Vyanjstuti Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | व्याजस्तुति अलंकार की परिभाषा और उदाहरण
व्याजस्तुति अलंकार
Vyanjstuti Alankar
देखत की निंदा लगे,
स्तुति का होय बहाना।
व्याजस्तुति अलंकार वहीं,
बंधु तुरंत बताना।
व्याज शब्द का अर्थ है बहाना और स्तुति का अर्थ है प्रशंसा करना।
परिभाषा – जब कविता में एक तरह का चित्रण हो कि देखने पर वह निंदा जैसा प्रतीत हो, परंतु निंदा के बहाने किसी की प्रशंसा की जा रही तो वहाँ पर व्याज स्तुति अलंकार होता है।
निशि दिन पूजा करत रहत, श्याम बूड़ि सब रंग।
जनम-जनम की देह को, छीनत हौ एक संग।
यहाँ पर सुनने में ऐसा लगता है कि कृष्ण की निंदा की जा रही है, किंतु है प्रशंसा, क्योंकि श्रीकृष्ण जन्म-जन्मान्तरों के बंधनों से भक्त को मुक्तकर अपने में समाहित कर लेते हैं।
यमुना तुम अविवेकनी,
कौन लियो यह ढंग।
पापिन सों निज बंधु को,
मान करावत भंग।
यहाँ शब्दार्थ से तो यमुना की निंदा प्रतीत होती है, अर्थात् अपने भाई यमराज का मान भंग करती है परंतु वास्तव में यह यमुना की प्रशंसा है कि यमुना में स्नान करने से पापियों के पाप का शमन हो जाता है अर्थात् उन्हें नर्क नहीं भोगना पड़ता।
भस्म, जटा, विष, अहि सहित,
गंग कियो तैं मोहि।
भोगी तैं जोगी कियो,
कहा कहीं अब तोहि ।
यहाँ पर गंगा की निंदा के बहाने प्रशंसा की गई है। गंगा ने शिव को भस्म, जटा, विष और सर्पधारी बनाकर भोगी से योगी बना दिया। यह गंगा की निंदा है, किन्तु व्यंग्यार्थ से उसकी प्रशंसा ही ध्वनित होती है, क्योंकि गंगा ने शिव को भोगी से योगी बना दिया है।
गंगा क्यों टेढ़ी चलती हो,
दुष्टों को शिव कर देती हो ।
क्यों वह बुरा कर्म करती हो,
नरक रिक्त कर दिवि भरती हो।
इन पंक्तियों में प्रत्यक्ष में तो गंगा को टेढ़ी चलने वाली और बुरा काम करने वाली बताया गया है जबकि वास्तव में उसके महान कार्य की प्रशंसा की करके दिवि (स्वर्ग) में भेज रही है। अतः निन्दा गई है कि वह पापियों को मुक्त के बहाने स्तुति होने के कारण यहाँ व्याजस्तुति अलंकार है।