर्मियों का जीवन जीते-जीते अपना दम तोड देती हैं। यरोपीय परिषद के अनुसार रोमन बच्चों की पूर्व यूगोस्लाविया से बंधुआ मजदूरों के रूप में काम कराने के लिए इटली में तस्करी की जाती है जहां इन्हें प्रशिक्षित किया जाता है और तत्पश्चात इन्हें बड़े शहरों के अपराधी गिरोहों को बेचा जाता है।

भारत ने अपनी आजादी के समय से ही बाल श्रम के विरूद्ध अपनी वचनबद्धता दोहराई है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 24 में स्पष्टतः उल्लेख किया गया है कि “चौदह वर्ष से कम आय के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।” बंधुआ मजदूरी प्रथा अधिनियम, 1976 भारतीय संविधान के बंधुआ मजदूरी को खत्म करने के निदेश को पूरा करता है। इसमें अधिकाधिक अतिरिक्त संरक्षात्मक कानून सन्निविष्ट किए गए हैं। फैक्टरियों में, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में, संयंत्रों पर और प्रशिक्षुताओं में बाल श्रम को शासित करने वाली सस्पष्ट विधियां हैं। प्रवासी श्रमिक और संविदात्मक श्रमिक की कार्यदशाओं को शासित करने वाली विधियां हैं। 1986 के हाल ही की बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन विधि) विधि में किसी बालक की एक ऐसे व्यक्ति के रूप में निर्दिष्ट किया गया है जिसने 14 वर्ष की आय पूरी न की हो। इसका उद्देश्य बाल श्रमिकों के कार्यसमय और दशाओं को विनियमित करना और बाल श्रमिकों का कतिपय सूचीबद्ध परिसंकटमय उद्योगों में कार्य करने से प्रतिषेध करना है। तथापि बाल श्रमिकों के कार्यदशाओं संबंधी न तो पूर्ण प्रतिषेध है और न ही बाल श्रमिकों के लिए कोई सार्वभौमिक न्यूनतम आयु ही निर्धारित की गई है। भारत सरकार की सारी नीतियां, जो भी लाग हैं, भारतीय संविधान के अनुसार हैं और सभी बाल श्रम के उन्मूलन का समर्थन करती हैं। यद्यपि ये सभी नीतियां विद्यमान हैं फिर भी बाल श्रम की समस्या अभी भी बनी हुई है। प्रवर्तन एक ऐसा महत्वपूर्ण पहलू है जो सरकार के प्रयास में नदारद है।

बाल श्रम एक वैश्विक समस्या है। यदि बाल श्रम का उन्मूलन करना है तो सरकार और अभिकरणों और प्रवर्तन के लिए उत्तरदायी घटको से अपना कार्य शुरू करने की अपेक्षा होगी। सबसे महत्वपूर्ण बात जागरूकता पैदा करना और इस समस्या को रोकने के लिए उपायों की विवेचना करना है। हमें यह निर्णय करना है कि क्या हम समस्या का सामना करने और इसका हरेक संभव तरीके से मुकाबला करने के लिए तैयार हैं अथवा इसे ऐसे वयस्क लोगों पर छोड़ देंगें जो समस्या के अनियन्त्रित हो जाने पर भाग खड़े होंगें।

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