Remote Sensing Technology “दूर संवेदी तकनीक” Hindi Essay, Paragraph in 900 Words for Class 10, 12 and competitive Examination.
दूर संवेदी तकनीक
Remote Sensing Technology
आज के सन्दर्भ में दूर संवेदन तकनीक की ओर ध्यान आकृष्ट करने पर उपग्रहों को दर किनार नहीं किया जा सकता है क्योंकि आज दूर संवेदन तकनीकी का मतलब ही होता है उपग्रह आधारित दूर-संवेदन तकनीकी। जिसका उपयोग मौसम, वातावरण, कृषि तथा भूमि सम्बन्धी आंकड़ों के एकीकरण एवं समायोजन में किया जा रहा है। आर्द्रभूवि मानचित्रीकरण, सूखा एवं बाढ़ पर्यवेक्षण, पर्यावरण परिवर्तन तथा उसके प्रभाव इत्यादि कार्यों को समन्वित रूप से करने में दूर संवेदन तकनीकी काफी लाभप्रद सिद्ध हुई है। दूर-संवेदन की जो वर्तमान तकनीकी उपयोग में लायी जा रही है वह उपग्रहों के क्रमिक विकास का परिणाम है कि 1962 ई. में पहली बार एक सक्रिय उपग्रह छोड़ा गया था। टेज स्टार नामक यह उपग्रह अपने परिचय पर रहते हुए भू-स्टेशन पर रेडियो तरंगें तो भेजता था किन्तु इसके संकेत काफी कमजोर और ध्वनि रहित थे।
प्रारम्भिक दौर में उपग्रहों का प्रक्षेपण मौसम-सम्बन्धी जानकारी के लिए किया जाता था। जुलाई 1972 ई. में ‘नासा’ द्वारा अर्थ रिसोर्स अब्जर्वेशन सिस्टम (इरोन) के प्रक्षेपण के साथ ही एक नये युग का शुभारम्भ हुआ। भू अवलोकन हेतु प्रक्षेपित किया जाने वाला यह प्रथम उपग्रह था। इस उपग्रह के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों के आकलन की क्षमता में वृद्धि हुई। प्रारम्भ में इस उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों का उतना उपयोग नहीं हो पाया जितना कि अपेक्षा थी। इसका मुख्य कारण उस समय उपलब्ध ग्राउण्ड रिजाल्यूशन था जो आंकड़ों को उपयोगी स्तर तक सृजित करने में अक्षम था। सन् 1975 में इस उपग्रह की अगसी शृंखला का प्रक्षेपण किया गया। इसका नाम बदलकर ‘लैण्डसैट’ रखा गया। 1976, 1982 और 1986 में लैण्डसैट श्रृंखला के तीन उपग्रह प्रक्षेपित किए गए। वे उपग्रह उच्च क्षमता से युक्त थे तथा इनकी संवेदन क्षमता भी पहले से अधिक थी। वर्तमान में लैण्डसैट-4 तथा लैण्टसैट-5 क्रियाशील हैं और विश्व के अधिकांश देश इसमें आंकड़ों का उपयोग कर रहे हैं।
भारत द्वारा भू-निरीक्षण हेतु पहला दूर-संवेदी उपग्रह 1 जून 1975 को प्रक्षेपित किया गया था। इसके ठीक 2 महीने बाद 10 अगस्त 1975 को रोहिणी का प्रक्षेपण किया गया। दूर संवेदन के क्षेत्र में भारत का यह प्रारम्भिक चरण था। इस दौर में आर. एस. 1, आर. एस. डी. 1, भास्कर-2 नामक दूर संवेदी उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। भारत द्वारा उन्नत किस्म के दूर संवेदी उपग्रह आई. आर. एस. IK को 19 मार्च 1988 को प्रक्षेपित किया गया। इस श्रृंखला में भारत द्वारा अत्याधुनिक दूर संवेदी उपग्रह कार्टोसैट छोड़ा गया जिसका उपयोग मौसम सम्बन्धी जानकारी हासिल करने में किया जाता है।
