Hindi Essay on “Lohri”, “लोहड़ी” Complete Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
लोहड़ी
Lohri
पंजाब की धरती उत्सवों तथा त्यौहारों की धरती है। यही धरती जहा एक ओर धन-वैभव से भरपूर है, वहीं दूसरी ओर उत्सवों एवं त्यौहारों द्वारा लोगों को एक आदर्श का मीठा सन्देश भी देती है। लोहडी उत्तर भारत का एक लोकप्रिय त्यौहार है। आपसी प्रेम और भाईचारे की उदाहरण कायम रखने वाला एक अनूठा पर्व है लोहडी जोकि प्रतिवर्ष 13 जनवरी को (अथवा मकर संक्रान्ति से एक दिन पूर्व) मनाया जाता है।
इसकी शुरूआत कैसे हुई इस सम्बन्ध में एक कथा है- इस माह में सूर्य देव दक्षिण में चले जाते हैं जिससे रातें लम्बी और दिन छोटे हो जाते हैं।
दूसरा यह भी कहा जाता है कि पुराने समय में ऋषि-मनि, देवताओं को प्रसन्न करने के लिए इस दिन यज्ञ-हवन आदि का आरम्भ किया करते थे।
ऐसा भी सुनने में आता है कि लोहडी के दिन अरणी मंथन के द्वारा अग्नि प्रज्वलित करने की प्रथा थी। इसलिए हमारे ऋषि-मुनि अरणी मंथन के लिए सभी घरों से अरणी नामक ईंधन (अरणी का अर्थ हैं जंगल से बीनी हुई सूखी लकड़ी व गोबर के उपले) मांग कर एक जगह जमा करते थे तथा लोहड़ी के दिन वैदिक मन्त्रों से अग्नि प्रज्वलित करते थे। उस पवित्र अग्नि में तिल, गुड़, चावल, सूखे मेवे तथा घी की आहुति देते थे।
लोहड़ी का सम्बन्ध सुन्दरी नामक कन्या तथा दुल्ला भट्टी नामक एक डाकू से भी जोड़ा जाता है। इस सम्बन्ध में प्रचलित ऐतिहासिक कथा के अनुसार गंजीबार क्षेत्र में एक ब्राह्मण रहता था जिसकी सन्दरी नामक अति सुन्दर कन्या थी। गंजीबार के राजा को जब यह मालूम हुआ तो उसने सुन्दरी को अपने महल की शोभा बनाने का निश्चय किया तथा तरह-तरह के प्रलोभन दिए। ब्राह्मण को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। तब वह ब्राह्मण जंगल में रहने वाले वीर योद्धा दुल्ला भट्टी नामक डाकू से मिला और अपनी सारी कथा सुनाई। यद्यपि दुल्ला भट्टी एक डाकू था परन्तु वह गरीबों की सहायता करने के लिए सदा तैयार रहता था। दुल्ला भट्टी ने उसी रात अपनी बेटी की तरह एक सयोग्य ब्राह्मण के साथ सुन्दरी का विवाह करवा कर उसका कन्यादान कर दिया। उस समय उसके पास सुन्दरी को देने के लिए थोड़ी सी शक्कर थी। जब राजा को इस बात का पता चला तो उसने दुल्ला भट्टी को ठिकाने लगाने के लिए अपनी सेना भेजी। दुल्ला भट्टी और उसके साथियों ने अपनी पूरी ताकत से राजा के सैनिकों को मार भगाया। इसी खुशी में लोगों ने अलाव जलाए और दुल्ला भट्टी की प्रशंसा के गीत गाकर नृत्य किया।
कहा जाता है कि तभी से लोहडी के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों में सुन्दरी और दुल्ला भट्टी को विशेष तौर पर याद किया जाने लगा।
यह गीत इस प्रकार है–
सुन्दर मुन्दरीए, हो, तेरा कौन विचारा, हो
दुल्ला भट्टी वाला, हो, दुल्ले धी बिआई, हो
सेर शक्कर पाई, हो, कुडी दा सालू पाटा, हो
सालू कौन समेटे, हो, कुड़ी दा जीवे चाचा, हो
चाचा चूरी कुट्टी, हो, जिमींदारा लुट्टी, हो
जिमींदार सदाए, हो, गिन–गिन माल्ले लाए हो
इक माल्ला रह गया, सिपाही फड़के ले गया, हो
सानू दे लोहड़ी, माई तेरी जीवे जोड़ी॥
मनाने का ढंग– लोहड़ी वाले दिन लोग अपने घरों के बाहर अलाव जला कर अग्नि की पूजा करते हैं। पंजाबी समुदाय में जिस घर में नई शादी हुई हो, शादी की पहली वर्षगांठ हो या किसी के घर में पुत्र पैदा हुआ हो, वहाँ तो लोहडी का विशेष महत्त्व है। ऐसे घरों से उनको लोहड़ी के रूप में रुपए, मूंगफली, रेवड़ियाँ व मक्का की खीलें मिलती हैं। लोहड़ी के कुछ दिन पहले ही गली मुहल्ले के लडके लड़कियाँ घर-घर जाकर लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी माँगने लगते हैं।
समय परिवर्तनशील है। समय के बदलाव के साथ-साथ यद्यपि घर-घर से लकडिकयाँ व उपले माँगकर लाने की परम्परा समाप्त होती जा रही है, लेकिन लोहडी के दिन रात के उत्सव की तैयारियाँ आरम्भ हो जाती हैं। रात के समय लोग अपने-अपने घरों के बाहर अलाव जलाकर उसकी परिक्रमा करते हए उसमें तिल, गुड, रेवड़ी, चिड़वे इत्यादि डालते हैं और माथा टेकते हैं। उसके बाद अलाव के पास बैठकर आग सेकते हैं। फिर गिद्दे और नृत्य-गानों का कार्यक्रम शरु हो जाता है जो देर रात तक चलता रहता है।
इस प्रकार लोहड़ी का त्यौहार सारे भारतवर्ष में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। आपसी प्रेम और भाईचारे की उदाहरण स्थापित करने वाला यह एक अनूठा पर्व है। यह त्यौहार हमारी एक सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर है। इस धरोहर को हमें सम्भाल कर रखना चाहिए।