Alankar Ki Paribhasha, Ang, Bhed, Chhand ke Prakar aur Udahran | अलंकार की परिभाषा, अंग, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण
अलंकार की परिभाषा
Alankar Ki Paribhasha
‘अलंकार’ शब्द अलं + कार से निर्मित हुआ है। अर्थात् अलं (सौंदर्य या शोभा) + कार (वृद्धि करने वाला) – अलंकरोति इति अलंकारं – सौंदर्य की वृद्धि करने वाला।
अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है आभूषण। जिस प्रकार स्त्रियों की शोभा आभूषण के द्वारा और भी बढ़ जाती है, उसी प्रकार कविता की शोभा बढ़ाने वाले तत्व को अलंकार कहते हैं। हिन्दी में अलंकारों की संख्या 120 से भी अधिक मानी गयी है।
काव्य के वे तत्व जो काव्य के सौंदर्य की वृद्धि में सहायक सिद्ध होते हैं, अलंकार कहलाते हैं। जैसे –
‘चारू चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल-थल में‘।
यहाँ चारू, चन्द्र और चंचल शब्दों से कविता में निखार आ गया है और वह अधिक कर्ण प्रिय हो गयी है।
तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
इन पंक्तियों में तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर शब्दों में ‘त’ वर्ण के बार-बार आने से कविता में सौंदर्य आ गया है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार – “अलंकार काव्य की आत्मा है”।
कविवर पंत के अनुसार – “अलंकार केवल वाणी की सजावट के लिये ही नहीं हैं, वे भाव की अभिव्यक्ति के भी विशेष द्वार हैं”।
अलंकार के भेद
अलंकार के तीन भेद माने गये हैं –
शब्दालंकार – जब शब्दों में चमत्कार उत्पन्न किया जाये, तो वहाँ पर शब्दालंकार होता है।
मुख्य शब्दालंकार हैं-
- अनुप्रास, 2. यमक, 3. श्लेष, 4. वक्रोक्ति, 5. पुनरुक्तवदाभास, 6. वीप्सा आदि।
- अर्थालंकार – जब काव्य में इस तरह का प्रयोग किया जाये कि वहाँ अर्थों में चमत्कार उत्पन्न हो जाये, तब अर्थालंकार होता है।
मुख्य अर्थालंकार हैं-
- उपमा, 2. उत्प्रेक्षा, 3. रूपक, 4. अनन्वयय, 5 व्यतिरेक, 6. विभावना, 7. अतिशयोक्ति, 8. अन्योक्ति, 9. सन्देह, 10. भ्रान्तिमान, 11. अपह्नुति आदि।
मानवीकरण तथा विशेषण विपर्यय आदि नवीन अलंकारों का भी आधुनिक काव्य में प्रयोग होता है।
- उभयालंकार – जहाँ शब्दों व अर्थों दोनों में चमत्कार हो, वहाँ उभयालंकार होता है।
शब्दालंकार
जहाँ शब्दों के चमत्कार से कविता में सौंदर्य की अभिवृद्धि हो, उसे शब्दालंकार कहते हैं। जैसे –
- कहा कहौं कछु कहत न आवै, जननी जो दुख पायौ।
- बननि में बागनि में बगर्यौ बसंत है।
उपर्युक्त प्रथम उदाहरण में कहा, कहौं, कछु, कहत शब्दों में ‘क’ वर्ण की कई बार आवृत्ति से तथा द्वितीय उदाहरण में बननि, बागनि, बगर्यौ बसंत शब्दों में ‘ब’ वर्ण की पुनरावृत्ति से कविता की पंक्ति में सौंदर्य की वृद्धि हुई है। अतः ये शब्दालंकार हैं।