दूर संवेदी उपग्रहों से प्राप्त चित्रों को कम्प्यूटर की सहायता से बड़ा बनाकर इसका विश्लेषण किया गया है। उपग्रह से प्राप्त किसी भी सूचना के विश्लेषण के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग अनिवार्य है। चूंकि ये सभी आंकड़े उपग्रह से टेसेमेट्री द्वारा प्राप्त किये जाते हैं और मैग्नेटिक टेप्स में संग्रहीत किये जाते हैं इसीलिए सही जानकारी प्राप्त करने के लिए इन चित्रों की कम्प्यूटर द्वारा डिजिटल प्रोसेसिंग की जाती है। उदाहरणार्थ-समुद्र में स्थित किसी विशेष वनस्पति के बारे में जानने के लिए पहले उस वनस्पति की परावर्तन क्षमता और उसकी मात्रा प्रयोगशाला में ज्ञात कर ली जाती है। प्रयोगशाला में प्राप्त आंकड़ों का उपग्रह द्वारा प्राप्त चित्रों के आंकड़ों से मैच कराने के बाद वास्तविक स्थिति की जानकारी प्राप्त की जाती है। इस प्रकार प्रयोगशाला में विभिन्न मोटाई वाले बर्फ की परावर्तन क्षमता ज्ञात कर उपग्रह से प्राप्त चित्रों एवं आंकड़ों से मिलान हुए सम्बन्धित स्थान पर स्थित बर्फ की मोटाई प्राप्त की जाती है।
दूर सम्मेलन प्रणाली को क्रियाशीलता के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जाता है- (1) सक्रिय दूर संवेदन और (2) निष्क्रिय दूर संवेदन। सक्रिय दूर संवेदन में उपग्रह में लगे उपकरण विशेष प्रकार की तरंग को वस्तु विशेष पर न केवल भेजते हैं बल्कि उस तरंग को वापस आने पर भी ग्रहण करते हैं। इस क्रिया में लाने वाले समस्त विकिरण की सघनता आदि को नोट पर निष्कर्ष प्राप्त किया जाता है। निष्क्रिय रूप में उपकरण तरंग प्रेषित नहीं करता बल्कि आने वाले तत्वों को ग्रहण करता है। निष्क्रिय एवं सक्रिय दूरसंवेदन में वही अंतर है जो साधारण फोटोग्राफी और फ्लैश फोटोग्राफी में है।
भारत में अब तक छोड़े गए रिमोट प्रेसिंग सेटेलाइट निम्नलिखित हैं
आइ. आर. एस. -1 ए.
आई. आर. एस.-1 बी.
आई. आर. एस.-1 सी.
आर. आर. एस.-1 डी.
आई. आर. एस. पी-1
आई. आर. एस. पी-2
आई. आर. एस. पी-3
आई. आर. एस. पी-4
जी जैट-1
जी जैट-2
जी जैट
ऊपर वर्णित सभी सेटेलाइट सफल रहे हैं। ज्ञातव्य है कि दूर संवेदन तकनीक का उपयोग, मौसम, वातावरण, कृषि तथा भूमि सम्बन्धी आंकड़ों के एक तीक्ष्ण एवं समायोजन में दिया जा रहा है। भारत ने अंतरिक्ष विभाग के अन्तर्गत राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन प्रणाली (N.N.R.M.S.) की स्थापना की है। यह एक एकीकृत संसाधन प्रबन्ध प्रणाली है जिसका उद्देश्य पारम्परिक तकनीकों से दूरसंवेदी प्रणाली द्वारा प्राप्त आंकड़ों के उपयोग से देश के प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता की सही ढंग से आलेखन कर उनको सूचीबद्ध करना तथा प्राकृतिक संसाधनों के इष्टतम उपयोग से पथबन्धित सुझाव देना है-
आर्द भूमि, मानचित्रीकरण, सूखा तथा बाढ़ पर्यवेक्षण, पर्यावरणीय परिवर्तन तथा उसके प्रभाव इत्यादि कार्यों को समन्वित रूप से दूर करने में दूरसंवेदन तकनीक काफी लाभप्रद साबित हुई है। सूखा, बाढ़, भूकम्प जैसी आपदाओं के समन्वित स्वरूप को भौगोलिक सूचना पद्धति कहते हैं। कम्प्यूटर आधारित इस पद्धति द्वारा क्षेत्रीय संसाधनों के फैलाव एवं अन्य स्थलीय सूचनाओं के फैलाव एवं अन्य स्थलीय सूचनाओं के परस्पर समन्वय से वैकल्पिक कार्य योजनाओं का प्रारूप तैयार किया जाता है। इस पद्धति की सहायता से दूर संवेदन-तकनीक द्वारा प्राप्त सूचनाओं, चित्रों एवं आंकड़ों को सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक तेजी से सम्प्रेषित किया जाता है। इसका सबसे बड़ा लाभ इनको मिल रहा है।