Vigyan evm Nishastrikaran “विज्ञान एवं नीतिशास्त्र” Hindi Essay 1000 Words for Class 10, 12 and Higher Classes Students.
विज्ञान एवं नीतिशास्त्र
Vigyan evm Nishastrikaran
वस्तुतः विज्ञान तथा नीतिशास्त्र एक सिक्के के दो पहलू हैं। यदि सूक्ष्म अवलोकन किया जाये तो स्पष्ट होता है कि इनके क्षेत्र भिन्न हैं और ये स्पष्ट रूप से एक-दूसरे की समस्याओं के निवारक हैं, किंतु काफी निकट से अवलोकन करने पर हम देखेंगे कि सामान्य मत के विपरीत विज्ञान और नीतिशास्त्र न तो दो भिन्न ध्रुव हैं और न ही ये एक-दूसरे के विरोधी हैं। बल्कि ये एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरा अपूर्ण है। इनमें सहअस्तित्व होता है और ये एक-दूसरे को बल प्रदान करते हैं।
नीति मुक्त विज्ञान की अवधारणा मात्र कोरी कल्पना है। इसलिए, विज्ञान को धर्म या नीतिशास्त्र द्वारा उचित रूप से सौम्य बनाना जरूरी है और नीतिशास्त्र को विज्ञान का ध्यान रखना जरूरी है। यदि विज्ञान हमारी भौतिकवादी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, तो नीतिशास्त्र हमारी आध्यात्मिक क्षुधा की तृप्ति करता है । नीतिशास्त्र परम सत्य को खोजने का प्रयास करता है। यह सच्चाई, भलाई, सुंदरता और भक्ति जैसे मूल्यों के परम लक्ष्यों की प्रकृति और जीवन की कटु सच्चाइयों के साथ उनके संबंधों की जाँच करता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आश्चर्यजनक विकास करने वाले पश्चिमी देश भी शांति की स्थापना के लिए आध्यात्मिक जीवन बिताने को लालायित हैं। उन्होंने पाया है कि नीतिशास्त्र के बिना विज्ञान का कोई खास महत्त्व नहीं है। यह हमें चंद्रमा पर ले जा सकता है किंतु, यह हमें हृदय के अन्तस्तल में नहीं ले जा सकता है। यह मनुष्य की भावनात्मक क्षुधा को तृप्त करने में असफल है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि ये हमारी आध्यात्मिक विरासत और धार्मिक सत्ता में आध्यात्मिक प्रकाश की संभावना की तलाश करते हैं।
अब सभी बुद्धिजीवी और विचारक यह समझते हैं कि केवल विज्ञान ही नहीं हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए आदर्शमूलक नीति भी बेहद अनिवार्य है। एक तरफ विज्ञान ने हमारे कल्याण के लिए सैकड़ों अन्वेषण एवं खोज किए हैं तो दूसरी तरफ विध्वंस के विभिन्न साधनों के जरिए मानवजाति के लिए भयंकर विपत्ति भी ला दी है। यह एक अनिवार्य शर्त बन चुकी है कि नीति तथा विज्ञान में समन्वय हो। इसी प्रकार, यदि धर्म को मानवजाति का वास्तविक परामर्शदाता बनना है तो इसे सभी अंधविश्वासों से छुटकारा पाकर वैज्ञानिक आधार प्राप्त करने चाहिए। जीवन का कटु सत्य है कि नीतिशास्त्र के बिना विज्ञान अंधा है और विज्ञान के बिना नीतिशास्त्र पंगु है। नीतिशास्त्र किसी ऐसी वैज्ञानिक अवधारणा को मान्यता नहीं देती जो कि विनाशकारी हो।
मध्य काल के प्रारंभ में गिरजाघर और वैज्ञानिक अन्वेषण के बीच प्रतिस्पर्धा का विकास हुआ। धर्म की परंपरागत उपलब्धि को अस्त-व्यस्त करने वाले या लोकप्रिय धार्मिक सिद्धांतों में दोष ढूँढ़ने वाले अन्वेषण या खोज को ईसाई विरोधी और ईश्वर विरोधी कहा गया। इस के कारण गैलीलियो को दोषी करार देकर उन पर मुकदमा चलाया गया था और उनके वैज्ञानिक खोजों को मानने से इनकार कर दिया गया; क्योंकि, ये खोज परंपरागत धार्मिक मतों से मेल नहीं खाते थे। उस समय के कोई भी वैज्ञानिक, प्रवर्तक और धार्मिक सिद्धांतों के आलोचक गिरजाघर की हठधर्मिता से नहीं बचते थे। यदि गिरजाघर की बात गलत भी होती थी तो उसके लिए अन्वेषकों को दोषी करार दिया जाता था। उन दिनों नीति को विज्ञान से पृथक माना जाता था, जिसका कारण धर्मान्धता थी, जो शनैः शनैः परिवर्तित हो रही है।
