Hindi Essay on “Bina Vichare jo Kare, So Pache Pachtaye”, “बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताए” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताए
Bina Vichare jo Kare, So Pache Pachtaye
मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना जाता है। इसका कारण यही है कि वह मननशील है। वह अपने विचार के बल पर संसार के बड़े काम करने में सफल हो सकता है। उसका मन जिस किसी कार्य में लीन हो जाता है वह उस कार्य में अदभुत सफलता प्राप्त कर लेता है। मनुष्य के पास शारीरिक शक्ति भी है। इस शक्ति के उपयोग से वह अनेक काम करता है। परन्तु सबसे बड़ी शक्त उसका मन है। मनोबल के अभाव में शक्तिशाली शरीर कुछ भी नहीं कर किता । शरीर में दो मनुष्य बराबर भी हो सकते हैं परन्तु मानसिक बल की दृष्टि उन म आकाश-पाताल का अन्तर हो सकता है। “मन जीते जग जीत” मन के कार को जीतने के लिए संयम की आवश्यकता है। इसलिए साधु महात्मा मन को जीतने का ही उपदेश देते रहे हैं। वे जानते हैं कि शरीर ससीम और मन असीम है। प्रार्थना में भी हम अपने मन की शक्ति बढ़ाने पर ही बल देते हैं। मनोबल गिर जाना ही पराजय है। मनोबल के रहते हुए संसार की कोई भी शक्ति मनुष्य को झुका नहीं सकती।
मन की शक्ति की कोई सीमा नहीं। कितनी भी कठिनाई क्यों न हो जिसका मन मज़बूत है उसे कोई नहीं गिरा सकता। किसी व्यक्ति को भयानक रोग घेर लेता है। यदि उस व्यक्ति के पास जीने की इच्छा शक्ति है तो वह उस भयंकर रोग के रहते भी जी सकता है। उधर ऐसा व्यक्ति जिस की इच्छा शक्ति दुर्बल है, वह सामान्य रोग को भी सहन नहीं कर सकता। एक ही पथ के दो यात्रियों में यदि मनोबल का अन्तर है तो एक यात्री संकटों से पराजित हो कर अपने पथ से विमुख भी हो सकता है। दूसरा संकल्प के द्वारा उसी पथ पर चलता रहता है। मनोबल के आधार पर ही बड़े काम किये जा सकते हैं।
मानसिक शक्ति के बल पर ही आज संसार इतनी प्रगति कर सका है। साहस से ही मनुष्य चाँद पर पांव रख सका है। महात्मा गांधी शरीर के कितने कमज़ोर थे लेकिन अपनी मानसिक शक्ति की प्रबलता के आगे उन्होंने शक्तिशाली ब्रिटिश सामाज्य को झकने पर विवश कर दिया। मानसिक बल पर एक गुलाम भी राजा को शक्ति की सीमा दिखा सकता है। राजा उसके शरीर पर अधिकार कर सकता है परन्तु मन पर नहीं। वह फांसी के फन्दे पर चढ़ कर भी मृत्यु से पूर्व राजा को कोस सकता है। एक तपस्वी के पास शारीरिक शक्ति का कोई साधन नहीं होता । वह तो तप द्वारा अपने शरीर को कमज़ोर तथा मन को शक्तिशाली बनाता है। राजा तक उसके आगे मस्तक झकाने में गौरव अनुभव करते है। महाराणा प्रताप ने वन की कठिनाईयों को सहन किया लेकिन अकबर के आगे झके नहीं। कवि तथा विद्वान मन की शक्ति से ही इतने बढे ग्रन्थों का रचना करते हैं। कभी-कभी प्रकृति का कठोर रूप मनुष्य के मन को गिरा देता है। उस समय मनुष्य को चाहिए कि वह गिरे हुये मन को ऊपर उठाए क्योकि “मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
ऊपर के विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि मानव की सबसे बड़ी सम्पति उसका मन है। मन में ही अपार शक्ति है। इसके बल पर वह चाहे तो संसार को जीत सकता है। मन के हार जाने पर मामूली सा कष्ट भी उसे विचलित कर सकता है। अत: यह ठीक कहा गया है–“मन के हारे हार है मन के जीते जीत“|