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Vibhast Ras Ki Paribhasha, Bhed, Kitne Prakar ke hote hai aur Udahran | वीभत्स रस की परिभाषा, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण

वीभत्स रस

Vibhast Ras

alankar and rasa

परिभाषा – सहृदय के हृदय में जुगुप्सा (घृणा) नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो वहाँ पर वीभत्स रस की निष्पत्ति होती है। घृणा योग्य वस्तु या दृश्य को देखने से मन में ग्लानि या जुगुप्सा का भाव उठता है। यही वीभत्स रस का कारण होता है।

स्थायी भाव – घृणा, ग्लानि, जुगुप्सा।

आलम्बन विषय घृणित वस्तु या दृश्य, श्मशान, शव।

आश्रय – घृणा का अनुभव करने वाला।

उद्दीपन विभाव – मांस, मज्जा, कफ, थूक, मवाद, दुर्गन्ध आदि।

अनुभाव – मुँह मोड़ना, थूकना, नाक बंद करना।

संचारी भाव – विषाद, आवेग, मूर्छा आदि।

उदाहरण –

  1. सिर पर बैठ्यो काग, आँख दोऊ खात निकारत ।

खींचत जीभहिं स्यार, अतिहिं आनन्द उर धारत ।

कहुँ श्रृगाल कोड मृतक अंग पर घात लगावत।

कहुँ कोउ शव पर बैठि गिद्ध चट चोंच चलावत।

लखत भूप यह साज मनहिं मन करत गुनावन।

पर्यो हाय! आजन्म कर्म यह करन अपावन।

राजा हरिश्चन्द्र श्मशान में बैठे यह दृश्य देख रहे हैं। यहाँ स्थायी भाव = घृणा। आश्रय = हरिश्चन्द्र। विषय – श्मशान। अनुभाव = हरिश्चन्द्र के मन में इस अपावन कर्म के प्रति क्षोभ। संचारी भाव – विषाद।

  1. गिद्ध जाँघ कहुँ खोदि-खोदि के माँस उपारत।

स्वान अंगुरिन काटि काटि के खात विदारत।।

कहुँ चील नौंचि लै जात मोद मढ्यो सब को हियौ ।

जनु ब्रह्मभोज जिजमान कोउ आज भिखारिन को दियौ।।

यहाँ भी हरिश्चन्द्र श्मशान में बैठे घृणित दृश्य देख रहे हैं। यहाँ स्थायी भाव – घृणा। आश्रय = हरिश्चन्द्र| विषय – श्मशान में शवों को विभिन्न मांस-भक्षियों द्वारा खाना। अनुभाव – हरिश्चन्द्र के मन में इस कर्म के प्रति क्षोभ। संचारी भाव = विषाद।

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