Ek Kuli ki Aatmakatha “एक कुली की आत्मकथा ” Complete Hindi Essay, Nibandh for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
एक कुली की आत्मकथा
रेलवे स्टेशन पर हमें कुली या बोझा ढोने वाले लाल कमीज़ और सफेद पैन्ट या धोती में मिलते हैं। कुली को हम सब अच्छी तरह पहचानते हैं। वह हमारा सामान उस गाड़ी में पहुँचाता है जिस में हमने चढ़ना होता है। वह इस काम के पैसे पाता है। उसका मेहताना निश्चित होता है। कई कुली यात्रियों का सामान स्टेशन से बाहर लेकर जाते हैं। वह बहुत ही उपयोगी सेवा प्रदान करता है। जिससे भारी सामान के साथ हमारी यात्रा आसान हो जाती है।
दूसरी तरफ कई बार वह हमारा सामान उठाने से मना कर देता है क्योंकि वह अधितक पैसा माँगता है। वह इतना सादा नहीं होता जितना वह दिखता है। वह यहाँ कि यात्रियों के साथ झगड़ा करने को भी तैयार हो जाता है। ऐसे समय पर यात्री अपने आप को अपकारित और पीड़ित महसूस करते हैं। काफी मोल-भाव करने के बाद वह सामान उठाने के लिए तैयार हो जाता है।
वह हमेशा अधिक से अधिक धन कमाने को तैयार रहता है। कुली आमतौर पर अपने काम के बदले अधिक-से-अधिक धन कमाने के लिए अपने नियम बनाते हैं। यदि आप उसको फालतू धन देते हों तो वह भीड़ से भरे डिब्बे में भी आपके लिए बढ़िया स्थान बना देता है।
अच्छे कुली भी होते हैं। अच्छा बोझ उठाने वाला सदैव ईमानदार और हंसमुख होता है वह सही धन लेता है। वह किसी भी यात्री की मुश्किल का नाजायज़ लाभ नहीं उठाता। वह पीतल की पट्टी जिसपर अंक लिखे होते हैं, अपनी दाईं या बाईं भुजा पर बाँधता है।
यह उसकी पहचान होती है। यदि वह बुरा व्यवहार करता है या अधिक धन लेता है तो उसके खिलाफ शिकायत दर्ज हो सकती है। उसका काम बहुत कठिन है।
बुढ़ापा होने पर, जब वह बोझ नहीं उठा सकता तो वह कोई आसान काम ढूँढता है। उनके पास बुरे समय के लिए धन जमा नहीं होता। एक ईमानदार बोझा ढोने वाले के लिए वास्तव में घर चलाना ही मुश्किल उसका भविष्य अंधकारमय होता है। यदि उसके बच्चे अच्छी शिक्षा नहीं पाते और अच्छा काम नहीं कर पाते तो बुढ़ापे और बीमारी से उसका जीवन और ज्यादा दयनीय और असहनीय हो जाता है।