Raudra Ras Ki Paribhasha, Bhed, Kitne Prakar ke hote hai aur Udahran | रौद्र रस की परिभाषा, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण
रौद्र रस की परिभाषा
Raudra Ras Ki Paribhasha
परिभाषा – सहृदय के हृदय में स्थित क्रोध नामक स्थायी भाव का संयोग जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से होता है, तब वहाँ रौद्र रस की निष्पत्ति होती है।
विपक्षी अथवा अहितकर व्यक्ति को देखकर मन में उत्पन्न होने वाला प्रतिशोध का भाव उभरने पर रौद्र रस का संचार होता है।
स्थायी भाव – क्रोध|
आलम्बन विषय – विपक्षी व्यक्ति।
आश्रय – क्रुद्ध व्यक्ति।
उद्दीपन विभाव – विपक्षी चेष्टाएँ।
अनुभाव – रुक्त नयन, तनी भौंहें, कठोर शब्द, प्रहार आदि।
संचारी भाव – गर्व, मद, क्रूरता, अमर्ष, उग्रता आदि।
अन्य उदाहरण –
‘खड़ी हूँ मैं, बनो तुम मातृघाती,
भरत होता यहाँ तो मैं बताती।‘
गई लग आग-सी सौमित्र भड़के,
अधर फडके, प्रलय-घन-तुल्य तड़के।
‘अरे मातृत्व तू अब भी जताती,
ठसक किसको भरत की है बताती?
भरत को मार डालूँ और तुझको,
नरक में भी न रक्खूँ ठौर तुझको।‘
यहाँ स्थायीभाव = क्रोध। आश्रय = ‘लक्ष्मण, विषय कैकेयी। उद्दीपन = कैकेयी की उक्ति कि भरत होता तो मैं बताती । अनुभाव – लक्ष्मण के शरीर पर रोष के चिन्ह, अधर फड़कना, धमकी भरी उक्तियाँ। संचारी भाव = अमर्ष, चपलता, आवेग आदि।
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे,
सब शोक अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे।
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े,
करते हुए यह घोषणा वे हो गये उठकर खड़े।
यहाँ स्थायी भाव – क्रोध। आश्रय – अर्जुन। विषय – शत्रु सेना। उद्दीपन – अभिमन्यु के वध पर कौरवों का हर्ष। अनुभाव – अर्जुन का हाथ रगड़ना, उद्घोष करना, खड़े होना। संचारी भाव – आवेग, अमर्ष आदि।
बालकु बोलि बंधऊ नहिं तोही,
केवल मुनि जड़ जानहिं योंहि ।
बाल- ब्रह्मचारी अति को ही,
विश्व विदित क्षत्रिय कुल द्रोही।
यहाँ पर क्रोध स्थायी भाव है, परशुराम जी आश्रय, लक्ष्मण जी विषय, लक्ष्मण के कटु वचन उद्दीपन विभाव हैं, परशुराम का फरसा चमकाना, क्रोध से आँखें लाल होना, अनुभाव तथा गर्व संचारी भाव है। इन सबके संयोग से रौद्ररस का सुन्दर परिपाक हुआ है।
अन्य उदाहरण –
माखे लखनु कुटिल भई भौहें,
रदपुट फरकत नयन रिसौंहें।