किसी भी सिद्धांत के लिए धर्मान्धता धर्म विशेष के प्रति स्थाई कट्टरवादी प्रवृत्ति है, जो उस समाज के पीड़ितों हेतु मानवता, सहिष्णुता, संवेदना और सहानुभूति है। धर्म का अभिप्राय सत्य के लिए निरंतर खोज है। इसका अभिप्राय अंधकार के विरुद्ध प्रकाश है। यह हमें अंधकार से प्रकाश, असत्य से सत्य, घृणा से प्रेम और पाप से धर्मपरायणता की ओर ले जाता है। इसका अंतिम लक्ष्य सार्वभौमिक प्रेम और खुशी है। विज्ञान का भी लक्ष्य मानव कल्याण है। इसने मानव की सुविधा और आधुनिक सभ्यता में इतना योगदान दिया है कि इसे नए ईश्वर के रूप में माना जाने लगा है। विज्ञान ने दूरसंचार क्रांति के जरिए विश्व में ईश्वर के वचन को फैलाने में मानव को आश्चर्यजनक रूप से सहायता प्रदान की है।
अतः विज्ञान ज्ञान का क्रमबद्ध निकाय है, किंतु सभी ज्ञान ईश्वर का ज्ञान है। हमारी यात्रा ईश्वर से ईश्वर तक है। धर्म का लक्ष्य आध्यात्मिक उपस्थिति के रूप में इसकी प्राप्ति है।
भौतिकवाद यंत्रवाद का पक्षधर है। यह जीवन एवं मस्तिष्क की सच्चाइयों और अनोखेपन को मानने से इन्कार करता है। यह ईश्वर के अस्तित्व को इन्कार करता है। भौतिकवाद वह प्रवृति है जो अनीश्वरवादी है तथा यंत्रवाद का परिपोषक है, किंतु विज्ञान ने इस दूरी को समाप्त कर दिया है और इस प्रकार मानवजाति का एकीकरण हुआ है। इस प्रक्रिया में विश्व एक साथ बँध गया है। विज्ञान ने प्राकृतिक बाधाओं को तोड़ दिया है और धर्म ने आध्यात्मिक खाई को पाट दिया है। यदि विज्ञान और नीतिशास्त्र साथ मिलकर काम करें तो पृथ्वी पर होने वाला परिवर्तन नैसर्गिक होगा।- मानवजाति के लिए सर्वत्र शांति और समृद्धि होगी। विध्वंस की ओर विज्ञान के वर्तमान कदम को केवल धर्म और नैतिकता द्वारा विज्ञान को रोका जा सकता है। विज्ञान को धर्म द्वारा ही विध्वंस के मार्ग से दूर किया जा सकता है। इस समय यह माना जा रहा है कि हमें धर्म की सर्वोच्च पराकाष्ठा, अर्थात् आध्यात्मिकता का वरण करना चाहिए, जिससे विनाशकारी तत्त्वों को निर्मित न करके उपयोगी यंत्रों का विकास किया जा सके। न तो अवैज्ञानिक अंधविश्वासों पर आधारित धर्म और न ही अपवित्र विज्ञान समीप स्थित शारीरिक एवं नैतिक विपदाओं से मानवता की रक्षा कर सकते हैं। पोप पॉयस नवम् ने ठीक ही कहा है कि वे लोग जो विज्ञान और नीतिशास्त्र के परस्पर विरोधी होने की बात करते हैं वे समन्वयवादी विचारधारा को पर्याप्त महत्व नहीं देते।
नाभिकीय युग में युद्ध, राष्ट्रों के बीच दूरी बढ़ाने के साधन के रूप में अनुपयोगी बन गया है क्योंकि परमाणु बम ने युद्धप्रिय और शांतिप्रिय, विकसित और अविकसित, विजेता और पराजित देशों के बीच पूर्व के भेदभाव को मिटा दिया है। युद्ध सामूहिक हत्या के रूप में परिवर्तित हो गया है। इसलिए, हमें उस विश्व समुदाय के विकास के लिए काम करना चाहिए जिसमें युद्ध वर्जित होगा और हिंसा एक अस्वीकृत मत होगा। अतः स्वच्छंद व विनाशकारी मनोवृत्तियों को समाप्त करके हमें स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण के लिए विज्ञान तथा नीतिशास्त्र में समन्वय स्थापित करना चाहिए।