Anyokti Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा और उदाहरण
अन्योक्ति अलंकार
Anyokti Alankar
लक्ष्य कोई और हो,
और चले कोई बात ।
अन्योक्ति अलंकार तभी,
कविता में कहलात।
अन्योक्ति का अर्थ है – अन्य उक्ति। अर्थात् अप्रस्तुत कथन के द्वारा प्रस्तुत का बोध कराना। जब किसी वस्तु या व्यक्ति को सम्बोधित करके कोई बात कही जाती है, परन्तु वास्तविक लक्ष्य कोई अन्य व्यक्ति होता है, तो ऐसी उक्ति को अन्योक्ति कहा जाता है।
स्वारथ, सुकृत न, श्रम वृथा; देखु बिहंग! विचार ।
बाज! पराये पानि पर, तू पच्छीनु न मार।
हे बाज पक्षी! तू दूसरों के हाथ में पड़कर पक्षियों को मत मार। इससे तेरा न तो कोई स्वार्थ सिद्ध होता है और न ही तुझे पुण्य मिलता है। तेरा यह श्रम व्यर्थ ही है।
बिहारी का यह दोहा प्रसिद्ध है, जिससे शायद कवि ने राजा जयसिंह को सन्देश पहुँचाया था कि स्वजातियों के विरुद्ध औरंगजेब को सहायता न दे।
यहाँ पर बाज – बलवान व्यक्ति। पराये पानि पर = अन्य पक्ष की प्रेरणा पर। पच्छीनु = स्वजातियों को। शिकारी बाज को दक्ष करके उससे अन्य पक्षियों का शिकार कराता है।
माली आवत देखकर, कलियन करीं पुकार ।
फूले-फूले चुन लिये, काल्हि हमारी बार।।
यहाँ कलियन – युवक। माली – मृत्यु का देवता । फूले-फूले – वृद्ध। यहाँ माली कलियों और खिले फूलों के माध्यम से संसार की नश्वरता का वर्णन किया गया है। जिस प्रकार खिले फूल को माली तोड़ लेता है उसी प्रकार क्रम से संसार के प्राणियों को मृत्यु का देवता बारी-बारी से इस धरती से उठा लेता है।
नहिं पराग नहिं मधुर रस, नहिं विकास यहि काल।
अली कली ही सों विंध्यो, आगे कौन हवाल |
बिहारी ने भौरे और कली की बात लेकर राजा जयसिंह और रानी की ओर संकेत दिया है।
करि फुलैल की आचमनु,
मीठो कहत सराहि।
ए गन्धी, मतिमंध तू,
इतर दिखावत काहि ।
यहाँ कवि का प्रस्तुत विषय तो यह है कि कोई गुणी व्यक्ति मूर्खों के समाज में पहुँच गया है और उन मूर्खों को उपदेश दे रहा है, जो उसे समझते नहीं। पर कवि इस बात को सीधे न कहकर किसी इत्र बेचने वाले के माध्यम से कह रहा है।